नई दिल्ली। इस्लामाबाद हाईकोर्ट में कल एक बार भारत का जिक्र आया लेकिन यह बेहद नकारात्मक संदर्भों में था। दरअसल कोर्ट के चीफ जस्टिस अतहर मिनाल्लाह ने देशद्रोह और आतंकवाद के आरोप से जुड़े एक केस की सुनवाई करते हुए भारत पर टिप्पणी की थी। भारत पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र होने के बावजूद वह प्रदर्शनकारियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है।
जस्टिस मिनाल्लाह ने कहा कि “हर किसी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा होगी। यह पाकिस्तान है भारत नहीं।” वह आवामी वर्कर्स पार्टी और पश्तून तहफ्फुज मूवमेंट (पीटीएम) के गिरफ्तार 23 कार्यकर्ताओं की जमानत की सुनवाई कर रहे थे। इन सभी को इस्लामाबाद पुलिस ने 28 जनवरी को गिरफ्तार किया था। ये सभी पीटीएम चीफ और जाने माने मानवाधिकार कार्यकर्ता मंजूर पश्तीन की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे।
28 जनवरी की अल जजीरा की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पश्तीन की गिरफ्तारी के विरोध में देश में हजारों लोग सड़कों पर उतर थे। उन्हें 27 जनवरी को हिरासत में लिया गया था।
पश्तीन पर जनवरी महीने में डेरा इस्माइल खान में दिए गए एक भाषण के दौरान उन पर देश के मिलिट्री मानवाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगा था। और उसके लिए उन पर न केवल आपराधिक षड्यंत्र करने का आरोप लगा था बल्कि उनके खिलाफ इसके लिए देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में स्थानीय कोर्ट से उनकी जमानत खारिज कर दी गयी थी।
उसके बाद 28 जनवरी को हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान इस्लामाबाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों में शामिल दो और लोगों नार्थ वजीरिस्तान से सांसद मोहसिन दावार और एडब्ल्यूपी के सांसद अम्मार राशिद पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया था। हालांकि 2 फरवरी को सरकार ने कोर्ट को बताया कि उनके खिलाफ लगे देशद्रोह के आरोपों को वापस ले लिया गया है। लेकिन एफआईआर में एंटी टेर्ररिज्म एक्ट (एटीए) 1997 के सेक्शन -7 को डाल दिया गया है। इस मसले पर जस्टिस मिनाल्लाह ने मजिस्ट्रेट से पूछा कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ किस आधार पर इन आरोपों को लगाया गया है।
डॉन के मुताबिक सोमवार को जब कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई तो इस्लामाबाद के डिप्टी कमिश्नर हमजा शफाकत ने चीफ जस्टिस को सूचना दी कि प्रदर्शकारियों के खिलाफ लगे सभी आरोपों को सरकार ने वापस ले लिया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदर्शनकारियों को जमानत देते हुए जस्टिस मिनाल्लाह ने कहा कि “हम ऐसा नहीं चाहते कि एक लोकतांत्रिक सरकार बोलने की आजादी पर लगाम लगाए। एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार बोलने की आजादी पर रोक नहीं लगा सकती है। (हमें) आलोचना से नहीं डरना चाहिए।” उन्होंने कहा कि “संवैधानिक अदालतें लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करेंगी। हर किसी के संवैधानिक अधिकार की रक्षा की जाएगी। यह पाकिस्तान है भारत नहीं”।
हालांकि जज ने अलग से ऐसा कुछ नहीं बताया कि उसकी इस टिप्पणी का क्या मतलब है। ऐसा लगता है कि उनका भारत में देशद्रोह के कानून के ज्यादा इस्तेमाल की तरफ इशारा था। जो आजकल सरकार का विरोध कर रहे ढेर सारे युवाओं के खिलाफ लगाया गया है।
जस्टिस मिनाल्लाह ने आगे कहा कि “अगर आप विरोध करना चाहते हैं तो अनुमति (पुलिस की) लीजिए। अगर आपको अनुमति नहीं मिलती है तो अदालत यहां मौजूद है।“
इसके पहले प्रदर्शनकारियों पर लगे देशद्रोह के आरोप पर अपना पक्ष रखते हुए इस्लामाबाद के एडवोकेट जनरल तारिक महमूद जहांगीर ने कहा था कि पाकिस्तान आतंकवाद से दो दशकों से लड़ रहा है और प्रदर्शनकारियों का गोपनीय एजेंडा परेशान करने वाला है। रिपोर्ट में जहांगीर को कोट करते हुए कहा गया है कि “किसी को भी राज्य के खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहिए।” उन्होंने ऐसे लोगों के खिलाफ एक लिखित आदेश जारी करने की गुजारिश की जो असहमति में बोलते हैं या फिर नफरत फैलाने वाले भाषण देते हैं।
इसके जवाब में जस्टिस मिनाल्लाह ने कहा कि स्टेट और न ही इसकी संस्थाएं इतनी कमजोर हैं कि केवल शब्द उन पर कोई असर डालने जा रहे हैं।
बाद में हिरासत में लिए गए दो लोगों में से एक अम्मार राशिद ने ट्वीट कर कहा कि उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारे देश में हो रही असहमति, शांतपूर्ण प्रदर्शन और बोलने की आजादी के अपराधीकरण की कोशिशों के खिलाफ यह एक सिद्धांत का काम करेगा।
(कुछ इनपुट दि वायर ले लिए गए हैं।)