दिल्ली स्पेशल : आंगनवाड़ी महिलाओं के हक़ की लड़ाई के प्रति सियासी उदासीनता

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। पूनम (43) और पूनम (45) दिल्ली के सोनिया विहार क्षेत्र की रहवासी हैं। दोनों, पूनम (43) प्रॉजेक्ट 62 और पूनम (45) प्रोजेक्ट 57 के नाम से अपने साथियों में जानी जाती हैं। दिल्ली स्टेट वर्कर्स एवं हेल्पर्स यूनियन के नेतृत्व में पिछले पंद्रह दिनों से चल रही हड़ताल में भी वे दोनों साथ आती हैं। आंगनवाड़ी हेल्पर के तौर पर काम कर रहीं पूनम (43) की मासिक आय 3900 रू मात्र है।

31 जनवरी 2022 से राष्ट्रीय राजधानी में करीब 22,000 से ज़्यादा आंगनवाड़ी वर्कर्स एवं हेल्पर्स मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के निवास स्थान के नीचे धरना प्रदर्शन कर रही हैं। उनकी मांग यह है कि हेल्पर्स की मासिक आय 20,000 तक बढ़ाई जाए जो की वर्तमान में 3900 से लेकर 4800 रूपये है। नई दिल्ली में 800 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स हैं, प्रत्येक प्रोजेक्ट में एक हेल्पर और एक वर्कर है।

दोनों पूनम के नाम ही नहीं, हालात भी एक दूसरे से काफ़ी मेल खाते हैं। पूनम (43) अपने परिवार की एक मात्र कर्ता-धर्ता हैं। उनके परिवार में बारह सदस्य हैं, जिनका लालन-पालन करने की ज़िम्मेदारी पूनम की है। इस पूरे परिवार का गुज़र-बसर आंगनवाड़ी से मिलने वाले “मानदेय” से ही होता है। “हमारे पास अपने हक़ के लिए लड़ने के सिवाय कोई और उपाय नहीं है”, 43 वर्षीय पूनम इस हड़ताल का महत्व बताते हुए कहती हैं। वे 31 जनवरी से रोज़ सुबह 7-8 बजे अपने घर के काम ख़त्म करके निकलती हैं, कभी वह बस से आती हैं तो कभी पैदल ही विधान सभा तक का सफ़र तय करती हैं।

प्रोजेक्ट 62 वाली पूनम। लड़ने के बाद भी नहीं मिल रहा हक

“इतनी कम आय से हमें एक तरफ़ महंगाई की मार झेलनी पड़ती है, तो दूसरी तरफ़ करोना की”, 45 वर्षीय पूनम देवी की ड्यूटी सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर के 2 बजे तक रहती है। लेकिन यह समय केवल रजिस्टर के लिए है। प्रायः वे शाम के 5 बजे तक काम करती हैं, उनके कामों में वैक्सीन, शिशुओं के पालन-पोषण, गर्भावस्था में की जाने वाली ज़रूरी देखभाल को लेकर सजगता एवं शिक्षा देना सम्मिलित हैं। पूनम के परिवार में 7 सदस्य हैं, अपने पति, 3 बच्चों और सास-ससुर के साथ पूनम सोनिया विहार में रहती हैं।

पूनम के पति दो वर्षों से छोटे-मोटे काम की तलाश कर रहे हैं, चूंकि कोरोना महामारी से पहले वह स्कूल बस चलाते थे, और अब दो सालों से स्कूलों के बंद होने के कारण उनके परिवार के लिए आर्थिक समस्याएं और भी बढ़ गई हैं। वे सभी सरकारों के प्रति निराशा जताते हुए कहती हैं “हम पर सरकार द्वारा की गई हिंसा और अन्याय नया नहीं हैं, पहले कोरोना में हमें बिना किन्हीं सुरक्षा उपकरणों के भेज दिया गया और आज पुलिस को भेज रहे हैं।”, दरअसल 11 जनवरी को वर्कर्स एवं हेल्पर्स द्वारा “ख़बरदार रैली” निकाली गई, जिसे दिल्ली पुलिस ने हिंसक रूप से रोक दिया। पूनम की साथियों के अनुसार हर नेता उनके पास वोट मांगने आता है, किंतु इस विषम परिस्थिति में उन पर हिंसा करने के लिए पुलिस को भेज देते हैं। पुलिस के हिंसक रवैये से प्रदर्शनकारियों में काफी रोष है।

