2002 गुजरात दंगा : 20 वर्ष तक न्याय के लिए संघर्ष करते हुए हमसे विदा हुईं ज़ाकिया जाफरी

Estimated read time 2 min read

गुजरात के कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा पत्नी ज़ाकिया जाफरी अब हमारे बीच नहीं रहीं। एहसान जाफरी 28 फरवरी 2002 को गुजरात में हुए दंगों में मारे गए थे। वे अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी के 69 लोगों को बचाते हुए मारे गए थे।

उस दिन से लेकर ज़ाकिया जाफरी ने दंगाइयों को सज़ा दिलाने की एक लंबी लड़ाई लड़ी। ज़ाकिया ने सबसे पहली शिकायत 8 जून 2006 को गुजरात के पुलिस महानिदेशक से की। उन्होंने अपनी शिकायत में यह कहा कि गुजरात के दंगे एक बड़े षड़यंत्र का हिस्सा थे, जिसमें वहां के मुख्यमंत्री के शामिल होने की संभावना हो सकती है।

उसके बाद 28 फरवरी 2007 को उन्होंने गुजरात उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि वह एफआईआर दर्ज करें और मोदी तथा अन्य 62 के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश दें। न्यायमूर्ति एम. आर. शाह उनकी मांग नामंजूर कर देते हैं।

उसके बाद जाकिया ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया। जाकिया के अनुरोध पर सर्वोच्च न्यायालय ने 3 मार्च 2008 को गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया। उसके बाद 2009 की 27 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने SIT को, जो गुजरात दंगों की जांच कर रही थी, ज़ाकिया की शिकायत पर ध्यान देने का आदेश दिया। इस पर SIT ने मुख्यमंत्री मोदी से 9 घंटों तक पूछताछ की और 14 मई को सर्वोच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट दी।

एमिकस क्यूरी रामचन्द्रन ने अपनी दस पेज की रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को दी जो एसआईटी को और जांच करने का आदेश देती है। 2011 के मई माह में रामचन्द्रन एसआईटी की रिपोर्ट में कई कमियां पाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय उन्हें स्वतंत्र गवाहों का परीक्षण कर रिपोर्ट देने को कहता है। 

25 जुलाई 2011 को रामचन्द्रन अपनी रिपोर्ट दे देते हैं। 12 सितंबर 2011 को सर्वोच्च न्यायालय मामले से संबंधित दस्तावेज निचली अदालतों को आगे की कार्यवाही के लिए भेज देते हैं। अंततः 2012 की 8 फरवरी को एसआईटी मेट्रोपॉलिटन मेजिस्ट्रेट मोदी और अन्यों को क्लीन चिट देते हुए रिपोर्ट देती है।

अप्रैल 2013 को ज़ाकिया मेजिस्ट्रेट के सामने प्रोटेस्ट करती हैं। इस पर उसी वर्ष 26 दिसंबर को मेजिस्ट्रेट SIT की रिपोर्ट को सही मानता है और ज़ाकिया की प्रोटेस्ट को नामंजूर कर देता है। 18 मार्च 2014 को ज़ाकिया गुजरात उच्च न्यायालय में अपील करती हैं। तीन वर्ष बाद उच्च न्यायालय ज़ाकिया की अपील नामंजूर कर देता है।

इस पर ज़ाकिया सर्वोच्च न्यायालय में अपील करती हैं। चार साल के बाद 2018 में सर्वोच्च न्यायालय मोदी को दी गई क्लीन चिट को सही मानता है और ज़ाकिया और तीस्ता सीतलवाड़ की आलोचना करता है और उनके विरूद्ध उचित कार्यवाही आवश्यक बताता है।

सर्वोच्च न्यायालय के 24 जून 2022 के आदेश के अनुसार 25 जून 2022 को अहमदाबाद पुलिस सीतलवाड़, पूर्व पुलिस महानिदेशक आर. बी. श्रीकुमार, पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट के विरूद्ध एफआईआर दाखिल करता है और उन पर मोदी के विरूद्ध बेबुनियाद आरोप लगाने का अपराध लगाता है। इस तरह ज़ाकिया 20 वर्ष तक संघर्ष करते हुए हमसे विदा हो गईं।

(टीओआई से साभार)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author