कर्नाटक: दलबदलू नेताओं को शामिल करने के चक्कर में अनुभवी नेताओं को मार्गदर्शक मंडल जाने का इशारा

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कर्नाटक विधान सभा का चुनाव 10 मई को होना तय हुआ है जिसमें 224 चुनाव क्षेत्रों पर निर्णय होगा। चुनाव में एक महीने से भी कम का समय बचा है। कांग्रेस अपने 166 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी कर चुकी है वहीं बीजेपी के प्रत्याशियों की लिस्ट का कहीं नामोनिशान नहीं था। परसों रात बीजेपी ने 189 प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की है जिसके बाद ही कर्नाटक बीजेपी में एक भूचाल सा आ गया है।

कर्नाटक में त्रिकोणीय मुकाबला दिख रहा है। जिसमें कांग्रेस, बीजेपी और जनता दल सेकुलर मुख्य पार्टियां हैं। कांग्रेस के मुख्य नेता पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया हैं जिनका AHINDA (अल्पसंख्यक-पिछड़े-दलित) जातीय समीकरण ने उन्हें 2013 में भारी मतों से चुनाव जिताया।

बीजेपी के प्रमुख नेता बीएस येदियुरप्पा हैं जिन्हें बीजेपी को दक्षिण भारत में एंट्री देने का श्रेय जाता है। 2008 में उच्च जातियों और प्रधान लिंगायत समुदाय के समर्थन के साथ वह मुख्यमंत्री भी बनते हैं। 2018 में कांग्रेस-जेडीएस की मिली जुली सरकार गिरा कर वो फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं लेकिन भ्रष्टाचार और अंदरूनी कलह के चलते बासवराज बोम्मई को जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री बनाया जाता है। दोनों लिंगायत समुदाय के नेता हैं। येदियुरप्पा ने उस समय ये कहा कि वो सक्रिय राजनीति से सन्यास ले रहे हैं लेकिन बीजेपी को सपोर्ट करेंगे।

येदियुरप्पा, ईश्वरप्पा और जगदीश शेट्टर: मार्गदर्शक मंडल की ओर

सप्ताहांत में बीजेपी की लिस्ट जारी होने वाली थी लेकिन यह खबरें आ रही थीं कि येदियुरप्पा के करीबियों को टिकट नहीं दिए जाने से वो नाराज थे और इसलिए बीजेपी की मीटिंग से जल्दी वापस आ गए।

कई दौर की बैठकों के बाद परसों देर रात को भाजपा 189 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है। बहुत कयास लगाए जा रहे थे कि लिस्ट आने में इतनी देरी क्यों हो रही है। इसके कारण लिस्ट जारी होने के बाद समझ में आए जब कई बड़े नेताओं का पत्ता साफ हो गया और उन्होंने खुलेआम अपना असंतोष जाहिर किया। इनमें से कई नेता तो बीजेपी के आपरेशन कमल के संचालक भी रहे हैं।

बीजेपी के 2 प्रमुख नेता केएस ईश्वरप्पा और जगदीश शेट्टार को पार्टी ने बाहर बैठने को कहा और उनकी बजाय नये चेहरों को मौका दिया। केएस ईश्वरप्पा 2019 में बीजेपी सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री थे और अपने इस कार्यकाल में  मुस्लिम विरोधी टिप्पणी से काफी विवाद बटोर चुके थे। इससे उनकी छवि से कोई आंच नहीं आयी। लेकिन एक ठेकेदार की आत्महत्या के मामले में उन्हें 14 अप्रैल 2022 को अपने मंत्रालय से हाथ धोना पड़ा।

संतोष पाटिल नाम के इस ठेकेदार ने अपने आत्महत्या के नोट में ईश्वरप्पा को अपनी खराब माली हालत के लिए जिम्मेदार ठहराया था। पाटिल का आरोप था कि बीजेपी सरकार हर ठेके पर 40 फीसदी कमीशन लेती है और उसके बाद भी उन्होंने रोड के नाम के पैसे नहीं दिए थे जिसके कारण संतोष पाटिल भारी कर्ज में डूब गए थे। इसी के बाद से बीजेपी सरकार 40 परसेंट कमीशन के नाम से बदनाम होने लगी।

ईश्वरप्पा शिवमोग्गा से विधायक हैं और वो भी अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे। पार्टी एक ही परिवार के दो लोगों को टिकट नहीं देती है इसीलिए उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की।

