Friday, April 19, 2024

नरोदा गाम: 21 साल पहले हुई थी परिजनों की हत्या अब हुआ न्याय का कत्ल

नई दिल्ली। अहमदाबाद के नरोदा गाम (गांव) में उदासी पसरी है, हर कोई हतप्रभ है। 21 साल पहले का खूनी मंजर गुरुवार को एक बार फिर उनकी आंखों के सामने अंधेरा बन कर छा गया। 2002 में नरोदावासियों के आंखों ने पुत्रों-पतियों, परिजन-पड़ोसी और रिश्तेदारों का कत्ल होते देखा था तो 2023 में न्याय की उम्मीद का कत्ल होते देखा। 2002 के कातिल तो गांव-मोहल्लों के छुटभैए गुंडे थे लेकिन 2023 में न्याय की उम्मीद का कत्ल करने वालों में वकील, नौकरशाह, सरकार और जज शामिल हैं। दिन-दहाड़े 11 लोगों को मौत की नींद सुला देने वाले आततायियों के खिलाफ जांच-दर-जांच के बाद भी कोई साक्ष्य न मिलना समझ के परे है।

गुजरात में गोधरा कांड में सैकड़ों लोग मारे गए थे। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा की नौ घटनाओं की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी (विशेष जांच दल) को सौंपी गई थी। इन्हीं में एक केस नरोदा गाम में हुई सांप्रदायिक हिंसा का था। 28 फरवरी, 2002 को हुई घटना में 4 महिलाओं समेत एक समुदाय के 11 लोग मारे गए थे। इसके बाद पुलिस ने 86 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था, बाद में निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को केस सौंपा था। लेकिन 20 अप्रैल को विशेष कोर्ट ने सारे आरोपियों को बरी कर दिया।

विशेष अदालत द्वारा नरोदा गाम मामले में सभी 67 अभियुक्तों को बरी किए जाने को गवाहों ने पीड़ितों के लिए “काला दिन” बताते हुए इस फैसले को “विवेकहीन” करार दिया। नरोदा गाम दंगा पीड़ितों का कहना है कि आज न्याय की हत्या कर दी गई है।

इम्तियाज अहमद हुसैन कुरैशी (50), जो अभियोजन पक्ष के गवाह थे, ने कहा, “मैंने 17 अभियुक्तों की पहचान की थी, जिनमें जयदीप पटेल (विहिप के पूर्व नेता), प्रद्युम्न पटेल, तत्कालीन पार्षद वल्लभ पटेल और अशोक पटेल शामिल थे। मैंने उन्हें भीड़ को भड़काते और मस्जिद को जलाने, खास जगहों पर हमला करने का इशारा करते देखा था। मैंने उन्हें परिवारों को जलाते हुए देखा। पांच लोगों को मेरी आंखों के सामने जलाकर मार डाला। मुझे आरोपियों के पहने हुए कपड़ों का रंग भी याद आया। मैंने सारे सबूत दिए।

“उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जानी चाहिए थी। इसके बजाय उनके बरी होने से मेरा न्यायपालिका से विश्वास उठ गया। हम पीड़ितों के लिए यह काला दिन है। जो मर गए, क्या वे फिर सुसाइड करके मरे? क्या उन्होंने खुद को जलाकर मार डाला?

“लेकिन हम लड़ाई जारी रखेंगे, हम इसे गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती देंगे। 21 साल हो गए हैं लेकिन मैं नरसंहार के विवरण को नहीं भूल सकता। कुंभार वास में एक नई दुल्हन आई थी, उसकी शादी को 15 दिन भी नहीं हुए थे। मैंने उसे अपनी आंखों से छलनी होते देखा है। उसका पूरा परिवार मारा गया और वह अपने मायके लौट गई। क्या हमने झूठ देखा है?

