2022-23 में मनरेगा के तहत 1 करोड़ 6 लाख रोजगार घटे

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नई दिल्ली। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसकी शुरूआत 2 अक्टूबर 2009 को की गई। योजना का उद्देश्य था ग्रामीण इलोकों में ग्रामीणों को रोजगार की गारंटी प्रदान करना। जिसके तहत ग्रामीण इलाकों में प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को 100 दिन की रोजगार गारंटी दिया जाना था। मनरेगा जब लागू हुआ था तब ये योजना सैकड़ों ऐसे परिवरों के लिए एक उम्मीद बन कर आई थी जिन्हें एक वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं थी। लाखों परिवारों ने इस योजना का लाभ उठाया।

लेकिन आज मनरेगा का लाभ उठाने वाले लाखों परिवार इससे वंचित हो गए हैं। कोविड- 19 महामारी के बाद से इस योजना का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या लगातार कम हो रही है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 6.19 करोड़ परिवारों ने 7.25 करोड़ की तुलना में ग्रामीण नौकरी कार्यक्रम का लाभ उठाया। जबकि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020-21 और 2021-22 और में यह संख्या 7.55 करोड़ थी।

हालांकि, मनरेगा के तहत काम की मांग अभी भी कोविड-19 महामारी से पहले की तरह ही है। जब योजना का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या 2019-20 में 5.48 करोड़ और 2018-19 में 5.27 करोड़ थी। मनरेगा को साल 2006-07 में देश के 200 सबसे पिछड़े ग्रामीण जिलों में शुरू किया गया था और 2007-08 के दौरान अतिरिक्त 130 जिलों में विस्तारित किया गया और 2008-09 से पूरे देश में इस योजना का विस्तार किया गया।

इस योजना में 2020-21 के दौरान काम की मांग में तेजी देखी गई, जब 7.55 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने कोविड-19 के कहर के मद्देनजर इसका रिकॉर्ड लाभ उठाया। असल में, यह योजना 2020 में महामारी के कारण लगी लॉकडाउन के दौरान अपने गांव लौटने वाले प्रवासियों के लिए एक सुरक्षा जाल बन गई। हालांकि, 2020-21 के बाद से यह आंकड़े घट रहे हैं। जैसे साल 2021-22 में ये आंकड़ा 7.25 करोड़ था जबकि 2022-23 में ये घटकर 6.19 करोड़ हो गया।

”कोविड-19 के बाद आई मंदी के बाद इस साल की शुरुआत में संसद में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में मनरेगा के काम की मासिक मांग में साल-दर-साल गिरावट के लिए “मजबूत कृषि विकास और अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सामान्यीकरण” को जिम्मेदार माना गया था।

हालांकि, मनरेगा का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या में गिरावट के लिए कार्यकर्ता राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली ऐप (एनएमएमएस), आधार आधारित भुगतान प्रणाली के जरिये अनिवार्य उपस्थिति की शुरुआत और बजट में कटौती को दोष देते हैं। एक संसदीय स्थायी समिति ने भी वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए मनरेगा के बजट में 29,400 करोड़ रुपये की कटौती पर चिंता जताई है।

मनरेगा प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 100-दिवसीय मजदूरी रोजगार की गारंटी देता है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2021-22 में 50.07 दिनों से 2022-23 के दौरान प्रति परिवार प्रदान किए गए रोजगार के औसत दिन भी घटकर 47.84 दिन हो गए। 2020-21 में यह आंकड़ा 51.52 दिन रहा। वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान प्रति परिवार प्रदान किए गए रोजगार के औसत दिन कोविड से पहले 2019-20 में दर्ज किए गए 48.4 दिनों के आंकड़े से भी कम है।

केवल 36.01 लाख परिवारों ने 2022-23 के दौरान नरेगा के तहत 100-दिवसीय मजदूरी रोजगार पूरा किया, जो कि पिछले पांच वर्षों में सबसे कम है। इससे पहले ये आकड़े साल 2018-19 में 52.59 लाख, 2019-20 में 40.60 लाख, 2020-21 में 71.97 लाख और 2021-22 में 59.14 लाख थे।
यह देखते हुए कि मनरेगा बेरोजगार लोगों के लिए “सहायता का एक अंतिम उपाय” है, ग्रामीण विकास और पंचायती राज की स्थायी समिति ने बजट कटौती पर चिंता जताते हुए ने कहा है कि, “मनरेगा के लिए बजट घटा कर 2022-23 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 2023-24 के लिए 29,400 करोड़ कर दिए गए हैं।“

“योजना को संचालित करने वाला अधिनियम ग्रामीण आबादी के ऐसे वंचित वर्गों को ‘काम का अधिकार’ देता करता है जो काम करना चाहते हैं। डीएमके सदस्य कनिमोझी करुणानिधि की अध्यक्षता वाली समिति ने बजट सत्र के दौरान संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा कि यह योजना बेरोजगार वर्ग के लिए सहायता का अंतिम उपाय है, जिनके पास उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को खिलाने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है।

(कुमुद प्रसाद जनचौक की सब एडिटर हैं।)

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