साल 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए नरोदा कांड के सभी 67 आरोपियों को अहमदाबाद की सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया। घटना के 21 साल बाद गुरुवार को सुनाए फैसले में कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं मिले हैं। गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी और विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल समेत 86 लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था। इनमें से 18 लोगों की मौत हो चुकी है। एक आरोपी प्रदीप कांतिलाल संघवी को पहले ही सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था।
जज एसके बक्शी की अदालत ने 16 अप्रैल को इस मामले में फैसले की तारीख 20 अप्रैल तय की थी। सभी आरोपी जमानत पर थे। साल 2010 में शुरू हुए मुकदमे के दौरान दोनों पक्ष ने 187 गवाहों और 57 चश्मदीद गवाहों से जिरह की। लगभग 13 साल तक चले इस केस में 6 जजों ने लगातार मामले की सुनवाई की।
गोधरा कांड के अगले दिन यानी 28 फरवरी को नरोदा गांव में बंद का ऐलान किया गया था। इसी दौरान सुबह करीब 9 बजे लोगों की भीड़ बाजार बंद कराने लगी, तभी हिंसा भड़क उठी। भीड़ में शामिल लोगों ने पथराव के साथ आगजनी, तोड़फोड़ शुरू कर दी। देखते ही देखते 11 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
इसके बाद पाटिया में भी दंगे फैल गए। यहां भी बड़े पैमाने पर नरसंहार हुआ। इन दोनों इलाकों में 97 लोगों की हत्याएं की गई थीं। इस नरसंहार के बाद पूरे गुजरात में दंगे फैल गए थे। इस मामले में SIT ने तत्कालीन भाजपा विधायक माया कोडनानी को मुख्य आरोपी बनाया था। हालांकि इस मामले में वे बरी हो चुकी हैं।
माया कोडनानी ने खुद पर लगे आरोपों पर कहा था कि दंगे वाले दिन सुबह के वक्त वह गुजरात विधानसभा में थीं। दोपहर में वे गोधरा ट्रेन हत्याकांड में मारे गए कारसेवकों के शवों को देखने के लिए सिविल अस्पताल पहुंची थीं। जबकि कुछ चश्मदीद ने कोर्ट में गवाही दी थी कि कोडनानी दंगों के वक्त नरोदा में मौजूद थीं और उन्होंने भीड़ को उकसाया था।
कोडनानी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से संबंधित मामले में निचली अदालत ने अलग से दोषी ठहराया था और 28 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। नरोदा पाटिया में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी। साल 2002 के दंगों के नरौदा पाटिया केस में हाईकोर्ट माया कोडनानी को बरी भी कर चुका है।
वहीं बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी की सजा को आजीवन कारावास से कम कर 21 साल कर दिया था। इस मामले में भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष और मौजूदा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी माया कोडनानी के लिए बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए थे। शाह ने बयान दिया था कि पुलिस उन्हें और माया को सुरक्षित जगह ले गई थी क्योंकि गुस्साई भीड़ ने अस्पताल को घेर लिया था।
2002 में गुजरात के गोधरा स्टेशन पर एक दुखद घटना हुई थी। अहमदाबाद जाने के लिए साबरमती एक्सप्रेस गोधरा स्टेशन से चली ही थी कि किसी ने चेन खींचकर गाड़ी रोक दी और फिर पथराव शुरू हो गया। बाद में ट्रेन के S-6 कोच में आग लगा दी गई। कोच में अयोध्या से लौट रहे 59 तीर्थयात्री थे, सभी की मौत हो गई थी।
गोधरा कांड के बाद भड़के दंगों में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जिनमें 790 मुसलमान और 254 हिंदू थे। गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी को अहमदाबाद की ‘गुलबर्ग हाउसिंग सोसाइटी’ में बेकाबू भीड़ ने 69 लोगों की हत्या कर दी थी। इन दंगों से राज्य में हालात इस कदर बिगड़ गए कि स्थिति काबू करने के लिए तीसरे दिन सेना उतारनी पड़ी।
फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद कुछ आरोपियों ने अदालत के बाहर ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए। जिन आरोपियों को बरी किया गया उनमें गुजरात सरकार में मंत्री रहीं कोडनानी, विहिप नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी शामिल हैं।
मामले में 86 अभियुक्तों में से 82 का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट चेतन शाह ने कहा कि उन्होंने सुनिश्चित किया कि निर्दोषों को बरी कर दिया जाए। उन्होंने इसके लिए अदालत में 7,719 पृष्ठों में एक लिखित तर्क प्रस्तुत किया।
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता शहशाद पठान ने कहा कि बरी करने के आदेश को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी जाएगी। पठान ने कहा कि हम उन आधारों का अध्ययन करेंगे जिसपर विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी करने का फैसला किया और आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पीड़ितों को न्याय से वंचित कर दिया गया है। सवाल यह है कि पुलिस कर्मियों की मौजूदगी में 11 लोगों को किसने जलाया?
नरोदा गाम में नरसंहार 2002 के उन नौ बड़े सांप्रदायिक दंगों के मामलों में से एक था, जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की नियुक्त एसआईटी ने की थी और जिसकी सुनवाई विशेष अदालतों ने की थी।
हाल ही में कलोल की घटना के 26 आरोपी हुए थे बरी
गुजरात की एक अदालत ने 2002 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान कलोल में अलग-अलग घटनाओं में अल्पसंख्यक समुदाय के 12 से अधिक सदस्यों की हत्या और सामूहिक बलात्कार के सभी 26 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। कुल 39 अभियुक्तों में से 13 की मामले के लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी और उनके खिलाफ मुकदमा समाप्त कर दिया गया था ।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं)
+ There are no comments
Add yours