यूपी में चुनावी बुखार की शुरुआत जनवरी में चुनावों की तारीख के ऐलान के बाद से ही शुरू हो गई थी। हर कोई जानने को उत्सुक था कि यूपी में इस बार क्या होने वाला है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इस बार के चुनाव में लोगों के पास वोट करने के अपने मुद्दे थे, बजाए कि हिंदू-मुस्लिम करने के। क्योंकि प्रदेश के बेहद ज्वलंत मुद्दों पर सरकार कोई चर्चा नहीं कर रही थी। यूपी दौरे के दौरान मैं कई जगहों पर गई, जहां लोगों का कहना था कि इस बार हम वोट हिंदू-मुस्लिम के नाम पर नहीं देने वाले हैं। लेकिन क्या यही माहौल अयोध्या में भी देखने को मिलेगा, इसी सोच के साथ मैं अयोध्या आई थी।
शहर बहुत बड़ा नहीं है। लेकिन हर भारतीय के जेहन में इस शहर का कुछ न कुछ अक्स जरूर उभरता है। साल 1988 के बाद से भारतीय मीडिया के द्वारा इस शहर की जो तस्वीर बनाई गई है, उसके चलते यहाँ की हर हलचल के बारे में हर कोई जानने को उत्सुक रहता है। यूपी चुनाव के दौरान यह शहर हॉट सीट बना हुआ है। इस सीट पर सीधी लड़ाई अन्य जगहों की तरह सपा और भाजपा के बीच है। अन्य पार्टियों की हलचल बहुत ही कम है।
अयोध्या के एंट्री पॉइंट पर ही भाजपा की एक होर्डिंग लगी है, जिसमें विरासत से संबंध जोड़ा गया है”। इस होर्डिंग को देखने से ही समझ में आ जाता है कि यहां के लोगों को राम मंदिर का वास्ता दिया जा रहा है। यहां की होर्डिंग बाकी की सभी जगहों से अलग लगी, क्योंकि अभी तक कहीं भी विरासत की बात देखने को नहीं मिली थी।
जैसे-जैसे मैं आगे शहर की तरफ बढ़ती हूं, कई सारी चीजें इस शहर के बारे में समझ में आती हैं। यह शहर आपको अन्य शहरों से अलग दिखेगा। पुलिस का पहरा इस कदर है, कि आप सोचने पर मजबूर हो जायेंगे। बैरिकेड से घिरे इस शहर में जिस राम की पैड़ी को आप अक्सर टीवी पर देखते हैं, वहां पर कई मंदिर मौजूद हैं। मोदी और योगी के भक्त भले ही इसकी तारीफ करते नहीं थकते, लेकिन सच्चाई यह है कि यहां मुझे कई स्थानों पर कूड़े के ढेर नजर आए। बैरिकेड के सहारे बांधे गए इस शहर में राममंदिर की बात तो साल 1988-89 से चल रही है।
अब राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 5 अगस्त 2020 को पीएम मोदी ने मंदिर का शिलान्यास कर दिया है। इस शहर से दूर बैठे लोगों को लगता है कि राममंदिर का फैसला आ जाने के बाद यहां की सारी परेशानियां दूर हो गई होंगी। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। इस शहर में आने से पहले मुझे भी यह लगता था कि चूँकि राम मंदिर बन रहा है, मस्जिद के लिए जमीन मिल गई है। ऐसे में लोग इस बार इस मुद्दे पर अपना मत भी अवश्य दे रहे होंगे। लेकिन इससे इतर भी यहां पर लोगों के अलग-अलग ढेरों मुद्दे हैं जिन पर बात होनी चाहिए।
