Thursday, April 18, 2024

संसद में गूंजा एम्स ऋषिकेश का मामला, तमाम अनियमितताओं के बावजूद कौन बचा रहा निदेशक को!

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में अनियमिताओं का अंबार है। आरोप हैं कि एम्स निदेशक ने परिवार के लोगों को रेवड़ी की तरह नौकरियां बांटी हैं। इसके अलावा आर्थिक अनियमिताओं के कई आरोप हैं। एम्स निदेशक डॉ. रविकांत पर पहले भी कई आरोप लगते रहे हैं, लेकिन राजनीतिक संरक्षण और अफसरों ने हमेशा उन्हें साफ बचा लिया। एम्स ऋषिकेश का मुद्दा अब राज्यसभा और लोकसभा में भी गूंजा है। आरक्षित चिकित्सकों की भर्ती का मामला मानसून सत्र के दौरान सुनाई पड़ा। आरोप है कि एम्स प्रशासन द्वारा आरक्षित पदों को डाउनग्रेड किया गया है। मार्च 2020 को स्पेशल रिक्रूमेंट के लिए जो विज्ञापन निकाला गया था, उसमें भी इन आरक्षित पदों को भरने के लिए विज्ञापन नहीं निकाला गया।

लोकसभा में मेघालय की कांग्रेस सांसद कुमारी अगाथा के संगमा ने एम्स में स्वीकृत अनुसूचित जाति के 36 चिकित्सकों की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े किए। उन्होंने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री से सवाल किया कि एम्स ऋषिकेष में एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षित पदों पर अनारक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों द्वारा भरा गया है, यदि हां तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है? और क्या आरक्षण नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ़ कार्रवाई की गई है? और यदि हां तो तत्संबंधी ब्यौरा दें?

वहीं उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद कान्ता कर्दम ने सभापति के माध्यम से भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री से एम्स ऋषिकेश में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित खाली सभी पदों को भरने की मांग की। साथ ही अयोग्य चिकित्सकों की भर्ती की जांच कराए जाने की मांग की। बता दें कि एम्स ऋषिकेश में आरक्षित 36 पदों पर आज तक कोई नियुक्ति ही नहीं की गई है। एम्स ऋषिकेश में आरक्षित श्रेणी में प्रोफेसर के छह पद, एडिशनल प्रोफेसर के चार पद, एसोसिएट प्रोफ्रेसर के 17 पदों समेत कुल 36 पद स्वीकृत हैं। मार्च 2020 में स्पेशल रिक्रूमेंट के लिए संस्थान की ओर से जो विज्ञापन निकला था, उसमें भी इन आरक्षित 36 पदों को भरने के लिए कोई उल्लेख नहीं किया गया था।

संसद।

ऋषिकेश एम्स से निकाले गए 23 असिस्टेंट प्रोफेसर
एम्स ऋषिकेश में भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद एम्स प्रशासन ने 23 असिस्टेंट प्रोफेसरों को नौकरी से निकाल दिया है। निकाले गए ये 23 असिस्टेंट प्रोफेसर संस्थान के अलग-अलग विभागों में तौनात थे। इसे एम्स में भ्रष्टाचार से जोड़कर देखा जा रहा है। कुछ कह रहे हैं कि इन सहायक प्रोफेसर को निकालकर एम्स निदेशक डॉ. रविकांत अपना और अपनों का गला बचाना चाहते हैं, तो कुछ लोग कह रहे हैं कि ऐसा करके निदेशक विरोधियों को डराना चाहते हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के अंडर सेक्रटरी ने पत्र भेजकर स्पष्टीकरण मांगा
10 अगस्त को शिकायतकर्ता ने एम्स ऋषिकेश के निदेशक डॉ. रविकांत के खिलाफ़ 54 पन्नों की शिकायत रिपोर्ट केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को भेजी थी। इसमें एम्स निदेशक पर अपने रिश्तेदारों, परिचितों, भाई-भतीजों को नौकरी देने के लिए नियमों में फेरबदल करने की शिकायत है। कई बार नियमों के खिलाफ भी जा कर नियुक्ति की गई है। परीक्षा का रिजल्ट वेबसाइट पर नहीं डाला गया है। बिना विज्ञापन के ही संस्थान में नियुक्तियां कर ली गईं। कर्मचारी आवाज न उठा सकें इसलिए उन्हें भयभीत करके रखा गया है। आरक्षित पदों पर सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों की भर्ती करने के साथ ही वित्तीय अनियमितता आदि के मामले इन शिकायतों में शामिल हैं।

