हिसार। खबर आ रही है कि यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते यूक्रेन में एक भारतीय छात्र की मौत हो गयी। पूरे मुल्क में गम का माहौल है। शायद इस मौत पर प्रधानमंत्री भी शोक जाहिर कर दें। लेकिन दूसरी तरफ एक खबर हिसार से आ रही है बिहार के समस्तीपुर के एक गांव का 25 वर्षीय नौजवान जो दो वक्त की रोटी कमाने के लिए अपने परिवार को छोड़ हिसार आया हुआ था। 25 साल के उस नौजवान मजदूर की काम करते हुए मौत हो गयी और हादसे में एक मजदूर घायल हो गया है।
बिहार के समस्तीपुर का रहने वाला कृष्णा लम्बे समय से हिसार में मजदूरी का काम करता था। वो बिहार से हिसार अपने सपने पूरे करने के लिए नहीं आया था, क्योंकि मजदूरी से मिलने वाले पैसे से सपने पूरे नहीं होते हैं, बस दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाता है। कृष्णा भी दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करने के लिए बिहार के समस्तीपुर से हिसार आ गया। समस्तीपुर से हिसार की दूरी 1300 किलोमीटर है।

कृष्णा की मैंने जब फेसबुक प्रोफाइल देखी तो कलेजा हाथ में आ गया। कृष्णा की पत्नी ने 7 दिन पहले ही एक बेटे को बिहार के अपने घर में जन्म दिया है। कृष्णा ने अपनी बेटे की तस्वीर फेसबुक की प्रोफाइल बैकग्राउंड में लगाई हुई थी। वो अपने बेटे को अब तक छू भी नहीं सका उससे पहले ही उसकी हादसे में मौत हो गयी। ये मौत हादसा नहीं सीधी हत्या है। इस हत्या के लिए ठेकेदार के साथ-साथ मकान मालिक दोनों जिम्मेदार हैं। मजदूरों को सेफ्टी का एक भी उपकरण उपलब्ध नहीं करवाया जाता है। मजदूरों को मामूली दिहाड़ी पर चढ़ा दिया जाता है मरने के लिए।
जनचौक टीम की सिविल अस्पताल हिसार से रिपोर्ट:
जब जनचौक की टीम अस्पताल पहुंची तो दो सौ के आस-पास बिहार के मजदूर वहां मौजूद थे। इसके साथ में भवन निर्माण कामगार यूनियन के नेता कॉमरेड मनोज सोनी व सीपीएम के जिला सचिव कामरेड सुरेश वहां पर थे।
मृतक के साथ काम कर रहे बिहार के ही रहने वाले मजदूर विजय ने बताया कि “हम हिसार के सेक्टर-15 की कोठी में रंगाई-पुताई के काम में 14 मजदूर काम कर रहे थे। ये काम ठेकेदार ने लिया हुआ था। मकान की गैलरी में सीढ़ी लगा कर कृष्णा व लक्ष्मण काम कर रहे थे। एकदम सीढ़ी फिसल गई। सीढ़ी फिसलने से कृष्णा व लक्ष्मण नीचे गिर गए। उसके बाद कृष्णा को अस्पताल लेकर आये। अस्पताल में कृष्णा की मौत हो गयी। लेकिन लक्ष्मण को कम चोट लगी। वो अभी ठीक है”।

जब हमने विजय से पूछा कि काम करते हुए सेफ्टी के लिए हेल्मेट या दूसरे सेफ्टी उपकरण क्यों नहीं थे तो उसने हमको बताया कि ये सब हमको ठेकेदार देता ही नहीं है।
यह पूछे जाने पर कि आप मांगते क्यों नहीं तो पास में खड़े बुजुर्ग मजदूर सतीश राय ने बताया कि “सेफ्टी उपकरण की मांग करेंगे, तो ठेकेदार काम पर ही नहीं लेकर जाएगा, फिर भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। इसलिए हम बिना सेफ्टी उपकरण के ही काम करने पर मजबूर होते हैं”।
श्रम बोर्ड में रजिस्ट्रेशन और मजदूर या मिस्त्री वाली कॉपी के बने होने के सवाल पर विजय ने बताया कि “कॉपी हमारी नहीं बनी हुई है। हमारी ही नहीं यहां मौजूद ज्यादातर मजदूरों की नहीं बनी है। कॉपी बनाने के लिए हरियाण सरकार ने इतने जटिल नियम बनाये हुए हैं कि हम चक्कर पर चक्कर लगाते रहते हैं। दिहाड़ी छोड़-छोड़ कॉपी बनवाने जाते हैं लेकिन कॉपी नहीं बनती है। आखिर में थक-हार कर बस दिल को तस्सली दे लेते हैं कि कॉपी तो बननी है नहीं दिहाड़ी भी क्यों थकाएं”।
हमने कृष्णा के साथ काम करने वाले एक दूसरे मजदूर और रिश्ते में उसके चाचा 20 वर्षीय अजय से कृष्णा के परिवार के बारे में पूछा तो उसने बताया

