कैलीफोर्निया में पारित हुआ जातिभेद विरोधी बिल, हिंदू संगठन विरोध में

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संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे बड़े राज्य का दर्जा रखने वाले कैलीफ़ोर्निया में जाति आधारित भेदभाव जल्द ही अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। 28 अगस्त को कैलीफ़ोर्निया की विधानसभा ने उस एसबी 403 विधेयक पारित किया जो जाति-आधारित भेदभाव को गैरकानूनी घोषित करता है। इस साल की शुरुआत में इसे सीनेट ने भी पास कर दिया था। गवर्नर के हस्ताक्षर होते ही यह विधेयक कानून की शक्ल ले लेगा। हैरानी की बात है कि अमेरिका के कुछ हिंदू संगठन इसका विरोध कर रहे हैं जबकि मानवाधिकार और नागरिक संगठनों ने इसका स्वागत किया है।

आमतौर पर अमेरिका में नस्लवादी हिंसा की ही चर्चा होती है। कैलिफ़ोर्निया में राष्ट्रीय मूल, नस्ल, धर्म, लिंग, यौन रुझान आदि के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध है। इस क़ानून के बन जाने पर इस सूची में ‘जाति’ भी जुड़ जाएगी। यह कानून अमेरिका में रहने वाले दलितों के लिए एक बड़ी जीत मानी जा रही है। इस विधेयक को सीनेटर आयशा वहाब द्वारा पेश किया गया था। इसे कई अंबेडकरवादी और जाति-विरोधी समूहों का समर्थन मिला था।

समानता पर नज़र रखने वाली संस्था ‘इक्विलिटी लैब्स’ ने 2018 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। 1500 लोगों से बातचीत के आधार पर तैयार की गयी इस रिपोर्ट में 60 फ़ीसदी लोगों ने कहा था कि दलितों को जाति आधारित अपमान, मज़ाक़ और फब्तियां झेलनी पड़ती हैं। वहीं 2021 में कार्नेगी एंडोमेंट फ़ास इंटरनेशनल पीस की रिपोर्ट में कहा गया था कि करीब आधे भारतीय-अमेरिकी हिंदू किसी न किसी जाति के साथ अपनी पहचान जोड़ते हैं। बहुत से लोगों ने इस पहचान को अमेरिका आकर त्याग दिया है लेकिन पहचान से जुड़े सवालों से उन्हें मुक्ति नहीं मिल पायी है।

2020 में, कैलिफोर्निया नागरिक अधिकार विभाग ने ‘नेटवर्किंग गियर’ और बिजनेस सॉफ्टवेयर कंपनी ‘सिस्को’ के खिलाफ एक मामला दर्ज किया था जिसमें यह आरोप था दो उच्च जाति के कर्मचारियों ने एक दलित कर्मचारी के खिलाफ़ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया।

इस कानून के लिए प्रयास कर रहीं सीनेटर आयशा वहाब ने कहा है कि उनका प्रयास है कि संगठन और कंपनियां अपनी प्रथाओं या नीतियों में जातिगत भेदभाव को शामिल न करें। ऐसा करने वालों को पता होना चाहिए कि जाति के आधार पर भेदभाव कानून के खिलाफ है।

जाति आधारित भेदभाव के ख़िलाफ़ क़ानून के लिए हो रहे प्रयासों का ‘इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल’ (IAMC) और दलित संगठनों ने समर्थन किया है, वहीं हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन ने इसका विरोध किया है। फाउंडेशन की ओर से जारी वक्तव्य में कहा गया है, “हम मानते हैं कि यह बिना किसी सबूत के अत्यधिक गुमराह करने वाला विधेयक है और भेदभाव को रोकने की बजाय, यह भारतीय और दक्षिण एशियाई मूल के हिंदुओं को असंवैधानिक रूप से अलग करेगा और अधिक भेदभाव का कारण बनेगा।”

वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि भेदभाव दर्शाने वाले शब्द ‘जाति’ को यहां से हटाया जाए क्योंकि इससे भारत के हिंदुओं और जाति के बारे में जो नकारात्मक छवि बनी है, वह और सुदृढ़ होगी। वहीं इसकी आलोचना करते हुए मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि यह हिंदू के नाम पर उच्च जातियों की प्रतिक्रिया है। इन लोगों के मानस में जाति श्रेष्ठता घुसी हुई है और कथित निम्न जातियों के प्रति अपमानजनक व्यवहार इनकी संस्कृति है। ऐसे ही लोग जातिभेद विरोधी क़ानून बनने से डरे हुए हैं।

(चेतन कुमार लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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