Friday, March 29, 2024

राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में फोन बांटने का क्या है खेल

रवीश कुमार

हमारे वक्त की राजनीति को सिर्फ नारों से नहीं समझा जा सकता है। इतना कुछ नया हो रहा है कि उसके अच्छे या बुरे के असर के बारे में ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो रहा है। समझना मुश्किल हो रहा है कि सरकार जनता के लिए काम कर रही है या चंद उद्योगपतियों के लिए। मीडिया में इन नई बातों की समीक्षा कम है। समीक्षा करने की काबिलियत भी कम है। मीडिया सिर्फ नारों के पीछे भाग रहा है। मीडिया के भागते रहने के लिए हर हफ्ते एक नारा लांच कर दिया जाता है।

बिजनेस स्टैंडर्ड में आधे पन्ने पर पांच कॉलम का कुमार संभव श्रीवास्तव का लेख पढ़ा। यह लेख राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार द्वारा बांटे गए जियो कनेक्शन से लैस मोबाइल पर है। आपको पता होगा कि विधानसभा चुनावों को देखते हुए राजस्थान और छत्तीसगढ़ में डेढ़ करोड़ परिवारों को मोबाइल हैंडसेट बांटे गए हैं। इस फोन में इंटरनेट कनेक्शन भी है। दोनों राज्यों की तीन-चौथाई आबादी के पास सरकारी स्मार्ट फोन पहुंच गया है। पर इसका क्या असर है, इससे किस तरह की जानकारी एक कंपनी या एक कंपनी के ज़रिए सरकार के पास जा रही है, इसकी न जनता के बीच समझ है और न ही समझने का दावा करने वालों के बीच।

यह सब पब्लिक टेंडर से हुआ है। दोनों राज्यों में टेंडर के ज़रिए जियो मोबाइल को मौका मिला है। छत्तीसगढ़ में खुला टेंडर के ज़रिए रिलायंस जियो को पचास लाख परिवारों को इंटरनेट कनेक्शन देने का ठेका मिला है। अंग्रेज़ी में नेटवर्क लिखा है। इस फोन में दो साल तक जियो का ही नेट कनेक्शन रहेगा।बीच में इसे नहीं बदला जा सकेगा। उपभोक्ता को छह महीने तक इंटरनेट मुफ्त मिलेगा। बदले में कंपनी को राज्य सरकार अपना टावर लगाने के लिए ज़मीन देगी जिसका दस साल तक कोई किराया नहीं लगेगा। इसके साथ एक विकल्प भी मिला है कि वह सरकार के ई-पेमेंट सेवाओं को भी चलाए। फोन माइक्रोमेक्स का है और इंटरनेट जियो का। सरकार इस पर 1400 करोड़ से अधिक की रकम ख़र्च करेगी।

राजस्थान में सरकार जियो कनेक्शन और फोन के बदले कंपनी को प्रति फोन 1000 रुपये देगी। छत्तीसगढ़ की तरह यहां सरकार ने कोई टेंडर भी जारी नहीं किया था। सारी कंपनियों को बुलाया गया कि वे सरकारी कैंप के ज़रिए अपना फोन बेचें। एक करोड़ परिवारों को फोन और नेट कनेक्शन देने का काम मिल गया।लाभार्थी के खाते में सरकार ने इसके लिए 1000 रुपये डाल दिए। 500 फोन के और 500 इंटरनेट के। यह योजना सारी टेलिकाम कंपनियों के लिए थी मगर जियो को पहले आने का लाभ मिला। ज़िला प्रशासन को आदेश दिया गया कि भामाशाह डिजिटल परिवार योजना के तहत जियो भामाशाह कार्यक्रम शिविर कायम की गई और जियो फोन बेचे जाने लगे। इसके कई हफ्ते बाद दूसरी कंपनियों को बुलाया गया तब तक जियो ने पकड़ बना ली। सरकार इस पर 10 अरब यानी 1000 करोड़ ख़र्च कर रही है। दोनों राज्यों के अधिकारियों ने इंकार किया है कि जियो को अनुचित लाभ दिया गया है। जियो अधिकारी ने भी इंकार किया है।

यह योजना छत्तीसगढ़ के 81 प्रतिशत परिवारों और राजस्थान के 77 प्रतिशत परिवारों तक पहुंचती है। छत्तीसगढ़ में 71 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास फोन नहीं है। शहरों में 26 प्रतिशत परिवारों के पास।

राजस्थान में 32 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास फोन नहीं है। शहरों में 15 प्रतिशत परिवारों के पास नहीं है। अंग्रेजी में इसके लिए हाउसहोल्ड का इस्तेमाल होता है। ये सभी पहली बार फोन का इस्तेमाल करेंगे। सरकारें चुनाव के समय जनता के बीच खैरात बांटती हैं जैसे यूपी में लैपटॉप बांटा गया।