कि “कृष्णा के परिवार में मम्मी-पापा, एक छोटी बहन, छोटा भाई, कृष्णा की पत्नी, एक दो साल की लड़की और 6 दिन पहले ही हुआ एक लड़का है। कृष्णा बहुत ज्यादा खुश था, उसने सभी दोस्तों को लड़का होने पर पार्टी भी दी थी। वो बहुत ज्यादा मेहनत करके पैसे कमा कर जल्द घर जाना चाहता था ताकि अपनी पत्नी व अपने बच्चों से मिल सके। वो रोजाना अपने घर बात करता था। लेकिन अब सब खत्म हो गया। कौन अब उसके बच्चों का भरण-पोषण करेगा, उसकी पत्नी तो 22 साल की ही है। अब तक बच्चे ने अपने पापा का मुंह तक नहीं देखा, पहाड़ जितनी लम्बी जिंदगी कैसे पार होगी”।
एक दूसरे 22 साल के नौजवान मजदूर राम बाबू कुमार ने बताया कि “कृष्णा की भी कॉपी नहीं बनी हुई थी। कृष्णा और मैं साथ बिहार से हिसार आये, साथ काम करते थे। आज सुबह हम साथ ही काम पर कमरे से आये थे। वो बाहर गैलरी में काम कर रहा था। उस समय मैं मकान में पिछली तरफ काम कर रहा था। बहुत तेज आवाज हुई तो हम भाग कर बाहर की तरफ आये तो कृष्णा व लक्ष्मण जमीन पर पड़े थे। खून से जमीन लाल हो गयी थी। हम ये सब देख डर गए। उसके बाद मकान मालिक भी आ गया। वो अपनी गाड़ी में इनको अस्पताल लेकर आया। मेरे सामने उसकी मौत हो गयी”।
हमने राम बाबू कुमार व सभी मौजूद मजदूरों से जानना चाहा कि बिहार में उनके खेती के लिए जमीन है या नहीं तो सभी ने कहा कि जमीन नहीं है, अगर जमीन होती तो हमको यहां काम के लिए आना ही नहीं पड़ता।
मजदूर हरि ने बताया कि बिहार में यहां से बहुत कम दिहाड़ी का पैसा मिलता है। खेती में भी मजदूरी नाम मात्र है क्योंकि हर साल बाढ़ आती है तो खेती बर्बाद हो जाती है। इसलिए काम नहीं है। हमको दो वक्त की रोटी के लिए इतनी दूर काम करने आना पड़ता है। हम चार से पांच महीने काम करते हैं उसके बाद घर जाते हैं कुछ समय रुक कर फिर वापस आ जाते हैं।
मजदूरी से होने वाली कमाई के बारे में उसका कहना था कि “हम महीने में दस से बारह हजार कमा लेते हैं। पांच से छह हजार खर्च हो जाते हैं। बाकी बचे को घर भेज देते हैं। ठेकेदार भी हमको मार्केट में चल रहे रेट से कम पैसा देता है। ठेकेदार हम से ही कमाता है, लेकिन फिर भी सेफ्टी उपकरण उपलब्ध नहीं करवाता है”।