प्रोजेक्ट 57 की पूनम। परिवार से लेकर नौकरी तक का भार

“केजरीवाल सरकार हम पर हमला करवाने के लिए पैसे दे सकती है लेकिन मजदूरों की आय नहीं बढ़ा सकती”, पूनम की साथी सुनीता कहती हैं। पूनम के कुछ साथियों को पुलिस ने 11 जनवरी को रैली से ही गिरफ्तार कर लिया था। उनके द्वारा यूनियन की ढपली, स्टेज और माइक आदि सामग्री ज़ब्त कर ली गई है। चिलचिलाती धूप में बैठी पूनम (43) यह भी बताती हैं की दिल्ली पुलिस द्वारा पहले उनसे यह कहा गया कि किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। लेकिन फ़िर सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन पर जोर शोर विरोध के बाद, पुलिस अधिकारियों ने उनके साथियों को रिहा कर दिया।

बच्चों द्वारा की गयी पेंटिंग

45 वर्षीय पूनम देवी कहती हैं की उनके पास आशा वर्कर्स की तरह कोई बीमा नहीं है, तो स्वास्थ्य बीमा भी उनकी मांगों में शामिल है। वे काम की परिस्थितियों का व्याख्यान करते हुए बताती हैं कि कोई बच्चा बीमार हो जाता है तो उनसे सवाल किया जाता है, बच्चों के माता-पिता से नहीं, और अगर कई बार उनकी गलती न होते हुए भी सैलरी से पैसे काट लिए हैं, लापरवाही का कारण देते हुए। उनके लिए एक दिन की छुट्टी लेना भारी पड़ता है। गुलाबी शॉल में बैठी पूनम पूछती हैं, “इस महंगाई के दौर में व्यक्ति 3900 में से कितना बचाएगा, क्या हमारा स्वास्थ्य नहीं बिगड़ सकता?” वे बताती हैं की आर्थिक तंगी के चलते 7 सदस्यों का लालन-पालन और मुश्किल होता जा रहा है। आंगनवाड़ी वर्कर्स की मदद के लिए लॉन्च हुए एप पोषण ट्रैकर के इस्तेमाल के लिए उनके परिवार में किसी के पास स्मार्टफोन नहीं है और पड़ोसियों से रोज़ फ़ोन मांगना भी साध्य नहीं है।

दूसरे प्रदर्शनकारियों के साथ दोनों पूनम

43 वर्षीय प्रदर्शनकारी को भी बाक़ी साथियों की तरह इस बात का डर सता रहा है की हड़ताल के कारण उनकी तनख्वाह काटी जाएगी। लेकिन उन्हें इस संकट से निकलने का कोई और रास्ता दिखाई नहीं देता। “हम सभी बच्चों को पोषण का ख़्याल रखते हैं लेकिन क्या हमारे बच्चों को अधिकार नहीं है की वे भी एक अच्छा जीवन जिए?”, पूनम इस हड़ताल में मांग पूरी होने के महत्व के विषय में पूछती हैं। अपनी सबसे बड़ी बेटी को वह डॉक्टर बनाना चाहती हैं, लेकिन उन्हें बढ़ती महंगाई और मेडिकल कॉलेजों की बढ़ती फीस देख कर अत्यंत निराशा होती है। उन्होंने यह भी बताया कि कभी-कभी उनकी आय दो-दो महीनों तक रोक दी जाती है, ऐसे में वह कर्ज़ लेकर खर्चा निकालती हैं और तनख्वाह मिलने पर थोड़ा-थोड़ा करके चुकाती हैं।

लाल -गुलाबी रंगों से सजी इस हड़ताल में निर्भयता, संघर्ष और उम्मीद के साथ साथ कला के भी रंग साझा होते दिखते हैं। अपनी मम्मी के साथ उनके संघर्ष में साथ आए बच्चे यहां पेंटिंग से लेकर क्रांति के गीत गाते पाए जाते हैं।

विरोध प्रदर्शन के दौरान नारे लगाती महिलाएं

दोनों पूनम धरने के बाद अपने घर को लौटती हैं और घर का काम संभालती हैं। वे हंस कर कहती हैं की “आंगनवाड़ी में सुपरवाइजर् और घर पर पति की डांट सुनने को मिलती है, दिन भर काम और कमाई सिक्कों में!” उनके अनुसार यह हड़ताल केवल हक़ के लिए ही नहीं, उनके स्वाभिमान की भी लड़ाई है। और उन्हें विश्वास है की वे इसे ज़रूर जीतेंगी।

(सेजल पटेल जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग से एमए कर रही हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author