येदियुरप्पा और ईश्वरप्पा जैसे कई हैं जो अपने भाई-भतीजे या चमचों को टिकट दिलवाना चाहते हैं लेकिन ये बात बीजेपी हाईकमान के गले नहीं उतर रही है। इसका एक और कारण है कि बीजेपी कर्नाटक की पालिटिक्स भी सेंटर से चलाना चाहती है और येदियुरप्पा गैंग के हाथ से आरएसएस समर्थकों के हाथ में देना चाहती है जो उनके सांप्रदायिक एजेंडा को और मुकम्मल ढंग से लागू कर सके।

जगदीश शेट्टार जो कि 2013 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और हुबली धारवाड़ इलाके के बड़े नेता हैं। उनको भी टिकट नहीं दिया गया है। नाराज होकर उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस की और कहा कि वो किसी भी कीमत पर चुनाव लड़ेंगे और इस तरह वो पालिटिक्स से विदाई नहीं लेंगे। वो दिल्ली भी आ रहे हैं। पार्टी हाईकमान से मिलकर उनका निर्णय बदलवाने के लिए।

सत्ता विरोधी लहर और नये चेहरों की एंट्री

कर्नाटक के इतिहास में कभी भी एक सरकार लगातार दूसरी बार नहीं आयी है। 2018 के चुनाव में लोकप्रिय नेता सिद्धरमैया के समय पर ये उम्मीद थी कि ये रिकॉर्ड टूट जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तो इस समय तो सत्ता विरोधी लहर बहुत भारी लग रही है। आम आदमी महंगाई से त्रस्त है। उत्तर कर्नाटक जहां बीजेपी को ज्यादा वोटों की उम्मीद है वहां पिछड़ेपन और विकास जरूरी मुद्दों के रूप में उभर कर आए। लेकिन पार्टियों को इन सब से कोई सरोकार नहीं है। उनको दुख इस बात का है ये धन और संपदा संपन्न राज्य कहीं उनके हाथ से निकल न जाए।

उल्लेखनीय है कि बोम्मई सरकार अब तक की सबसे अलोकप्रिय सरकारों में शुमार हो चुकी है। कोविड की नाकामी और उसके बाद नित नये भ्रष्टाचार की खबरों ने इस सरकार को 40 परसेंट सरकार का लेबल दिया है। वर्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई की इन सब मुद्दों पर चुप्पी ने इस लेबेल को और भी पुष्ट किया है।

हिजाब मुद्दे से बीजेपी इस्लामोफोबिया फैलाने में ज़रूर सफल हुई है लेकिन महंगाई और कृषि संकट के आगे मुस्लिम विरोधी भावनाएं कितना काम करेंगी ये कहा नहीं जा सकता।

कांग्रेस और जेडीएस के दलबदलू नेताओं और नये चेहरों को टिकट देकर बीजेपी में पहले ही अपने पुराने नेताओं को नाराज कर लिया है। स्वाभाविक से जमीनी कार्यकर्ताओं और इन नेताओं के वफादार वोट बैंक पर भी असर दिखेगा।

कई सूत्रों का ये भी कहना है कि बीजेपी जानती है कि इस बार शायद वो सरकार बनाने में सफल न हो इसलिए वो पोस्ट इलेक्शन सीनैरियो के लिए अभी से तैयारी कर रही है। टिकट देने के पीछे भी सेंट्रल हाई कमान की यही सोच मानी जा रही है।

बीजेपी में बगावत का सुर तेज हो गया है। इस कड़ी में नया नाम पार्टी विधायक एमपी कुमारस्वामी का जुड़ गया है। उन्होंने आज पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। आपको बता दें कि मौजूदा सूची में उनका नाम शामिल नहीं था जिसके चलते वे नाराज थे। उन्होंने टिकट काटे जाने के लिए राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि को जिम्मेदार ठहराया है।

तीन बार विधायक रहे कुमारस्वामी ने विधानसभा से भी इस्तीफा देने का फैसला किया है। इसके साथ ही बीजेपी ने 23 प्रत्याशियों की दूसरी सूची भी जारी कर दी है। कुमारस्वामी ने कहा कि वह आगे का फैसला अपने समर्थकों के साथ बातचीत करने के बाद लेंगे। कुमारस्वामी दलित समुदाय से आते हैं और कहा जा रहा है कि वह जेडीएस में शामिल हो सकते हैं। या फिर वह स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर भी चुनाव लड़ सकते हैं।

कुमारस्वामी ने कहा कि अगर वरिष्ठ बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा एक सप्ताह के लिए अपना फोन स्विच ऑफ कर दें तो पार्टी 50 सीट भी जीतने में सफल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि बगैर युदियुरप्पा के लोग बीजेपी की सभाओं तक में नहीं आएंगे। 

(स्वाति कृष्णा की बेंगलुरू से रिपोर्ट।)

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