Sunday, April 2, 2023

सिलगेर आंदोलन के 134 दिन, सुराक्षाबलों का कैंप हटाने के लिए एक बार फिर जुटे ग्रामीण

तामेश्वर सिन्हा
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बस्तर(छग): छत्तीसगढ़ में लगातार बस्तर के आदिवासी आन्दोलनरत हैं, बस्तर के सुकमा-बीजापुर बॉर्डर से लगे सिलगेर में कैंप के विरोध में पिछले 134 दिनों से ग्रामीणों का आन्दोलन जारी है। हालांकि बुधवार से आंदोलन ने जोर पकड़ लिया है। कोरोना के बढ़ते प्रकोप के चलते ग्रामीण जून माह के दूसरे सप्ताह में आंदोलन स्थल से वापस घर लौट गए थे। लेकिन अपनी मांगों को लेकर लगातार सरकार से गुहार लगा रहे थे। वहीं बुधवार को एक बार फिर से यहां ग्रामीणों की भीड़ इकठ्ठी होनी शुरू हुई है।

हालांकि इस बार ग्रामीणों की संख्या थोड़ी कम है। ग्रामीणों ने एक तरफ जहां पुलिस कैंप को हटाने की मांग की है तो वहीं दूसरी तरफ बस्तर आईजी सुंदरराज पी और बीजापुर एसपी कमलोचन कश्यप को सजा देने की मांग भी उठी है। 

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सिलगेर व इसके आस-पास के केवल 1-2 गांव के ही ग्रामीण कैंप का विरोध करने के लिए पहुंचे हुए हैं। गुरुवार को भी ग्रामीणों का आंदोलन जारी है। ग्रामीणों ने कहा कि, हमें सिलगेर में न तो सड़क चाहिए और न ही पुलिस कैंप। जब तक कैंप नहीं हटेगा हम इसी तरह आंदोलन में डटे रहेंगे।

ग्रामीणों ने कहा कि, हम अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे उस समय पुलिस ने हम पर गोलियां बरसानी शुरू की थी। इस घटना में तीन लोग मारे गए थे। वहीं भगदड़ में भी एक महिला की भी मौत हुई थी। इस घटना को लेकर ग्रामीणों ने आईजी और एसपी को सजा देने की मांग भी की है। ग्रामीणों ने कहा कि, अभी खेती किसानी का समय है इस लिए कम संख्या में पहुंचे हैं। लेकिन हमारी मांगें पूरी नहीं होती है तो हम एक बार फिर विशाल आंदोलन करेंगे।

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12 मई को सुरक्षाबलों का खुला था कैंप, 13 मई से जारी है आंदोलन

सुकमा व बीजापुर जिले की सरहद पर स्थित सिलगेर में 12 मई को सुरक्षाबलों का कैंप स्थापित किया गया था। वहीं 13 मई की सुबह से ही यहां कैंप को हटाने के लिए हजारों की संख्या में ग्रामीण जुट गए थे। इस बीच सुरक्षाबलों और ग्रामीणों के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी। ग्रामीणों के आरोपों के अनुसार जवानों ने स्थानीय नागरिकों पर फायरिंग किया था। पुलिस द्वारा चलाई गई गोली लगने से 3 लोगों की मौत व भगदड़ में एक गर्भवती महिला की मौत हुई थी।

सरकार से लगातार हो रही बातचीत व कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए प्रदर्शन कर रहे ग्रामीण 28 दिन बाद घर लौट गए थे।

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