हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान दाल की बढ़ती कीमतों के सन्दर्भ में पत्रकार द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रश्नकर्ता की तक़रीबन खिल्ली उड़ाते हुए यह दावा किया कि प्रदेश में कहीं भी दाल का दाम सौ रुपये प्रति किलो से ज्यादा नहीं है। अपने इस जवाब में उन्होंने खाने-पीने के सामानों के महंगा होने की बात को ही तक़रीबन सिरे से नकार दिया।
हालांकि, कृषि मंत्री के दावों के विपरीत, बाजार के आंकड़े बताते हैं कि खुदरा महंगाई दर न केवल आसमान छू रही है, बल्कि आम आदमी की थाली से कई जरूरी चीजें गायब हो गई हैं। खाने पीने का सामान जैसे अनाज, दूध, फल, सब्जी सब कुछ महंगा हुआ है। खाद्य वस्तुओं में इस समय महंगाई दर जहां 9.36 फीसद हो गई है, वहीं अनाज 8.75 फीसद, दाल 16 फीसद और सब्जियां 29 फीसद तक महंगी हो गई हैं।
यहां यह तथ्य भी नोट करने लायक है कि देश की लगभग नब्बे फीसद कामगार आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है।इसकी क्रय शक्ति न केवल रिकॉर्ड स्तर तक गिर गई है, बल्कि श्रम बाजार में छाई मंदी से इस तबके की कमाई चिंताजनक स्तर तक प्रभावित हुई है। बढ़ती महंगाई से इस तबके की बचत शून्य हो चुकी है जो बुरे दौर में इनकी मदद करती थी।
बात यहीं तक सीमित नहीं है। बढ़ती महंगाई और असंगठित क्षेत्र में तबाही मचा रही बेरोजगारी का सबसे ज्यादा असर बुंदेलखंड जैसे प्रदेश के घोर पिछड़े क्षेत्रों में देखा गया है जहां आम लोगों की क्रय शक्ति में आई कमी ने कुपोषण के मामलों में चिंताजनक स्तर तक बढ़ोत्तरी की है। यहां महंगाई के चलते आम लोगों की थाली में पोषण देने वाली वस्तुएं कुछ इस तरह गायब हुईं कि इस क्षेत्र के बच्चे न केवल कुपोषित बल्कि ‘नाटे’ रह गए। बाल विकास विभाग ने कुछ माह पहले ही इस सन्दर्भ में एक अध्ययन भी करवाया था, जो सरकार के पोषण कार्यक्रमों में फैले भ्रष्टाचार को भी उजागर कर देता है। इस क्षेत्र के बच्चे औसत राष्ट्रीय ऊंचाई के मुकाबले चालीस फीसद तक नाटे थे। इस क्षेत्र के भूमिहीन दलित परिवारों पर कमरतोड़ महंगाई कितना बुरा असर डाल रही है, बस इसकी सिर्फ कल्पना भर की जा सकती है।
इन सब भयावह संकटों के बावजूद, सरकार के पदस्थ मंत्री महंगाई जैसे गंभीर सवाल पर हंसी-ठिठोली कर रहे हैं। यह ताकत उन्हें कहां से मिल रही है? आखिर आम आदमी की रसोई से जुड़े इस संवेदनशील और गंभीर सवाल को हल्के में लेने, उसे नकारने का साहस इस सरकार को कहां से मिल रहा है? हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा भले ही बुरी तरह से हारी है, लेकिन इसके बावजूद, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही का जमीनी सच्चाइयों को नकारते हुए महंगाई पर बेहद सतही अंदाज में बोलना यह दिखाता है कि भाजपा को इस चुनावी हार से फ़िलहाल कोई खास सबक नहीं मिला है। इसीलिए, राज्य सरकार के मंत्री द्वारा गरीब, और उनकी रसोई से सीधे जुड़े हुए सवाल का ही मजाक बनाने की कोशिश की गई।
