Friday, April 19, 2024

झारखंड में मनरेगा कर्मियों के संवैधानिक अधिकारों का हनन, कर्मचारी संघ ने दी आंदोलन की चेतावनी

झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि मनरेगा कर्मियों के प्रति सरकार का रुख सही नहीं है। विगत 1 मई से तीन दिनों की पदयात्रा के बाद सरकार ने मनरेगा कर्मियों के हित में कोई कदम उठाने के बजाय पत्र जारी कर तीन दिनों का मानदेय कटौती करने का आदेश जारी किया है।

तुगलकी आदेश से सरकार का असली चेहरा और नीयत बिल्कुल साफ हो गया है। विगत 18 अप्रैल को संघ की ओर से पदयात्रा की सूचना सरकार को दी गई थी और अनुरोध किया गया था कि सरकार की ओर से बातचीत की पहल हो और मनरेगा कर्मियों के समस्याओं का हल निकाला जाए।

झारखंड सरकार की ओर से दी गई मानदेय कटौती का आदेश

लेकिन सरकार की ओर से किसी तरह की कोई पहल नहीं की गई। यदि पहल की जाती तो पदयात्रा को स्थगित किया जा सकता था। पदयात्रा के दौरान सरकार ने उपेक्षा तो की ही, साथ ही पदयात्रा में शामिल मनरेगा कर्मियों के मानदेय में कटौती करने का आदेश भी जारी कर दिया। सरकार का कहना है कि जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा आदि की मांग सरकारी स्तर पर विचाराधीन है और मनरेगा कर्मियों का आंदोलन किसी भी तरह से सही नहीं है।

झारखंड सरकार की ओर से दी गई मानदेय कटौती का आदेश

सरकार का गठन होने के बाद संविदा कर्मियों को स्थाई करने हेतु विकास आयुक्त की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया गया था। तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक तौर पर साझा नहीं की गई। इतने कम मानदेय में परिवार का भरण-पोषण करना संभव नहीं है।

सरकार की ओर से किसी भी तरह का सर्विस बेनिफिट नहीं दिए जाने के कारण दुर्घटना में मृत्यु होने या अपंग होने पर किसी तरह का कोई लाभ नहीं मिलता है, बल्कि परिवार के सदस्य भुखमरी के कगार पर आ जाते हैं। महिला कर्मियों को मातृत्व अवकाश नहीं देना और सेवा शर्त नियमावली के अभाव में छोटी-छोटी गलतियों पर भी बर्खास्त कर दिया जाता है।

फिलहाल मनरेगा कर्मियों को प्राप्त अपीलीय प्रावधान को भी मजाक बना दिया गया है। प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा निर्दोष करार दिए जाने के बावजूद उनके आदेश का उल्लंघन कर जिला उपायुक्त मनरेगा कर्मियों का योगदान नहीं करा रहे हैं। मनरेगा कर्मियों का आर्थिक, सामाजिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है उसके बावजूद पद यात्रा करने पर बर्बरता पूर्ण तरीके से सरकार द्वारा तुगलकी फरमान जारी करना मनरेगा कर्मियों को अनिश्चितकालीन हड़ताल की ओर धकेल रहा है।

सरकार को आगे आकर समस्याओं के समाधान पर विचार करना चाहिए था। लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती। नए-नए हथकंडे अपनाया जाना निश्चित रूप से विभागीय अधिकारियों के दिवालियापन की निशानी है।

ऐसे में कई सवाल पैदा होते हैं – आखिर चार वर्षों से उच्च स्तरीय कमिटी मनरेगा कर्मियों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए क्यों फैसला नहीं ले सकीं?

जब सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में न्यायादेश पारित कर 10 वर्षों से अधिक समय तक संविदा की नौकरी को स्थाई करने का निर्देश दिया, तो अभी तक मनरेगा कर्मियों को स्थाई क्यों नहीं किया गया?