“21 साल की देरी के बावजूद, हमें अभी भी अदालत से उम्मीद थी। हमें विश्वास था कि अदालत में विवेक से फैसला होगा। भले ही मामूली अपराधों के अभियुक्तों के बरी होने को खारिज कर दूं, हम मानते थे कि जिन पर हत्या का आरोप लगाया गया है, उनमें से कम से कम कुछ को दोषी ठहराया जा सकता है। 2002 में 11 लोगों की हत्या हुई थी और आज इंसाफ की हत्या हुई है।”

कुरैशी ने जिस नई दुल्हन का नाम लिया वह नरोदा गाम हत्याकांड में अपने परिजनों को खोने वालों में मदीनाबेन आरिफहुसैन मालेक थीं।

जैसा कि नानावती आयोग की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, मदीनाबेन ने 2002 में पुलिस आयुक्त को लिखे एक पत्र में कहा था कि उनके पति, सास और दो भाइयों को मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी गई थी। मदीना ने भी आयोग के सामने गवाही दी थी लेकिन अदालत के सामने नहीं।

मामले के एक अन्य गवाह शरीफ मलिक (42) ने अदालत में माया कोडनानी और जयदीप पटेल समेत 13 अभियुक्तों की पहचान की और उनके खिलाफ गवाही दी थी, उन्होंने कहा: “यह फैसला इंगित करता है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ राज्य प्रायोजित हिंसा में भाग लेने वाले बरी हो जाएंगे। यह बड़े पैमाने पर लोगों के लिए एक अप्रत्यक्ष संदेश है। यह न्यायपालिका में हमारे विश्वास को कम करता है और वास्तव में न्यायपालिका की अनुपयुक्तता पर सवाल उठाता है।”

मलिक ने कहा, अगर जरूरत पड़ी तो हम अगले 21 साल और 50 दिनों तक अपील करेंगे। अदालत ने हमें निराश किया है लेकिन हम निराश होकर घर नहीं बैठ सकते।

जनचौक संवादाता ने प्रत्यक्षदर्शी और इस मामले के गवाह शरीफ मलिक से बात की। उन्होंने कहा कि “मैं इस केस का प्रत्यक्षदर्शी, गवाह और पीड़ित रहा हूं। यह दंगा मेरी नजरों के सामने शुरू हुआ था। माया कोडनानी और जयदीप पटेल ने मॉब को उकसाया था। हमारी मस्जिदों पर हमला हुआ। हमारे दुकानों को लूटा गया। एक ही घर में चार लोग मारे गए। 110 परिवारों के मकानों को लूट लिया गया और जला दिया गया।”

उन्होंने आगे बताया कि “गवाहों ने आरोपियों का पहचाना था। पूरा जजमेंट पोलिटिकली मैनेज किया गया है। यह हैरत में डाल देने वाला फैसला है। न्याय की उम्मीद में हम लोगों ने 21 साल निकाल दिये। और उसके बाद भी कुछ नहीं मिला। फैसला तो इन लोगों का पहले से तय था। लोगों को दिखाने और दुनिया को दिखाने के लिए यह प्रासेस किया गया। मैं इस फैसले को स्वीकार नहीं करता हूं।” यह फैसला दंगाइयों का खुला समर्थन है। हम हाईकोर्ट जाएंगे। दंगे की मुख्य साजिशकर्ता ही माया कोडनानी और जयदीप पटेल थे।”

“न्याय में पहले ही देरी हो चुकी थी, लेकिन अब इसे नकारा गया है।” यह कहना है 57 वर्षीय सायरा मंसूरी का। जो दंगे के समय 36 वर्ष की थीं और किसी तरह अपनी और अपने 7 वर्षीय बच्ची का जान बचाने में सफल हुई थीं। वे बताती हैं कि मैं आज भी उस एरिया में अपने दो बच्चों के साथ रहती हूं। मुझे उनके भविष्य की चिंता है। मुझे सरकार और व्यवस्था पर कोई भरोसा नहीं है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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