असल में, भाजपा या संघ परिवार के पूरे दर्शन में आम आदमी और उसके मुद्दों को लिए कोई जगह नहीं है। हिंदुत्व राजनीति का यह गरीब विरोधी चेहरा आजादी के आन्दोलन में संघ की भूमिका से ही स्पष्ट होता है, जब संघ परिवार अंग्रेजी साम्राज्यवाद की दलाली कर रहा था और कांग्रेस गांधी जी के नेतृत्व में आम आदमी को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय दिलाने के लिए लड़ रही थी। इसीलिए, भाजपा सरकार के पास महंगाई के सवाल पर सिर्फ हंसी ठिठोली है। यह तरीका हिंदुत्व दर्शन की गरीब विरोधी सियासत का प्रतिबिम्ब है। यह हंसी उन गरीबों का मजाक उड़ाने की गरीब विरोधी मानसिकता का प्रदर्शन थी जो भाजपा के सियासी बुनियाद में है। हिंदुत्व की राजनीति अपने गरीब विरोधी होने का प्रदर्शन सूर्य प्रताप शाही के मार्फ़त महंगी दाल के सवाल के प्रतिउत्तर में कर रही थी।
यही नहीं, भाजपा जिस हिंदुत्व की पोलिटिकल लाइन और प्रैक्टिस के आधार पर चुनाव लड़ती और जीतती आ रही है, उसके केंद्र में आम आदमी और उसके बुनियादी सवाल जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और महंगाई नियंत्रण कभी आते ही नहीं हैं।उसका चुनावी एजेंडा- गाय, गोबर, मंदिर, हिंदुत्व और हिन्दू अस्मिता की सांप्रदायिक गोलबंदी के भरोसे वोट बटोरना है। इस हिंदुत्व सरकार की निगाह में आम आदमी की घटती हुई आय, बेरोजगारी, कुपोषण, उनकी भयावह गरीबी का सवाल कोई मायने ही नहीं रखता है। भाजपा को यह बखूबी पता है कि वह जिस राजनैतिक और सामाजिक और समीकरणों पर चुनाव जीतती है वहां महंगाई, भुखमरी, रोजगार और अशिक्षा पर कोई बात ही नहीं हो सकती। वह मानकर चल रही है कि उसका चुनावी एजेंडा हिंदी पट्टी के सामाजिक ताने-बाने में बेहद गहराई में घुसा हुआ है और इसके सहारे वह अभी चुनाव जीत सकती है। फिर चाहे महंगाई का मजाक उड़ाओ या फिर गरीबों का- उसके वोट बैंक में इससे कोई कमी नहीं आने वाली है।
यही नहीं, सूर्य प्रताप शाही जिस तरह से महंगाई जैसे गंभीर सवाल को हंसी-ठिठोली के अंदाज में इग्नोर कर रहे थे, वह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी के लिए आम आदमी की मुश्किलों के बरक्स उन कारोबारियों के हित ज्यादा महत्वपूर्ण हैं जिन्होंने भाजपा को एकमुश्त चुनावी चंदा दिया है और महंगाई, जमाखोरी के मार्फ़त अभी आम जनता से उसकी वसूली कर रहे हैं।अगर ऐसा नहीं होता तो वह इतने असंवेदनशील तरीके से महंगाई जैसे सवाल को ‘डील‘ करने की हिम्मत ही नहीं करते।
कुल मिलकर, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही की यह हंसी बताती है कि भाजपा के लिए गरीब, उसकी थाली महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है तो सिर्फ इतना कि आम जनता गाय, गोबर, मंदिर और सांप्रदायिक सवालों पर बंटी रहे। गरीब मरें या जियें- सरकार के लिए महंगी दाल का सवाल कोई ‘महत्वपूर्ण’ सवाल नहीं है। महत्वपूर्ण सवाल सिर्फ यह है कि सेठ लोग मजे में रहें और जनता सांप्रदायिक आधार पर विभाजित रहे, ताकि भारत के अर्जित लोकतंत्र को कुछ लोगों की जेब में गिरवी रखा जा सके। महंगी दाल के सवाल पर इस गरीब विरोधी हंसी-ठिठोली का यही सार है।
(हरे राम मिश्र पत्रकार हैं और लखनऊ में रहते हैं)