वहीं पर मौजूद मजदूर चन्दन ने बताया कि “बिहार में हालात बहुत बुरे हैं। वहां अगर हमारे पास जमीन होती तो हमको यहां क्यों आना पड़ता। वहां पर जमीन राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी जैसी बड़ी जातियों के पास है। हम गरीबों के पास जमीन नहीं है। गरीब का मतलब उन्होंने दलित बताया, दलितों के पास जमीन नहीं है। राजनीतिक पार्टियां भी हर बार चुनाव में झूठे वादे करती हैं। हर बार चुनाव में सभी को रोजगार देने का वादा पार्टियां करती हैं लेकिन चुनाव होने के बाद कोई शक्ल दिखाने भी नहीं आता है”।
उसने आगे बताया कि “अब हमारे पास इतना भी पैसा नहीं है कि हम कृष्णा की डेड बॉडी को यहां से बिहार ले जा सकें। एम्बुलेंस वाला 40 हजार रुपये मांग रहा है। यहां लाल झंडे की पार्टियों व यूनियनों के अलावा कोई हमारा साथी नहीं है। हम आपसे हाथ जोड़ते हैं कि कैसे भी हमारे भाई की बॉडी को घर पहुंचा दो”।
भवन निर्माण कामगार यूनियन के जिला अध्यक्ष ने बताया कि जब हादसा हुआ उस समय मैं लघु सचिवालय, हिसार के सामने चाय की दुकान पर बैठा था। मेरे पास किसी मजदूर का फोन आया उसने मुझे हादसे की जानकारी दी। मैं उसके बाद वहां से सीधा अस्पताल पहुंच गया। यहां आकर पूरे मसले को समझा है। मजदूर कृष्णा की काम करते हुए हादसे में मौत हुई है। लेकिन अगर ठेकेदार ने या मकान मालिक ने सेफ्टी उपकरण उपलब्ध करवाए होते तो शायद इस मजदूर की जान ना जाती। लेकिन ज्यादा मुनाफा कमाने के लालच में ठेकेदार भी व मकान मालिक भी इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं। इस घटना में ठेकेदार व मकान मालिक दोनों दोषी हैं। इन दोनों पर लापरवाही के तहत 304A में मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है।
उन्होंने आगे बताया कि अगर मृतक मजदूर कृष्णा की कॉपी बनी होती तो उसके परिजनों को श्रम बोर्ड पांच लाख का मुआवजा देता। लेकिन इसका रजिस्ट्रेशन नहीं है, तो इसको 2.5 लाख रुपए श्रम बोर्ड की तरफ से मिलेंगे। इसके साथ ही हमने मालिक व ठेकेदार के खिलाफ मृतक के मुआवजे का केस भी दायर कर दिया है। इस केस के अनुसार मृतक मजदूर को उसकी उम्र के अनुसार मुआवजा मिलेगा। अगर माननीय कोर्ट ईमानदारी से फैसला देगी तो इसको 12 लाख के करीब मुआवजा ठेकेदार व मकान मालिक को देने का आदेश दे देगी।

कॉपी नही बन रही इस सवाल पर यूनियन अध्यक्ष ने बताया कि सरकार की नीयत में खोट है। वो जानबूझ कर ऐसे नियम बना रही है ताकि मजदूर की कॉपी न बने। नियम के अनुसार कॉपी उस मजदूर या मिस्त्री की बनेगी जो पिछले 90 दिन का काम करने का सबूत देगा। सबूत के तौर पर उन्होंने मजदूर व मिस्त्री को गांव के सरपंच, पंचायत सेक्रेट्री से लिखवा कर लाने का नियम बनाया हुआ है। अब प्रवासी मजदूर कैसे ये सब लिखवा कर लायें। इन नियमों को हटवाने के लिए मजदूर यूनियनें बड़े-बड़े आंदोलन कर चुकी हैं लेकिन मजदूर विरोधी सरकार मानने को तैयार ही नहीं है।
रिपोर्ट लिखे जाने तक मजदूर कृष्णा का पोस्टमार्टम हो चुका था, मकान मालिक व ठेकेदार पर धारा 304A के तहत लापरवाही में केस दर्ज हो चुका था। केस दर्ज होते ही मकान मालिक ने मजदूरों व यूनियन नेताओं के साथ झगड़ा शुरू कर दिया था। मकान मालिक कुछ मदद करने के बजाए मजदूरों से 15 हजार खर्च हुए वापस मांग रहा था। घायल मजदूर लक्ष्मण अभी अस्पताल में ही दाखिल था जो शायद जल्दी ठीक तो हो जाएगा लेकिन उसको कोई मदद कहीं से भी मिलती नहीं दिख रही है।
यूनियन व मजदूरों के दबाव में बिहार के ही रहने वाले ठेकेदार ने पचास हजार रुपये डेड बॉडी घर पहुंचाने के लिए दिए हैं। लेकिन हिसार प्रशासन या किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई न तो नुमाइंदा वहां पहुंचा है और न ही कोई बयान जारी किया गया है। कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो गए सोशल मीडिया न्यूज़ चैनल भी यहां नहीं पहुंचे हैं। Jan Awaz ने जरूर इस मुद्दे पर स्टोरी की है।
यूक्रेन में साम्रज्यवादी मुल्कों की आपसी लड़ाई में मारा गया बेकसूर छात्र नवीन, अगर उसको भारत में पढ़ाई का अवसर प्राप्त होता तो वो यूक्रेन नहीं जाता, ऐसे ही अगर कृष्णा के पास खेती की जमीन होती या बिहार में मजदूरी उपलब्ध होती तो वह भी घर से 1300 किलोमीटर दूर अपनी पत्नी व दुध-मुंहे बच्चों को छोड़कर इतनी दूर हिसार में दो वक्त की रोटी के लिए नहीं आता। लेकिन लूट पर आधारित भारत की व्यवस्था मजदूर व छात्र दोनों को ही अपना घर छोड़ बाहर जाने मजबूर करती है और इस तरह वहां गुलामी का जीवन जीने के लिए। लेकिन दोनों ही अमानवीय है, दोनों की ही असमानता पर आधारित व्यवस्था द्वारा कत्ल किया गया है।
(हिसार से उदय चे की रिपोर्ट।)