शिकायतकर्ता की शिकायत पर कल्याण मंत्रालय के अपर सचिव शंभू कुमार ने एम्स निदेशक को एक सप्ताह में तथ्य के साथ स्पष्टीकरण देने को कहा है। सूत्रों के मुताबिक मामला पीएमओ तक पहुंच गया है और एम्स निदेशक दिल्ली हो आए हैं। सूत्रों के मुताबिक इस मामले में अगस्त महीने में ही स्वास्थ्य मंत्रालय के अंडर सेक्रटरी शंभू कुमार की ओर से एम्स ऋषिकेश को 45 पन्नों का पत्र भेजकर स्पष्टीकरण मांगा गया है, जबकि एम्स प्रशासन का कहना है कि उन्हें कोई पत्र नहीं मिला है।

एम्स निदेशक के खिलाफ़ भाजपा नेता ने सीबीआई जांच की मांग की
भाजपा नेता रवींद्र जुगरान ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है, “एम्स के निदेशक के पद पर साल 2017 में जब से डॉ. रविकांत आसीन हुए हैं तब से संस्थान में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अनियमितताओं की बाढ़ सी आ गई है। एम्स निदेशक के पद पर चयन के समय इनके द्वारा कई चीजें छिपाई गईं थीं, जैसे कि मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज दिल्ली में अनुशासनात्मक कारण से त्यागपत्र, ऐसा ही एम्स भोपाल छोड़ना, साथ ही किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ में इनके कार्यकाल में अनेक विवाद और अनियमितताएं करना आदि शामिल था।” पत्र में रवींद्र जुगरान ने आगे कहा है कि इतने विवादों के बावजूद इन पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकी, क्योंकि इनको हमेशा से ही राजनीतिक और नौकरशाही का संरक्षण प्राप्त रहा है। इनके खिलाफ़ सीबीआई जांच बैठाई जाए।

एम्स निदेशक के खिलाफ़ कुछ मामले
एम्स निदेशक की पत्नी डॉ. वीना रवि की नियुक्ति संस्थान के प्रोफेसर सर्जरी पद पर (5 दिसंबर 2017), उनकी भतीजी डॉ. रेवेका चौधरी को असिस्टेंट प्रोफेसर दंत चिकित्सक पद पर (19 जुलाई 2019), उनकी बहन प्रोफेसर डॉ. शशि प्रतीक गाइनी एवं ओवीसी की नियुक्त (15 फरवरी 2019), साला प्रोफेसर डॉ. केपीएस मलिक नेत्र विज्ञान, उनके करीबी रिश्तेदार एनपी सिंह को अधिशासी अभियंता के पद पर नौकरी पर रखा। इन नियुक्तियों को लेकर कोई भी विज्ञापन नहीं दिया गया था।

एम्स निदेशक के साले डॉ. केपीएस मलिक पर यौन शोषण का आरोप भी लगा था और देहरादून के वसंत बिहार थाने में दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज है और मुकदमों को लेकर उनकी नियुक्ति की समय सीमा बढ़ाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने मना किया था। बावजूद इसके उन्हें सर, गला सर्जरी विभाग में नियुक्ति दी गई। जबकि इस विभाग में कोई पद खाली ही नहीं था। पद को स्वीकृत कराकर उन्हें भर्ती दी गई। उनके पास एमसीएच की डिग्री भी नहीं है, बावजूद इसके उन्हें एमसीएच छात्रों का पढ़ाने के लिए नियुक्त कर दिया गया। 

29 जनवरी 2019 को आए विज्ञापन में आवेदक की अधिकतम आयु 50 वर्ष लिखा था, जबकि डॉ, अनुवा अग्रवाल को 54 वर्ष की आयु में नियुक्ति दी गई। गाइनोलॉजी और वैजाइना क्सटीव सर्जरी से जुड़ी कोई पोस्ट नहीं थी। इस पोस्ट को बनाया गया और फिर इस पर डॉ. नवनीत मागो की नियुक्ति की गई। एम्स ऋषिकेश में खरीददारी, निर्माण और प्रशासन में वित्तीय धांधली से जुड़े कई मामले हैं।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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