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राजनीति

मनोज झा-ग़ज़ाला जमील का लेख: सामाजिक न्याय ‘पहचान की राजनीति’ नहीं, धड़कते दिलों की उम्मीद है

भारत में जाति को लेकर मुख्य समझ एक सांस्कृतिक परिघटना के रूप में जाति के विचार पर केंद्रित रही है। जाति और व्यापक सामाजिक न्याय [more…]

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बीच बहस

बिहार के चुनावों में मीडियाः तमाशबीन या खिलाड़ी?

बिहार में एनडीए किसी तरह दोबारा सत्ता में आ गया है। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को मीडिया ऐसी शाबासी दे रहा है, जैसे उन्होंने चुनाव [more…]

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संस्कृति-समाज

भारतीय समाज में जारी सतत हिंसा अब बन गयी है सभ्यता का हिस्सा

“मैं राइटर बनना चाहता था….और साइंटिस्ट भी… फिर सोचा कि शायद साइंस का राइटर बन जाऊंगा। कुछ भी न हुआ साला! क्योंकि पैदा जहां हुआ [more…]