Saturday, April 20, 2024

योगी सरकार की घोषणा और हकीकत में है जमीन-आसमान का फर्क

आज उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन, राष्ट्रीय रियल इस्टेट विकास परिषद आदि कंपनियों से हुए करार के तहत memorandum of understanding (MOU) पर हस्ताक्षर करने को प्रदेश में ही प्रवासी मजदूरों को रोजगार की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है। बताया गया है कि इससे 11.5 लाख मजदूरों को रोजगार मिल सकेगा। इसके लिए प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन और स्किल मैपिंग की जा रही है। 

प्रदेश में रोजगार सृजन और प्रवासी मजदूरों को रोजगार देने की बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं लेकिन यह जो कवायद चल रही है इसमें प्रोपोगंडा के सिवाय नया क्या है। इस सरकार ने तो अपने पहले इनवेस्टर्स मीट (21-22 फरवरी 2018) में ही 1045 एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे, उसके बाद भी अनगिनत एमओयू पर हस्ताक्षर किये गए हैं (इन सब पर विस्तार से पहले ही लिखा जा चुका है)। लेकिन न तो प्रदेश का विकास हुआ और न ही रोजगार सृजन। 

उलटे जिस तरह राष्ट्रीय स्तर पर विगत 7 साल में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है, राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा तेजी से उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ी। मनरेगा तक में मजदूरों को काम नहीं मिला। उसी का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश से मजदूरों के पलायन में योगी सरकार के दौरान पहले की तुलना में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सरकार बातें जो करे लेकिन यह सच्चाई है कि बुनकर, फुटवियर, रेस्टोरेंट व पर्यटन व्यवसाय आदि में दसियों लाख लोगों की रोजी-रोटी छिन गई है। उनके पुनर्जीवन के लिए, लोगों की रोजी-रोटी बचाने के लिए सरकार ने अभी तक  कुछ भी नहीं किया है, जो नोट करने लायक बात है। 

दरअसल इनवेस्टमेंट और रोजगार सृजन के मामले में सब पुरानी बातें ही हैं, कोई पहले से भिन्न प्लानिंग नहीं है, बस घोषणाएं जरूर नये सिरे से कर प्रोपोगंडा किया जा रहा है। इतना ज़रूर है कि प्रदेश में विकास और रोजगार के नाम पर श्रम कानूनों पर हमला किया जा रहा है। नागरिक अधिकारों को पहले से ही रौंदा जा रहा है, किसानों से जमीन अधिग्रहण करने के लिए खासकर एक्सप्रेस वे के किनारे दोनों तरफ एक किमी जमीन लेने के लिए कानून में परिवर्तन कर उद्योगों को देने की तैयारी की जा रही है। पहले ही प्रदेश में इंडस्ट्री के नाम पर किसानों से जो जमीनें ली गई हैं ज्यादातर खाली पड़ी हुई हैं। 

सब मिला-जुला कर देखा जाये तो योगी मॉडल के प्रचार और इसके जमीनी हकीकत में बड़ा फर्क है।

(राजेश सचान युवा मच के अध्यक्ष हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।)

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