Friday, March 29, 2024

झारखंड: 18 माह में 45 फर्जी कंपनियों के नाम पर 80 हजार 895 ट्रक चोरी का कोयला बाहर निकला, राज्यकर विभाग का खुलासा

झारखंड के कोयलांचल में जहां एक तरफ बंद कोयला खदानों से अवैध खनन कर कोयला निकासी का धंधा बेरोकटोक चल रहा है, वहीं क्षेत्र में फर्जी कंपनी बनाकर अरबों के कोयले की खरीद-बिक्री की जा रही है और दोनों ही कारोबार में गरीब-मजदूरों का इस्तेमाल हो रहा है। यह खुलासा राज्यकर विभाग ने किया है। उसके अनुसार इसमें 45 फर्जी (शेल) कंपनियों का इस्तेमाल हो रहा है।

बंद खदानों से अवैध खनन कर कोयला निकासी में क्षेत्र के गरीब मजदूरों सहित झारखंड से सटे पश्चिम बंगाल के मजदूरों का इस्तेमाल किया जा रहा है और आए दिन इस अवैध खनन में लगे मजदूरों की मौत की खबरें सुर्खियों में रही हैं। वहीं फर्जी कंपनी बनाकर अवैध कारोबार को असली जामा पहनाने में स्थानीय गरीबों का इस्तेमाल हो रहा है। जिन्हें भर पेट भोजन भी नसीब नहीं है, उन पर कभी कार्रवाई की गाज गिर सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक धनबाद कोयलांचल क्षेत्र से 18 माह में इन 45 फर्जी कंपनियों के नाम पर 80 हजार 895 ट्रक चोरी का कोयला बाहर निकला है। ये तमाम कोयला लदे ट्रक रास्ते में पड़ने वाले दर्जनों थानों व चेक पोस्ट से गुजरते हैं लेकिन कहीं भी किसी के द्वारा उन्हें न तो रोका जाता है और ना ही उनके कागजात की जांच की जाती है। जबकि सरकार की एजेंसी राज्यकर, जीएसटी सेंट्रल, खनन विभाग, डीटीओ व पुलिस 24 घंटे जांच में लगी रहती हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक इन 18 माह में 16,06,88,05,408.00 (16 अरब, छह करोड़, 88 लाख, पांच हजार, चार सौ आठ) रुपये का चोरी का कोयला बेचा गया है। इससे सरकार को 1,61,1900000.00 (एक अरब, 61 करोड़, 19 लाख) रुपये के टैक्स का चूना लगा है।

कोयले का खनन (फाइल)

इस मामले पर निर्दलीय विधायक सरयू राय का कहना है कि धनबाद में खुलेआम कोयला का अवैध कारोबार हो रहा है। चोरी हो रही है। यह अखबारों की सुर्खियां भी बन रही हैं, इसके बावजूद यहां के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी समझ से परे है। इस मुद्दे को उन्हें उठाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों को सीबीआई को खुद संज्ञान लेकर इसकी जांच करनी चाहिए। इतना ही नहीं यह मनी लॉन्ड्रिंग का भी बहुत बड़ा मामला है। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही रांची में सीबीआई एसपी से मिलकर मामले की जांच की मांग करेंगे और राजस्व चोरी से संबंधित छपी खबरों की प्रति केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंपेंगे।

उन्होंने कहा कि शिकायत मिली है कि भूली में बीसीसीएल के क्वार्टर को अवैध कोयला डिपो बना लिया गया है। प्रशासन को इसकी जांच करनी चाहिए। ऐसे लोगों पर सख्ती से कार्रवाई होनी चाहिए।

सरयू राय ने अवैध कोल कारोबार के लिए बीसीसीएल को भी जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि अपने लीज होल्ड एरिया में कोयला भंडारों की रक्षा, निगरानी, खनन व कारोबार की पूरी जिम्मेदारी बीसीसीएल की है। वह इससे भाग नहीं सकता है। जिस तरीके का माहौल धनबाद में है, उसमें बीसीसीएल प्रबंधन की नीयत पर सवाल उठना लाजमी है।

