Thursday, April 25, 2024

एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने की सुप्रीम कोर्ट की एक और कोशिश     

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) एक्ट को कमजोर करने की कोशिश की है। 20 मार्च 2018 के बाद एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने की सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ी कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने 10 मई को एससी-एसटी एक्ट संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) जैसे कड़े कानूनों के प्रावधानों को लागू करने से पहले पुलिस अधिकारियों को सतर्क रहना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने पुलिस अधिकारियों से कहा कि वे एससी-एसटी एक्ट के जिन प्रावधानों को प्रथम दृष्टया लागू करना चाहते हैं, उसे लागू करने से पहले यह देखें कि वे प्रावधान उस मामले में लागू होते हैं या नहीं। अधिकारी को इस बात से संतुष्ट होना होगा कि जिन प्रावधानों को वह प्रथम दृष्टया लागू करना चाहता है, वे मामले में लागू होते हैं या नहीं। ये बातें सुप्रीम कोर्ट की दो जजों-जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कही। 

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि “कोर्ट यह इंगित करती है कि जो अधिकारी एससी/एसटी एक्ट जैसे कड़े कानूनों के तहत एफआईआर दर्ज करेगा वह इस बात के लिए बाध्य होगा कि मामले की सतर्कता से जांच करे। क्योंकि यह एक्ट जिन आरोपियों पर लागू होता है, उनको इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। एफआईआर दर्ज करने वाले अधिकारी को प्रथम दृष्टया इस बात से संतुष्ट होना होगा कि आरोपी पर इन धाराओं में एफआईआर दर्ज करना जरूरी है।” 

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एससी-एसटी एक्ट के तहत प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया था। आरोपी ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह टिप्पणी की। 

हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां विशेष/ कड़े कानून के मुख्य प्रयोजन को कम करने के लिए नहीं की गई हैं, सिर्फ पुलिस को याद दिलाने के लिए की गई है कि वह कानून को यांत्रिक रूप से लागू न करें। तथ्यात्मक स्थितियों को देखकर करें। 

इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 के अपने एक फैसले में एससी/एसटी एक्ट में बड़े पैमाने पर संसोधन का आदेश दिया था। जिसमें कहा गया था कि आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी न की जाए। इस एक्ट के तहत दर्ज होने वाले केसों में अग्रिम जमानत मिले। पुलिस को 7 दिन में जांच करनी चाहिए। सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दलित-बहुजन संगठनों ने तीखा विरोध किया। 2 अप्रैल 2018 के इस फैसले के विरोध में भारत बंद बुलाया गया। दलित-बहुजनों के तीखे विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार को संविधान में संशोधन करना पड़ा था।

एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्यक्ष तरीके से ही सही लेकिन एससी-एसटी एक्ट को कमजोर करने की कोशिश की है।

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