जिस किसी ने भी कहा था कि राष्ट्रवाद धूर्तों की आख़िरी पनाहगाह है, उसे उस दूसरी चोर गुफा का अंदाजा नहीं रहा होगा, जिसे धर्म, रिलिजन या मजहब कहते हैं। कहीं कोई इन दोनों का कॉकटेल बनाने की सवाई...
हमके साड़ी लियाय दा मदनपुरी पिया,रंग रहे कपूरी पिया ना
ये कजरी लगभग हर उस व्यक्ति ने सुनी होगी, जिसकी संगिनी ने उससे हठ किया होगा बनारसी साड़ी लाने के लिए। बच तो अपने कवि काका हाथरसी साहब भी नहीं...