उन्होंने कहा कि अगर बीसीसीएल प्रबंधन इस अवैध कारोबार को रोकने में नाकामयाब है, तो उसे इसकी रिपोर्ट भारत सरकार या कोल इंडिया प्रबंधन को करनी चाहिए, लेकिन अब तक ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं भेजी गयी है। ऐसा लगता है कि बीसीसीएल के अधिकारियों की भी इस अवैध कारोबार में संलिप्तता हो सकती है। कोयले की लूट और अवैध कारोबार पर धनबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय कुमार झा ने रांची हाईकोर्ट में पीआईएल दर्ज कराया है।

निर्दलीय विधायक सरयू राय

बताते चलें कि राज्यकर की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 45 फर्जी कंपनियों ने फर्जी कागजात के सहारे 161.19 करोड़ की जीएसटी की चोरी की। उन लोगों ने 80,895 ई-वे बिल पर 16,606 करोड़ रुपये का दो नंबर का कोयला बेच दिया है। इन सभी फर्जी कंपनियों के खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई की अनुशंसा की गयी है। मामला पिछले 18 माह का है। रिपोर्ट के मुताबिक कागज पर कोयले की खरीद-बिक्री कर आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) का लाभ लिया गया है।

इस खेल में धनबाद सहित रांची, बोकारो, रामगढ़ व कोलकाता के शातिर खिलाड़ी व सफेदपोश भी शामिल हैं। कहना ना होगा कि कोयले की इस बिक्री में राज्यकर विभाग को जो टैक्स मिलना चाहिए था, उसे फर्जी कंपनियां आईटीसी के साथ एडजस्ट दिखाकर सरकार का 161.19 करोड़ रुपये का टैक्स डकार गयीं।

नियमतः बेचे गये माल का थ्री बी रिटर्न दाखिल करना होता है। अतः इस मामले में जब कंपनी द्वारा रिटर्न दाखिल नहीं किया गया, तो जांच शुरू हुई। जांच में एक के बाद एक फर्जी कंपनियों का नाम सामने आने लगे तब जाकर फर्जीवाड़ा का खुलासा हुआ।

जांच में पता चला कि 18 माह में इन 45 फर्जी कंपनियों ने 80,895 ई-वे बिल जनरेट किया। इस बिल के सहारे उन लोगों ने 1,606 करोड़ रुपये का अवैध कोयले का कारोबार कर लिया है। जांच में चोरी पकड़े जाने पर राज्यकर विभाग ने इन 45 कंपनियों पर माल का पांच प्रतिशत जीएसटी व 400 रुपये प्रति मीट्रिक टन शेष मिलाकर 161.19 करोड़ का टैक्स लगाया है।

इसके अलावा जीएसटी का तीन गुना पेनाल्टी भी लगाया जायेगा, लेकिन यह तब होगा जब ये कंपनियां पकड़ी जायेंगी। जो संभव नहीं है, क्योंकि इन कंपनियों के अवैध कारोबार में कागजी रूप से जुड़े लोगों में कोई भी नहीं है।

जानकारों की माने तो होता यह है कि कुछ गरीब मजदूरों को 10 से 15 रुपये मासिक वेतन देने का लालच देकर उनका आधार कार्ड व बिजली बिल ले लिया जाता है और उनका पेन कार्ड बनाया जाता है, जिसकी जानकारी मजदूर को नहीं होती है। इतना ही नहीं सामूहिक शादी-ब्याह करवाने के नाम पर उन जोड़ों से उनका आधार कार्ड व बिजली बिल लेकर पैन नंबर बनाया जाता और उसके फेक रेंट एग्रीमेंट व पैन नंबर से फर्जी कंपनी बनाकर ऑनलाइन निबंधन कराया जाता है।

विभिन्न खदानों से जो दो नंबर का कोयला निकलता है, उस कोयले को एक नंबर बनाने के लिए फर्जी कंपनी के नाम से ऑनलाइन ई-वे बिल (परमिट) जनरेट किया जाता है। उस परमिट से कोयले को या तो राज्य के बाहर भेजा जाता है या स्थानीय भट्टों में खपाया जाता है।

