Thursday, March 28, 2024

झारखंड में बीते पांच वर्षों में हाथियों के हमले में मारे गए 462 लोग, 50 हाथियों की भी हुई मौत

भारतीय हाथी एलिफ़ास मैक्सिमस इंडिकस एशियाई हाथी की चार उपजातियों में से एक है। यह भारत सहित बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, कंबोडिया, चीन, लाओस, मलेशियाई प्रायद्वीप, बर्मा/म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड और वियतनाम में भी पाया जाता है।

भारत में यह अधिकतम संख्या में पाया जाता है। वहीं भारत के राज्यों की बात करें तो इसकी संख्या झारखंड में सबसे ज्यादा है। शायद यही वजह है कि भारतीय हाथी एलिफ़ास मैक्सिमस इंडिकस को झारखंड के राजकीय पशु के रूप में मान्यता प्राप्त है। 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अनुसार हाथी को आईयूसीएन द्वारा लुप्तप्राय प्रजातियों में वर्गीकृत किया गया है।

वैसे तो झारखंड में हाथियों के आतंक की खबरें बराबर सुर्खियों में रही हैं। गांवों में आकर फसलों को बर्बाद कर देना, इंसान को मार देना इस तरह की खबरें प्रायः देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। वहीं हाथियों की मौत की भी खबरें कभी कभी सुर्खियां बन जाती हैं। बिजली का करेंट लगना, ट्रेन से टकराना या तस्करों द्वारा उन्हें मार कर उनके दांत की तस्करी करना हाथियों की मौत के कारणों में शामिल है।

अगर पिछले पांच वर्षों की बात करें तो 2017 से 2022 तक राज्य में हाथियों के हमले में 462 लोग मारे गए हैं। यह आंकड़ा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का है। इस दौरान लगभग 50 हाथियों की भी अलग-अलग वजहों से मौत हुई है।

वन विभाग के आंकड़े के मुताबिक पांच साल में सिर्फ बिजली के करंट की चपेट में आने से 20 हाथी मारे गए। रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की चपेट में आने और तस्करों की वजह से भी हाथियों की मौत की दर्जनों घटनाएं हुई हैं। बीते फरवरी 2023 में 12 दिनों के भीतर राज्य के पांच जिलों हजारीबाग, रामगढ़, चतरा, लोहरदगा और रांची में हाथी के हमले में 16 लोगों की जान जा चुकी है।

हाथी के आतंक की स्थिति यह रही कि इन घटनाओं के बाद इन क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी गई। ग्रामीणों को खास तौर पर सूर्योदय और सूर्यास्त के दौरान अपने घरों के बाहर निकलने से मना किया गया।

हाथी के आतंक का भय का आलम यह हो गया था कि जब हाथी के हमले के शिकार चचगुरा के पुनई उरांव और गोयंदा उरांव के अंतिम संस्कार के लिए 22 फरवरी को लोग श्मशान घाट पर उनकी अंत्येष्टि की तैयारी में जुटे ही थे, कि फिर से हाथी के आने की अफवाह फैल गयी। यह सुनते ही ग्रामीण शवों को छोड़ कर भाग गये।

काफी देर बाद ग्रामीण जब आश्वस्त हुए कि हाथी आसपास में नहीं है, तब दहशत के बीच दोबारा सभी श्मशान घाट पहुंचे और मृतकों का अंतिम संस्कार किया। 21 फरवरी को रांची जिले के इटकी में झुंड से बिछड़े एक हाथी ने एक महिला समेत चार ग्रामीणों को मार डाला था।

पुनई उरांव को कुचलने के बाद हाथी उसके शव के पास ही बैठा रहा। इस दौरान ग्रामीणों और वन विभाग के अधिकारियों ने हाथी को वहां से भगाने की कोशिश की। जिससे हाथी गुस्से में आकर चिंघाड़ने लगा और भीड़ की ओर दौड़ पड़ा और उस वक्त उसकी जद में आए एक ग्रामीण गोयंदा उरांव को सूंड में लपेट कर दूर फेंक दिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया, इलाज के लिए बेड़ो अस्पताल ले जाने के दौरान रास्ते में ही उसकी मौत हो गयी।

7 फरवरी को हाथियों की झुंड ने देर रात हजारीबाग शहरी क्षेत्र के खीरगांव में चार लोगों को कुचल डाला। जिससे दो लोगों की मौत हो गई। 20 फरवरी को लोहरदगा जिले में हाथियों ने 4 लोगों को मार डाला था।

राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव) शशिकर सामंता ने बताया कि वन संरक्षक की अध्यक्षता में चार मंडलों में वन अधिकारियों की एक समिति बनाई गई है, जो इस बात की जांच कर रही है कि झुंड से बिछड़ा एक हाथी अचानक इतना उग्र क्यों हो गया?

