2024 ओलंपिक: अपनी भूमिका निभाने में नाकाम भारतीय कुश्ती संघ

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2019 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में 53 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीतने वाली विनेश फोगाट, 2020 के टोक्यो ओलंपिक में 53 किलोग्राम में हिस्सा ले चुकी थीं।

लेकिन उन्हें पेरिस ओलंपिक के लिए 50 किलोग्राम के वर्ग में शिफ्ट होना पड़ा क्योंकि अंतिम पंघाल ने 53 किलोग्राम वर्ग में ओलंपिक कोटा सुरक्षित किया था।

विनेश फोगाट ओलंपिक मेडल के अपने सपने को पूरा करने के लिए 53 किलोग्राम के बदले 50 किलोग्राम वर्ग में आने को तैयार तो हो गईं लेकिन ये बेहद चुनौतीपूर्ण था।

53 किलोग्राम वर्ग के अंदर होना भी उनके लिए उस वक्त आसान नहीं रह गया था, ऐसे में और तीन किलोग्राम कम करने की चुनौती बेहद मुश्किल चुनौती थी। लेकिन ना केवल विनेश ने अपने वजन को कम किया बल्कि पेरिस ओलंपिक का कोटा भी हासिल किया।

उन्होंने पेरिस में जापान की यूई सुसाकी को हराया। यूई टोक्यो ओलंपिक की गोल्ड मेडलिस्ट और चार बार की वर्ल्ड चैंपियन थीं। इस जीत के साथ ही विनेश गोल्ड मेडल की दावेदार बनकर उभरीं। लेकिन फ़ाइनल मुक़ाबले से वह अपना वजन तय कैटेगरी के भीतर नहीं रख सकीं। वहीं दूसरी ओर 53 किलोग्राम वर्ग में अंतिम पंघाल पहले ही राउंड में बाहर हो गईं।

उन्होंने बताया है कि दो दिनों तक वजन कम करने की कोशिशों के चलते उन्होंने कुछ खाया पिया नहीं और बिना किसी एनर्जी के वह पहले राउंड में हार गईं।

इस पूरे मामले पर 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भारतीय कुश्ती दल के मुख्य कोच और 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में महिला कुश्ती दल के मुख्य कोच रहे पीआर सोंधी कहते हैं, “जहां तक विनेश के 100 ग्राम वजन बढ़ने की बात है, इसके लिए उनकी टीम ज़िम्मेदार है। जब टीम को पहले से मालूम था कि विनेश अपने वास्तविक वजन से कम वर्ग में हिस्सा ले रही हैं, तो उन्हें उसके हिसाब से तैयारी करनी थी। उन्हें पहले दिन निर्धारित मात्रा से ज़्यादा इनटेक खाने की अनुमति क्यों दी गई? इन बातों का ध्यान रखने की ज़िम्मेदारी उनके कोच, डायटिशियन और डॉक्टर की थी।”

सोंधी अंतिम पंघाल के मामले में भी यही सवाल उठाते हैं, “जब अंतिम पंघाल ने 53 किलोग्राम वर्ग में हिस्सा लिया, तो उन्हें अपना वजन कम करने के लिए दो दिनों तक भूखे रहने के नौबत क्यों आयी? अंतिम के कोच और सपोर्ट स्टॉफ़ क्या कर रहे थे? मुक़ाबले से एक दिन पहले उनका वजन एक सीमा से ज़्यादा क्यों बढ़ा कि उन्हें उसे कम करने के लिए भूखे रहना पड़ा और उनका एनर्जी लेवल कम हो गया?”

वहीं 57 किलोग्राम वर्ग में अंशु मलिक भी पहले ही मुक़ाबले में हार गईं। निशा दहिया की किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया।

68 किलोग्राम वर्ग में क्वार्टर फ़ाइनल मुक़ाबले में बढ़त कायम करने के बाद इंजरी के चलते उन्हें बाहर होना पड़ा। 76 किलोग्राम वर्ग में रीतिक हुड्डा भी क्वार्टर फ़ाइनल से आगे नहीं बढ़ सकीं।

विनेश फोगाट के मेडल से चूकने के बाद अमन सेहरावत ने भारत के लिए कांस्य पदक जीता। महज 21 साल की उम्र में वे पहली बार ओलंपिक में हिस्सा ले रहे थे।

अमन सेहरावत बधाई के पात्र हैं, उनको धन्यवाद देना चाहिए नहीं तो भारतीय दल पेरिस से खाली हाथ लौटता।

सोंधी पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल के उम्मीद से कमतर प्रदर्शन के लिए भारतीय कुश्ती संघ को भी ज़िम्मेदार ठहराते हैं। उन्होंने कहा, “भारतीय कुश्ती संघ भी अपनी भूमिका निभाने में नाकाम रहा। ओलंपिक के स्तर पर खिलाड़ियों को कहीं ज़्यादा बेहतर देखभाल और मेंटल सपोर्ट की ज़रूरत होती है। लेकिन संघ की ओर से इस बात का ख़्याल नहीं रखा गया।

दरअसल भारतीय कुश्ती में मुश्किलों की शुरुआत 2023 के शुरुआत से हुई थी।

साल की शुरुआत में भारतीय कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ कुछ कुश्ती खिलाड़ियों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। इस प्रदर्शन में बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक जैसे पहलवान शामिल थे।

इन पहलवानों ने जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन के दौरान कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर आरोप भी लगाए। इसके बाद भारतीय ओलंपिक संघ ने कुश्ती संघ के मामलों को देखने के लिए एक एडहॉक कमेटी का गठन किया। विनेश फोगाट इस विरोध प्रदर्शन का चेहरा बनकर उभरीं।

भारतीय कुश्ती संघ इन खिलाड़ियों की मांगों को मानने के लिए तैयार नहीं था और बृज भूषण शरण सिंह के बाद उनके निकट सहयोगी संजय सिंह के कुश्ती संघ के अध्यक्ष बनने के बाद मामला और बिगड़ता गया।

इन सबका असर खिलाड़ियों की ओलंपिक तैयारियों पर पड़ा। कुश्ती संघ के निलंबन के दौरान खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ, पहलवानों की तैयारी के लिए विस्तृत योजना बनाने में नाकाम रहे और ना ही ज़रूरी कोचिंग कैंपों का आयोजन किया गया।

2012 के लंदन ओलंपिक में भारत की ओर से ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली महिला पहलवान गीता फोगाट कहती हैं, “पेरिस ओलंपिक से पहले कुश्ती संघ का कामकाज एक साल से ज़्यादा समय तक बाधित रहा। कोई राष्ट्रीय कोचिंग कैंप का आयोजन नहीं हुआ।

पहलवानों को अपने-अपने कोच और सपोर्ट स्टॉफ के साथ तैयारी के लिए मजबूर होना पड़ा। पेरिस में हमारा कुश्ती दल ऐसा था, जैसे अलग-अलग दल वहां हिस्सा ले रहे हों और किसी को एक दूसरे से कोई मतलब नहीं है। जबकि वहां खिलाड़ियों को एक दूसरे की मदद के लिए होना चाहिए था।”

(यहां कुछ इनपुट बीबीसी से लिए गए हैं)

(शैलेन्द्र चौहान साहित्यकार हैं और जयपुर में रहते हैं।)

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