नई दिल्ली। सूरत कोर्ट में मोदी सरनेम मामले में राहुल गांधी के अपील की सुनवाई अब जज रॉबिन पॉल मोगेरा कर रहे हैं। वह सूरत के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं। मोगेरा जज नियुक्त होने के पहले दशकों तक केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के वकील थे। मोदी सरनेम मामले की सुनवाई और राहुल गांधी को मिली सजा पर अब सनसनी बढ़ती जा रही है। रोज-ब-रोज घट रहे घटनाक्रम से लोगों की नजर इस केस पर लगी है। न्यायाधीश मोगेरा सूरत के 8वें अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश हैं।
सूचना के मुताबिक मोदी सरनेम मानहानि मामले में सूरत की एक अदालत में राहुल गांधी की अपील पर सुनवाई कर रहे जज रॉबिन पॉल मोगेरा 2006 के तुलसीराम प्रजापति फर्जी मुठभेड़ मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वकील थे।
गांधी ने 2019 के मानहानि मामले में अपनी सजा और दो साल की जेल की सजा के खिलाफ अपील दायर की है। बार एंड बेंच के अनुसार, न्यायाधीश मोगेरा ने गुरुवार (13 अप्रैल) को विशेष रूप से गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई की, ताकि लोकसभा से उनकी अयोग्यता को वापस लिया जा सके।
अंग्रेजी वेबसाइट द वायर ने सूरत के सूत्रों से पुष्टि की है कि न्यायाधीश मोगेरा, जिन्हें जनवरी 2018 में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था, ने 2006 के फर्जी मुठभेड़ मामले में शाह का बचाव किया था जिसने राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया था। शाह तब गुजरात के गृह मंत्री थे। जस्टिस मोगेरा कम से कम 2014 तक उनके वकील रहे, जब मुंबई में केंद्रीय जांच ब्यूरो की अदालत में फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई चल रही थी।
इससे पहले, हिंदी दैनिक जनसत्ता ने भी खबर दी थी कि न्यायाधीश मोगेरा ने फर्जी मुठभेड़ मामले में 2014 में सीबीआई अदालत में शाह का प्रतिनिधित्व किया था।
द हिंदू में 2014 में प्रकाशित खबर के मुताबिक सीबीआई अदालत ने शाह के वकील मोगेरा को “उनके आवेदन में कोई कारण नहीं बताने” के लिए आलोचना की थी जिसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि शाह को अदालत की सुनवाई में शारीरिक रूप से उपस्थित होने से छूट दी जानी चाहिए। यह भाजपा नेता को सुनवाई से छूट देने के उनके कई अनुरोधों में से एक था।
मानहानि मामले में राहुल गांधी की सजा और लोकसभा से अयोग्य घोषित करने की घटना को कांग्रेस भाजपा की कथित प्रतिशोध की राजनीति का परिणाम मानती है। अब जज मोगेरा द्वारा कांग्रेस नेता के खिलाफ किसी भी प्रतिकूल आदेश को हितों के टकराव से उत्पन्न होने के रूप में देखा जा सकता है।
तुलसीराम प्रजापति, एक छोटा ‘अपराधी’ था। जब पुलिस मुठभेड़ में वह मारा गया तब उसकी उम्र 28 वर्ष वर्ष थी। इस मुठभेड़ को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने “अंतरराज्यीय राजनेता-पुलिस गठजोड़” कहा था।
सीबीआई द्वारा सोहराबुद्दीन-कौसरबी-तुलसीराम प्रजापति हत्याकांड में दायर शुरुआती चार्जशीट में 37 लोगों को नामजद किया गया था, जिसमें शाह, राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री गुलाबचंद कटारिया, गुजरात, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के कई आईपीएस अधिकारी और निचले स्तर के पुलिस अधिकारी शामिल थे। बाद में सभी राजनीतिक लोगों और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का नाम मामले से हटा दिया गया था और मुकदमा केवल निचले स्तर के पुलिसकर्मियों के खिलाफ चलाया गया था।