सबसे बड़ा मुद्दा जमीन अधिग्रहण का है, जिसके उचित मुआवजे का लोग आज भी इंतजार कर रहे हैं। ये सभी लोग इसी इंतजार में हैं कि काश वो पैसे उन्हें मिल जाएं तो उनकी स्थिति कुछ ठीक हो जाए। रामकथा पार्क के लिए अधिग्रहित की गई जमीन के मुआवजे में सात परिवार आते हैं, जिनकी अब दो-तीन पीढ़ियों ने यह स्थिति देख ली है। इन्ही में से एक है विनीत मौर्य जिनके पिताजी की 11 एकड़ खेती वाली जमीन इसमें चली गई थी। उन्होंने कहा, “उस वक्त राज्य सरकार द्वारा इस जमीन का बाजार मूल्य सात लाख रुपये प्रति एकड़ निर्धारित किया गया था। लेकिन बाद में इस रकम को घटाकर 68 हजार कर दिया गया। जिससे लोगों को काफी नुकासन हुआ।” वे बताते हैं कि इन सभी के पीछे उस वक्त के डीएम का हाथ है। पर वे इस कीमत पर तैयार नहीं थे।
उन्होंने उस वक्त इसका विरोध भी किया। लेकिन सरकार द्वारा उन्हें धोखे से पहली किश्त दे दी गई। वह भी 68 हजार की दर से नहीं दी गई थी। इसके बाद उन्होंने जब इसका बाजार दर पर कीमत दिए जाने की मांग की, तो यह सारा मामला ही कोर्ट चला गया। आज तक यह केस चल रहा है। अब स्थिति यह है कि सरकारें आती-जाती रहती हैं। लेकिन इस मामले में कोई सुनवाई नहीं होती। जब भी लगता है कि इस मामले में कोई फैसला आ जाएगा तब तक जज बदल दिए जाते हैं।
विनीत के भाई की बहू मुझे घर के पास की उस जगह पर ले जाती हैं जहां की जमीन अधिग्रहित कर ली गई थी। यह जगह रेट जोन के अंदर आती है। वह मुझसे बात करते हुए बताती हैं कि अयोध्या की और भी जगह है जिन्हें जोन के हिसाब से बांटा गया है। साथ ही लोहों की रॉड से बांधी उस जगह को दिखाती हुए बताती हैं कि यहां पर हमारा ट्यूबवेल हुआ करता था।
इस जगह पर चारों तरफ पुलिस तैनात थी। छत पर भी पुलिस थी। उनका कहना था, “पहले हमें बाहर बाथरुम जाने में परेशानी होती थी, क्योंकि हमारा बाथरूम बाहर की तरफ था। लेकिन अब हम इस सबके आदी हो चुके हैं। अब हम लोग इस पुलिस सिक्योरिटी से दुखी हो चुके हैं। कभी-कभी तो हमें अपने ही घर में आने के लिए परमिशन लेनी पड़ती है। हम अपनी मर्जी से कहीं आ-जा नहीं सकते हैं। अगर किसी दिन हम लोग घर आने में लेट हो जाते हैं तो हमें पुलिस को प्रमाण दिखाना पड़ता है कि हम इसी जगह के निवासी हैं।”
उनसे बात करने बाद मैं आगे की तरफ बढ़ती हूं और उस दलित परिवार से मिलती हूँ जिनकी जमीन अधिग्रहण कर ली गई थी। सोनकर परिवार के चार बेटे इस मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं। सोनकर परिवार को उनके घऱ से विस्थापित कर दिया गया था। इनके पिता के नाम पर ढाई एकड़ जमीन थी, जिस पर मुख्य रूप से फलों का बाग था। इस जमीन पर सभी तरह के फल लगा करते थे। सोनकर परिवार के एक बेटे राजकुमार सोनकर ने मुझसे बात करते हुए बताया कि यही बाग उनकी आजीविका का एकमात्र साधन था। अधिग्रहण के बाद उनके बाग के सारे पेड़ काट दिए गए और जमीन भी हाथ से चली गई। वे बताते हैं “अब हम दिहाड़ी करने के लिए मजबूर हैं। अगर मुआवजे के पैसे मिल जाते तो स्थिति बेहतर हो जाती।”
इस शहर के अधिग्रहण की कहानी यहीं पर खत्म नहीं हो जाती है। एयरपोर्ट के लिए भी जमीन का अधिग्रहण किया गया है। अयोध्या की सड़कों के चौड़ीकरण के नाम पर अब एक बार फिर से लोगों को अधिग्रहण का डर सताने लगा है। चौड़ीकरण के नाम पर कई लोगों के घरों की जमीन भी इसमें आ रही है। मैंने लोगों से इस बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन आधिकारिक तौर पर लोग इस पर बात करने को तैयार नहीं थे। लोगों के अंदर डर साफ दिखाई दिया। एक महिला का घर भी इसी सूची में आ गया है। मैंने जब इस बारे उनसे बात की तो शुरू-शुरू में उन्होंने बेहद सहज ढंग से अपनी बात रखी। लेकिन कुछ देर बाद ही उन्होंने आगे की बातचीत के लिए अपने बच्चों से इस बातचीत को जारी रखने के लिए कुछ कहा, तो उसने मुझे इस बातचीत को न छापने के लिए कहा।