गौर करने वाली बात है कि जो फोन जनता को दिए जा रहे हैं उसमें किस तरह के एप्लिकेशन डाउनलोड करने के लिए कहा जा रहा है, किस तरह की जानकारी सरकार के पास पहुंच रही है। यह पहले से नया और बड़े स्केल पर है। इन फोन में नमो-एप है। रमन सिंह का एप है। दोनों ही ग़ैर सरकारी एप हैं। दोनों नेताओं का प्रचार करते हैं। स्कीम के कागज़ात देखने के बाद कुमार संभव श्रीवास्तव ने लिखा है कि इसकी शर्तों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार अपने नए नए एप्लिकेशन भी इसमें डालती रहेगी। अपडेट भी करेगी। यह भी लिखा है कि राज्य सरकार इनके ज़रिए जो डेटा जमा होगा वह अलग सर्वर पर जमा होगा। राजस्थान सरकार के दस्तावेज़ बताते हैं कि सरकार टेलिकाम कंपनी से लोगों की जानकारी ले सकती है।

छत्तीसगढ़ में तो तीन तीन बार टेंडर निकला मगर पहली बार में कोई कंपनी नहीं आई। दूसरे दौर में एयरटेल और लावा मोबाइल कंपनी आई। तीसरे दौर में सरकार ने दो साल तक सिम-लॉक की शर्त जोड़ दी तब जाकर जियो-माइक्रोमैक्स आई। सिम-लॉक का मतलब यह हुआ कि फोन जिसे मिलेगा वह दो साल तक किसी दूसरी कंपनी का इंटरनेट कनेक्शन नहीं ले सकेगा। अंतिम दौर की नीलामी में जियो-माइक्रोमैक्स ने ठेका जीत लिया। एयरटेल-लावा ने 2,650 और 4,550 रुपये का आफर दिया जबकि जियो और माइक्रोमेक्स ने 2,250 और 4,142 का दिया।

राजस्थान के दस्तावेज़ों को देखकर लगता है कि केंद्र सरकार भी इसमें शामिल है। डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्युनिकेशन ने जियो, वोडाफोन और एयरटेल को इसके लिए विशेष नंबर जारी किए। इन्हीं नंबरों को लोगों में बांटा गया।

दोनों राज्यों में फोन देने से पहले आधार और बैंक खाते से जोड़ना ज़रूरी है। तभी फोन चालू होगा। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि आधार से लिंक नहीं करना है। कुमार संभव ने लिखा है कि यह साफ नहीं है कि कोर्ट का आदेश यहां लागू होता है या नहीं। छत्तीसगढ़ सरकार डेटा वेयरहाउस भी बनाने जा रही है जहां इस तरह की जानकारियां संरक्षित की जाएंगी। फोन में जो एप होंगे उनके डेटा को इन वेयरहाउस में रखा जाएगा। सरकार डेटा एनालिटिक सेंटर भी बनाने जा रही है। जहां अलग अलग चैनल से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर लोग क्या सोच रहे हैं, उसका विश्लेषण किया जाएगा और भविष्यवाणी भी। 29 अगस्त की बैठक में राजस्थान सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों को कहा कि उन्हें लाभार्थियों का डेटा सरकार से शेयर करना होगा। एक एक व्यक्ति का डेटा देना होगा।

हाल ही में केब्रीज एनालिटिका का विवाद हुआ था। बिना यूज़र की जानकारी की उसके सोशल मीडिया डेटा को लेकर संभावित वोटर का पता लगाने का प्रयास हो रहा था, उसे अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास हो रहा था। कांग्रेस पार्टी का नाम इसमें भी जुड़ा था। अब दोनों राज्यों में एक विशेष कंपनी के ज़रिए लोगों तक फोन पहुंचा कर नागरिक का कैसा डेटा हासिल होगा, उस डेटा का क्या होगा, यह समझना ज़रूरी है। दुनिया भर में डेटा के ज़रिए चुनावी राजनीति को प्रभावित करने के खेल रचे जा रहे हैं। इस खेल में बड़े बिजनेस के लिए संभावनाएं बनाई जा रही हैं और बदले में नेता या पार्टी के लिए संभावनाएं बन रही हैं। अब हम या आप इस बात को सामान्य रूप से नहीं समझ पाते हैं कि इसके ज़रिए लोकतंत्र और उसमें लोक की संस्था को कैसे प्रभावित किया जाएगा। कुछ कुछ अंदाज़ा कर सकते हैं मगर ठोस समझ बनाना आसान नहीं। दुनिया भर में ऐसी बातों का गहन अध्ययन होता है। भारत में अध्ययन के नाम पर राम मंदिर की बात होती है।

नोट- मैंने यह लेख बिजनेस स्टैंडर्ड के कुमार संभव श्रीवास्वत की लंबी रिपोर्ट के आधार पर लिखा है। कई पैराग्राफ सीधे सीधे अनुवाद किए हैं। कुमार का शुक्रिया। ऐसी रिपोर्ट का। कम से कम प्रयास करने का कि डेटा और फोन के इस निर्दोष से लगने वाले बंटवारे के क्या परिणाम हो सकते हैं।

(ये लेख रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार लिया गया है।)

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