कोयला खनन

बता दें कि एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू हुआ। जीएसटी में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन का प्रावधान है। यहां पर इसी का फायदा उठाया गया। फर्जी कंपनी बनाकर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन कराया गया और ई-वे बिल (परमिट) निकालने का भी कोई लिमिट नहीं रहने के कारण कई फर्जी कंपनियों ने करोड़ों का परमिट जेनरेट कर दो नंबर का कोयला बेच दिया। नियम के मुताबिक, सेल किये गये माल का थ्री बी रिटर्न दाखिल करना होता है। जब कंपनी द्वारा रिटर्न दाखिल नहीं किया गया, तो जांच शुरू हुई। जांच में पूरा मामला सामने आया।

नियमत: किसी भी कंपनी को माह की दस तारीख को जीएसटीआर-1 भरना होता है, फिर माह की 20 तारीख को जीएसटीआर-3 बी रिटर्न दाखिल करना होता है। लेकिन ऐसी फर्जी कंपनियां यह नहीं भरती हैं। जब तक जांच शुरू होती है, तब तक फर्जी कंपनियां करोड़ों का ई-वे बिल निकालकर चोरी का कोयला दूसरे राज्यों में भेज देती हैं। जांच के बाद ना तो कंपनी मिलती है और ना ही कंपनी के बिजनेस सेंटर के पते का कुछ सत्यापन होता है और सबकुछ बस कागजों में रह जाता है।

इस मामले सवाल उठता है कि..

  • सरकारी एजेंसी राज्यकर, जीएसटी सेंट्रल, खनन विभाग, डीटीओ व पुलिस विभाग ने एक भी गाड़ी के कागजात की जांच क्यों नहीं की?
  • विभिन्न कोयला खदानों से कैसे निकला 20 लाख टन कोयला?
  • फर्जी कंपनी के नाम पर कैसे हो रहा निबंधन, स्पॉट जांच में क्यों नहीं पकड़ी गयी गड़बड़ी?
  • महिलाओं के नाम पर बन रही हैं फर्जी कंपनियां, फिर भी जांच क्यों नहीं?

इस फर्जीवाड़े का सबसे बड़ा कारण यह है कि तीन दिन में ऑटो रजिस्ट्रेशन का प्रावधान। अगर कोई कंपनी जीएसटी रजिस्ट्रेशन के लिए ऑनलाइन आवेदन करती है और अगर तीन दिन के अंदर स्पॉट वेरिफिकेशन नहीं हुआ, तो उस कंपनी का स्वत: रजिस्ट्रेशन हो जाता है। सीएसटी सेंट्रल में सबसे अधिक फर्जी कंपनियों का स्वत: रजिस्ट्रेशन हुआ है।

कोयला खनन

धनबाद जिले में छह अन्य कंपनियों ने भी चार माह में 21.31 करोड़ रुपये के माल का ई-वे बिल निकाला है। सभी छह कंपनियां धनबाद से जुड़ी हैं। इनकी जांच भी शुरू हो गयी है। जिनमें नायक इंटरप्राइजेज (एक करोड़, 91 लाख), अली ट्रेडिंग कंपनी (12 करोड़), हनुमान ट्रेडर्स (2 करोड़, 18 लाख), कन्हैया इंटरप्राइजेज (1 करोड़, 93 लाख), मां काली इंटरप्राइजेज (1 करोड़, 67 लाख), सफुदीन इंटरप्राइजेज (1 करोड़, 62 लाख) शामिल हैं।

ये सभी छह कंपनियां जीएसटी सेंट्रल से रजिस्टर्ड हैं। सूत्रों के अनुसार इनकी सूची सेंट्रल जीएसटी को भेजी गयी है। सेंट्रल जीएसटी ने जांच शुरू कर दी है।

इस मामले में फर्जी कंपनियों से जुड़े लोगों के जो नाम सामने आये हैं उनमें 18 महिलाओं और 24 पुरूषों के नाम हैं। 18 महिलाओं में 12 मुस्लिम महिलाओं के नाम शामिल हैं। जो अपने आप में आश्चर्यजनक है। अगर इनके यहां पुलिस प्रशासन पहुंचता भी है तो शायद ही इनके घरों में ढंग के बर्तन भी मिलेंगे।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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