फिर उसके बाद मैंने अयोध्या की प्रसिद्ध दही-जलेबी की दुकान पर कुछ समझने की कोशिश की। यह दुकान शहर की सबसे मशहूर स्थान, हनुमान गढ़ी के पास है। इस जगह के आसपास कई दुकानें है, जहां पूजा के भोग से लेकर खाने-पीने की चीजें मिलती है। अब लगभग सारी दुकानें इस चौड़ीकरण के अंदर आ रही हैं। अयोध्या की प्रसिद्ध दही-जलेबी की दुकान मौर्या मिष्ठान भंडार के मालिक दीप नारायण मौर्या का कहना है कि शहर के विकास के लिए चौड़ीकरण की आवश्यकता है। लेकिन यह आवश्यकता इस शर्त पर नहीं है कि हमारे बाकी दुकानदार भाई उजड़ जाएं।
दीप नारायण कहते हैं “सरकार ने लगभग 30 फीट जमीन लेने की बात कही थी। अगर ऐसा होता है तो हमारी दुकान को ज्यादा नुकसान नही होगा। हमें कहीं और विस्थापित भी नहीं होना पड़ेगा। लेकिन हमारे दुकानदार भाईयों के लिए सरकार को कुछ करना चाहिए। चौड़ीकरण के लिए सड़क तो नाप ली गई है, लेकिन पहले दुकानदारों के लिए कोई उचित इंतजाम तो किया जाए। उनकी कमाई के साधन को बंद नहीं करना चाहिए।”
चौड़ीकरण के बारे में अयोध्या के व्यापार मंडल के अध्यक्ष नंदन कुमार गुप्ता का कहना है “राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही सबसे पहले नया घाट से लेकर सहादतगंज तक कई झुग्गियों को तोड़ दिया गया। अब अयोध्या के सौंदर्यीकरण के नाम पर दुकानों को तोड़ा जा रहा है। नया घाट से सहादतगंज तक के लिए सड़क के दोनों किनारों को 12-12 फीट चौड़ी करने की बात हुई है। इसकी नपाई भी हो गई है, और किसी भी वक्त इसे तोड़ा जा सकता है। अब अगर सड़क तोड़ने की बात कही जा ही है तो सरकार कम से कम इस बारे में बातचीत तो करे। कोई बीच का रास्ते निकले। अभी तक व्यापार मंडल के लगातार विरोध के कारण इसे तोड़ना संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि यहां के लोग अपने जीविकापर्जन के लिए लगातार जगह की मांग कर रहे हैं।
इस चौड़ीकरण का प्रभाव लगभग चार हजार व्यापारियों पर सीधे तौर पर पड़ेगा। वहीं दूसरी ओर 700 व्यापारी यहां से विस्थापित हो रहे हैं। वे कहते हैं “बड़ी संख्या में व्यापारी इस फैसले से प्रभावित हो रहे हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी की गई थी। जब कोई बात बनती नहीं दिखी तो व्यापारियों ने इसका विरोध करना शुरु कर दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा सरकार ने हम पर कई मुकदमें लगा दिए। जब भी मुख्यमंत्री यहां आते हैं मुझे हाउस-अरेस्ट कर लिया जाता है। पिछले दो सालों में मुझे लगभग 23 बार हाउस अरेस्ट कर लिया गया है।”
