सूरत। गणेश चतुर्थी के दिन गुजरात की आर्थिक राजधानी सूरत में हुए दंगे को भाजपा ने हिन्दू-मुस्लिम रंग देकर पूरे देश में वर्ग विशेष के खिलाफ नफरत फ़ैलाने का काम किया। इस घटना के बाद लोकल विधायक से लेकर केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बयान दिए। इनके बयानों को कांग्रेस ने उकसाने वाला बताया। इस घटना के बाद समुदाय विशेष के 27 लोगों को पुलिस ने 307 सहित विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार किया था। कोर्ट ने इन आरोपियों को दो दिन के रिमांड पर पुलिस को सौंपा था। दो दिन का रिमांड पूरा होने के बाद पुलिस इन 24 आरोपियों का 5 दिन का रिमांड फिर से चाहती थी। जिसे कोर्ट ने अस्वीकार करते हुए सभी आरोपियों को जेल भेज दिया।
पुलिस की रिमांड अर्जी से गुजरात पुलिस और सरकार में बैठे लोगों की परप्रांतीय विरोधी मानसिकता देखने को मिली है। बचाव पक्ष के वकील जावेद हुसैन मुल्तानी ने जनचौक को बताया कि “पुलिस की तरफ से 24 आरोपियों की कोर्ट से पांच दिन की पुनः रिमांड मांगी गई थी। पुलिस ने पुनः पांच दिवसीय रिमांड के लिए पांच मुद्दों की दलील रखी थी। जिसमें प्रमुखता से कहा गया कि आरोपी अन्य प्रदेश के हैं, आउटसाइडर हैं, आरोपी चालाक हैं, स्थानिक नहीं हैं घटना स्थल से दूर निवास स्थान है।”
वकील मुल्तानी ने आगे कहा कि “पुलिस की दलील के जवाब में हमने कोर्ट को बताया आरोपी स्थानिक हैं, इनके जन्म से लेकर पढ़ाई-लिखाई सब कुछ यहीं का है। घर का पता भी यहीं का है। बाप दादा अन्य प्रदेश के हो सकते हैं। अन्य प्रदेश का व्यक्ति गुजरात आकर दंगा करेगा यह दलील मानने के योग्य नहीं।”
पुलिस ने रिमांड अर्जी में बहुत से आरोपियों का पता सूरत के अलावा उनके मूल वतन बंगाल और यूपी भी लिखा है ताकि पुलिस इन्हें अन्य प्रदेश का साबित कर सके।
सूरत को गुजरात की आर्थिक राजधानी कहा जाता है। टेक्सटाइल और हीरा उद्योग के अलावा अन्य कई उद्योगों के लिए सूरत जाना जाता है। विश्व का 90% हीरा सूरत में ही कटता और पोलिश होता है। सूरत मुगलों के ज़माने से उद्योग का एक बड़ा केंद्र रहा है। आज विविध आर्थिक गतिविधियों के के लिए जाना जाता है। इन आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ की हड्डी हैं प्रवासी मज़दूर।
समय-समय पर गुजरात और महारष्ट्र जैसे राज्यों में उत्तर भारतीय तथा अन्य परप्रांतीय लोगों को निशाने पर लिया जाता है।
आप को बता दें कि 9 सितंबर को गणेश चतुर्थी के दिन दो समुदाय आमने-सामने आ गए थे। दोनों तरफ से पथराव हुआ जिससे पूरे शहर में तनाव फ़ैल गया था। सूरत पुलिस कमिश्नर अनुपम सिंह ने घटना के सन्दर्भ में ANI को बताया था कि
“कुछ बच्चों ने गणेश पंडाल पर पत्थर फेंके थे जिसके बाद दो समुदाय आमने-सामने आ गए थे।”
सूरत स्थित पत्रकार आरिफ बाबा बताते हैं कि गणेश चतुर्थी वाले दिन कुछ मुस्लिम बच्चे जिनकी आयु 13 से 15 वर्ष होगी। आपस में हंसी मज़ाक कर रहे थे। मज़ाक में ही एक दूसरे पर पत्थर फेंक रहे थे। एक पत्थर पंडाल में मूर्ति के पास जा लगा। गणेश पंडाल के पास एक स्पोर्ट्स की दुकान है। दुकान का मालिक जयेश कुमार बजरंग दल से जुड़ा हुआ है। इन लड़कों को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। इसके बाद बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद् से जुड़े लोगों को एकत्र कर वातावरण ख़राब कर दिया। पंडाल पर पथराव हुआ है ऐसी अफवाह जय ने फैलाई। जिसके बाद दो समुदाय आमने-सामने आ गए थे।
पत्थर फेंकने का आरोप मुस्लिम समुदाय पर था इसलिए प्रदेश के गृह राज्य मंत्री हर्ष संघवी ने सूरज निकलने से पहले सभी को गिरफ्तार करने की धमकी दी थी। जिसके बाद पुलिस ने उसी रात 27 मुस्लिमों को गिरफ्तार किया था। अगले दिन सूरत नगर निगम ने उसी विस्तार में बुलडोज़र कार्यवाही भी की थी। इस कार्यवाही में मुसलमानों की दुकानों और मकानों को निशाना बनाया था। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बावजूद नगर निगम की कार्यवाही कानून को ठेंगा दिखने वाली कार्यवाही थी। इस कार्रवाई पर मेयर नरेंद्र पाटिल ने मीडिया में कहा “बुलडोज़र कार्यवाही 15 दिन पहले ही तय हो चुकी थी। उस वार्ड के लोकल पार्षद ने इन्क्रोचमेंट की शिकायत की थी। जिस कारण बुलडोज़र एक्शन हुआ। इस कार्यवाही को पत्थरबाजी की घटना से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए।”
(अहमदाबाद से कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट)
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