मनरेगा नियुक्ति नियमावली 2007 में मनरेगा कर्मियों को एक वर्ष के लिए रखा जाना था, तो 16 वर्षों तक लगातार कार्य कराने के बाद उन्हें उसी नियमावली के कंडीका 11 (च) का हवाला देकर स्थाईकरण को टालना कहां तक जायज है?

400 रुपया प्रतिदिन का मजदूरी मनरेगा कर्मियों को देना, इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देना, ये शोषण नहीं है तो और क्या है?

प्रेस बयान में कहा गया है कि हेमंत सोरेन की सरकार बनने के बाद सैकड़ों बार माननीय मुख्यमंत्री से बातचीत के लिए अनुरोध किया गया। लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से एक बार भी बातचीत के लिए समय नहीं दिया गया। जो स्पष्ट करता है कि सरकार हमारे आंदोलन की भ्रूण हत्या करना चाहती है, उसने हमारे आंदोलन को दबाने के लिए दमनकारी नीति अपनाया है। लेकिन मनरेगाकर्मियों का कहना है कि वे डरेंगे नहीं बल्कि डटेंगे सरकार के हर जुल्मो-सितम का सामना करेंगे।

झारखंड मनरेगा कर्मचारी संध का पैदल मार्च

इसे लेकर पूरे राज्य के मनरेगा कर्मियों में भारी रोष है। जिसका सामना सरकार नहीं कर पाएगी। समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो निश्चित रूप से मनरेगा कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे। प्रदेश अध्यक्ष ने प्रेस बयान के माध्यम से फिर से सरकार से अपील की है कि समस्याओं के समाधान के लिए यदि सरकार पहल करती है तो आंदोलन को स्थगित किया जा सकता है, अन्यथा इस आंदोलन की जवाबदेही सरकार की ही होगी।

इस बावत झारखंड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ के पूर्व महासचिव मोहम्मद इम्तेयाज ने कहा कि मनरेगा कर्मी आज 16 वर्षो से सरकार को सेवा देते आ रहे हैं। इनकी नियुक्ति में आरक्षण रोस्टर का पालन किया गया है। सभी उच्च अर्हता धारी हैं सरकार को जल्द ही सभी मनरेगा कर्मियों का स्थायीकरण करना चाहिए। संघ के प्रदेश सचिव विकास पाण्डेय ने कहा कि विभाग को ओर से बर्खास्त मनरेगा कर्मियों के लिए किए गए अपीलीय प्रावधान को भी मजाक बना दिया गया है।

संघ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष श्री अनिरुद्ध पांडे और धनबाद जिला के पूर्व जिला अध्यक्ष मुकेश राम को वर्ष 2020 में अनिश्चितकालीन हड़ताल के दौरान हड़ताली कार्रवाई के तहत बर्खास्त करने के बाद आयुक्त उत्तरी छोटानागपुर पलामू प्रमंडल हजारीबाग के न्यायालय में 3 वर्षों से मामला लंबित है। उनका परिवार भुखमरी के कगार पर है।

पलामू जिला में प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा आठ मनरेगा कर्मियों को निर्दोष करार दिए जाने के बावजूद उनके आदेश का उल्लंघन कर जिला उपायुक्त मनरेगा कर्मियों का योगदान नहीं करा रहे हैं।

कर्मचारी संघ प्रदेश उपाध्यक्ष संजय प्रामाणिक ने कहा कि मनरेगा कर्मियों का आर्थिक, सामाजिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है। उसके बावजूद पद यात्रा करने पर बर्बरता पूर्ण तरीके से सरकार द्वारा तुगलकी फरमान जारी करना मनरेगा कर्मियों को अनिश्चितकालीन हड़ताल की ओर धकेलने जैसा है। सरकार को आगे आकर समस्याओं के समाधान पर विचार करना चाहिए था। लेकिन सरकार ऐसा नहीं चाहती है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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