चुनाव पर बात करते हुए नंदन कुमार गुप्ता कहते हैं “चौड़ीकरण का असर अब चुनाव में भी देखने को मिलेगा। जितने भी दुकानदार हैं, सभी भाजपा के वोटर हैं। इन सभी लोगों ने 2017 में भाजपा को वोट दिया था। लेकिन अब लोगों का इरादा बदल रहा है, क्योंकि अब मामला रोजी-रोटी का आ गया है। व्यापारी समाज हमेशा से ही भाजपा का कोर वोटर रहा है। लेकिन अब इनकी गलत नीतियों के कारण ही व्यापारी वोटर नाराज होकर आज नया विकल्प तलाश रहा है।”
चौड़ीकरण, राम मंदिर निर्माण, अधिग्रहण और चुनाव के मसले पर फैजाबाद के वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह कहते हैं “अयोध्या में अधिग्रहण का मामला तो साल 1989 से ही चला आ रहा है। लगभग हर पार्टी की सरकार बनी, लेकिन इसका समाधान नहीं हुआ है। अब जब सौंदर्यीकरण के नाम पर चौड़ीकरण किया जा रहा है, तो इससे सबसे ज्यादा व्यापारी वर्ग प्रभावित हो रहा है। जिसका असर पांचवें चरण में देखने को मिल सकता है। क्योंकि यहां कोई उद्योग तो है नहीं यहां कि ज्यादातर आबादी ग्रामीण है। बाकी जो शहरी हैं, वे व्यापारी वर्ग से ताल्लकु कर रखते हैं। और यही भाजपा के कोर वोटर हैं, लेकिन इस बार यह वोटर बेहद नाराज है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह सपा की तरफ चला गया है।”
पूरे चुनावी दृश्य की बात करते हुए के पी सिंह कहते हैं “जनता के बीच भाजपा को लेकर नाराजगी तो है लेकिन इसे विद्रोह के तौर पर नहीं देख सकते हैं। क्योंकि जनता सपा को एक विकल्प के तौर पर नहीं देख रही है। इसलिए यह नहीं कह सकते कि जो लोग भाजपा को वोट नहीं कर रहे वे सपा को वोट कर देंगे। ऐसा ही मामला अयोध्या का भी है।”
अयोध्या के विकास की चर्चा बहुत तेजी से हो रही है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस विकास के दूसरे पहलू को दिखाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता पूनम कुमारी का कहना है “अयोध्या के विकास के नाम पर सिर्फ राम की पैड़ी का निर्माण हो रहा है। हिंदू-मुसलमान के चक्कर में दलितों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया है। बस स्थिति में थोड़ा सुधार है, लेकिन इस सुधार को भी हम स्तरीय नहीं कह सकते।”
वे आगे कहती हैं, “अयोध्या में विकास कहां नजर आ रहा है? शहर की गलियों में घूमिए और देखिए आपको हर गली में गरीबी दिखाई देगी। यहां के लोगों का भी वैसा ही हाल है जैसा घर में बड़े भाई की कमाई पर आश्रित रहने वाले दूसरे भाई-बहनों का होता है। बड़े भाई के सामने किसी का मुंह नहीं खुल पाता, क्योंकि बाकी भाई-बहन उस पर आश्रित हैं। यही हाल अयोध्या की जनता का है, वह परेशान तो है लेकिन सरकारी राशन के तले इतना दब चुकी है कि वह अपनी जुबान नहीं खोल पा रही है।”
उनका कहना था, “पुलिस हमेशा इतनी भारी संख्या में तैनात रहती है कि हम अपनी मर्जी से कहीं आ-जा भी नहीं सकते हैं। घर के बाहर ही पुलिस बैठी रहती है। रात को कई बार लेट आने पर हमें अपने ही घर में आने के लिए प्रमाण पत्र दिखाना पड़ता है। खुद ही सोचिए हम लोगों की कैसी जिदंगी है। हर समय तो हम अपना आधार कार्ड लेकर नहीं घूम सकते हैं।”
(अयोध्या से प्रीति आजाद की रिपोर्ट)
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