Friday, March 29, 2024

कृषि कानून

देश रो रहा है प्याज के आंसू, नीतीश सरकार के भी डूबने का खतरा!

कानपुर में प्याज का खुदरा मूल्य, आलोक दलईपुर 80 रुपये किलो बता रहे हैं, वहीं गुरुवयूर जिला त्रिसूर केरल से सुरेंद्रन अप्पू को प्याज 120 रुपये किलो मिल रहा है। पिछले तीन दिनों के सोशल मीडिया के जरिए किए...

कृषि कानून नहीं, यह मोदी की अडानी-अंबानी को 62 लाख करोड़ की सौगात है!

मोदी सरकार किसानों को व्यापारी बनाने का नाम देकर पूंजीपतियों की मैनेजमेंट समिति, बड़े पूंजीपतियों को पूंजी निवेश और बेरोकटोक लाभ कमाने के अवसर प्रदान करने के लिए कृषि क्षेत्र का लगभग 62 लाख करोड़ का व्यापार सोने की...

पाटलिपुत्र की जंगः कांग्रेस के ‘बदलाव पत्र’ में रोजगार और कृषि कानून सबसे बड़ा मुद्दा

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी ने भी आज 21 अक्तूबर को अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया। बिहार बदलाव पत्र के नाम से जारी घोषणा पत्र के बहाने पार्टी ने सभी वर्गों को साधने की कोशिश...

भारतीय कृषि को बर्बाद कर देश के आर्थिक आधार को नेस्तनाबूद कर देना चाहता है अमेरिकी थिंक टैंक

20 सितंबर 2020 को जब राज्यसभा में बेहद अलोकतांत्रिक तरीके से सदन की समस्त संसदीय मर्यादाओं को ताख पर रख कर, तीनों किसान विधेयकों को उपसभापति हरिवंश ने पारित घोषित किया तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगा कि वे किसी...

कश्मीर के क्षेत्रीय दलों से सबक सीखे भारत का गैर भाजपाई विपक्ष

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने का निर्णय लिया तथा जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे विभाजित कर दिया। घोषणा के बाद कश्मीर के तीनों मुख्यमंत्री के साथ हजारों पार्टी...

कृषि कानून के बरखिलाफ राज्यों के लिए कांग्रेस का मॉडल ड्रॉफ्ट तैयार

नई दिल्ली। कांग्रेस ने केंद्र द्वारा पारित कृषि कानूनों के समानांतर और किसानों के पक्ष में बनाए जाने वाले ड्राफ्ट विधेयक को तैयार कर लिया है। बताया जा रहा है कि इसमें केंद्र सरकार के कानून में मौजूद खामियों...

लोकमोर्चा ने कृषि कानूनों को बताया फासीवादी हमला, बनारस के बुनकर भी उतरे किसानों के समर्थन में

बदायूं। लोकमोर्चा ने मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों को देश के किसानों पर फासीवादी हमला बताया है। संगठन ने कहा है कि कृषि कानूनों को संसद में असंवैधानिक तरीके से पारित कराने के लिए संवैधानिक लोकतंत्र का गला...

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बहुसंख्यकवादी नैरेटिव को टेका लगाती फिल्में: स्वातंत्र्यवीर सावरकर

फिल्म जनसंचार का एक शक्तिशाली माध्यम है जो सामाजिक समझ को कई तरह से प्रभावित करता है। कई दशकों...