हाथियों के गुस्से की वजहें जानने के लिए पिछले तीन-चार दशकों में कई अध्ययन और शोध हुए हैं और इन सभी के निष्कर्ष में यह बात समान रूप से सामने आई है कि मानवीय गतिविधियों ने हाथियों के प्राकृतिक अधिवास और उनके आने-जाने के परंपरागत रास्तों को लगातार प्रभावित किया है।

वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) ने साल 2017 में अपने एक रिपोर्ट में बताया था कि झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दक्षिण पश्चिम बंगाल के 21 हजार वर्ग किमी का क्षेत्र हाथियों का आवास है। देशभर में हाथियों के हमले में जितने लोगों की जानें जाती हैं, उनमें से 45% इन्हीं इलाकों के लोग होते हैं। आधिकारिक आंकड़े के अनुसार देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का 11% हाथी झारखंड में हैं।

ऐसे में चिंताजनक की बात यह है कि यहां हाथियों की संख्या में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। राज्य में आखिरी बार 2017 में हाथियों की गिनती हुई थी, जिसमें इनकी संख्या 555 बताई गई थी, जबकि इसके पहले 2012 में हुई गणना में इनकी संख्या 688 थी।

वहीं हाथियों के हमले में होने वाली मौतों का सिलसिला भी नहीं थम रहा है। 22-23 में अब तक हाथियों के हमले में 100 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। 21-22 में राज्य में 133 लोगों की जान गई थी, तो वर्ष 20-21 में 84 लोग मारे गए थे। पर्यावरण विशेषज्ञ मानते हैं कि एक जंगल से दूसरे जंगल हाथियों के सुरक्षित आने-जाने के लिए कॉरिडोर विकसित किए जाने चाहिए। कॉरिडोर ऐसे हों, जहां मानवीय गतिविधियां कम से कम हों।

देश के 22 राज्यों में 27 हाथी कॉरिडोर अधिसूचित हैं। जबकि इनमें से झारखंड में एक भी हाथी कॉरिडोर नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हाथियों के 108 कॉरिडोर चिह्नित हैं। इनमें 14 झारखंड में हैं, लेकिन एक भी अधिसूचित नहीं है। ऐसे में हाथियों के कॉरिडोर वाले इलाकों में भी बगैर सोचे-समझे निर्माण या खनन कार्य कराए जा रहे हैं।

प्रोजेक्ट एलीफेंट के लिए भारत सरकार की संचालन समिति के पूर्व सदस्य डी.एस. श्रीवास्तव ने पिछले दिनों बताया था कि अनियोजित विकास कार्य, खनन गतिविधियों, अनियमित चराई, जंगल की आग और नक्सल उन्मूलन के नाम पर सुरक्षा बलों द्वारा जंगल के भीतर सर्च अभियान के बीच मुठभेड़ों से जंगल के जानवरों के रहवासों को बड़ा नुकसान पहुंचा है।

वहीं हाथियों को बांस और घास की छतरी के पतले होने के कारण भोजन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। झारखंड में सारंडा जंगलों से ओडिशा में सुंदरगढ़ तक के हाथी कॉरिडोर खनन के कारण नष्ट हो गए हैं।

1979 बैच के इंडियन फॉरेस्ट सर्विस के पूर्व अधिकारी नरेंद्र मिश्रा कहते हैं कि झारखंड में जंगलों के आसपास उत्खनन, जंगल विस्फोट, कथित नक्सल गतिविधियों के खिलाफ चलाए जाने वाले अभियान और वन तस्करों की करतूतों के कारण हाथियों का प्राकृतिक निवास लगातार प्रभावित हुआ है।

राज्य के कोल्हान प्रमंडल के जंगल हाथियों के प्राकृतिक आवास के लिए काफी मशहूर थे, लेकिन पिछले तीन दशक में उनकी आश्रयस्थल को काफी नुकसान पहुंचा है। वहीं बिना किसी रिसर्च के खनन में बढ़ोतरी हुई। दूसरी तरफ सड़क औरं रेलवे लाइन का विस्तार हुआ है। आबादी भी बढ़ी। 

नतीजा यह कि हाथी जब जंगल से बाहर निकलते हैं तो स्वाभाविक तौर पर उनका गुस्सा भड़क उठता है। उनके खाने के साधन जंगल में कम होते जा रहे हैं। जंगल भी सिकुड़ते जा रहे हैं, लोग भी हाथी को देखते उसके साथ छेड़छाड़ पर उतर आते हैं।

( विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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