नई दिल्ली। भजनपुरा की रहने वाली रेनू कहती हैं- हम लोग लॉकडाउन में भी बिना अपने बच्चों और परिवार की चिंता किए गलियों मोहल्लों में कोरोना मरीजों के बीच जा रही थीं। हमारी मांग है कि हमें सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। और हमारे बीच में से एएनएम को हटा दिया जाए क्योंकि हमारा इन्सेंटिव कटकर मिलता है कहीं 5 हजार मिलता है, कहीं तीन हजार, कहीं दो हजार मिलता है। अगर हमारे 10 प्वाइंट बनते हैं तब तीन हजार मिलते हैं अगर हमारे 5 प्वाइंट बनते हैं तो वो भी कट जाते हैं। हमारा मानदेय 10 हजार किया जाए।
बिना ट्रेनिंग के फील्ड में उतार दिया गया
रेनू सरकार और प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहती हैं कि- “ न तो हमारी कोई ट्रेनिंग हुई, न ये बताया गया कि किससे कैसे मिलना है क्या बात करनी है, कैसे निपटना है कोरोना मरीजों से बस हमें फील्ड में उतार दिया गया। सुरक्षा उपाय के तौर पर एक छोटा सा सैनिटाइजर और कपड़े का मास्क पकड़ा दिया गया बस।”
रेनू आगे बताती हैं कि वो भी कोरोना पोजिटिव हो चुकी हैं। उन्हें इलाज या क्वारंटाइन करने के बजाय कह दिया गया कि अपने घर जाओ और होम क्वारंटाइन कर लो। बाद में भी किसी ने न तो फोन करके हाल पूछा न काम पर लौटने के लिए कॉल किया। मेरे पति का काम लॉकडाउन में छूट गया। घर पर छोटे-छोटे बच्चे थे खाने को कुछ नहीं पर सरकार, प्रशासन या किसी ने भी हमारी सुध तक नहीं ली। सरकार ने हमें अधिकारहीन गुलाम समझती है। हमारे घर में खाने को नहीं, बच्चे भूखे हैं और हम से उम्मीद की जाती है कि हम फील्ड पर सेवा भाव से मरीजों की सेवा करें।
कर्मवती कहती हैं- “ हम भी मान सम्मान की हक़दार हैं। हम अस्पताल जाते हैं कोई पूछता नहीं। कहते हैं पीछे जाओ लाइन में खड़े हो। सरकारी अधिकारी गुलामों जैसा व्यवहार करते हैं। उनके व्यवहार में बदलाव आना चाहिए।”
प्रिया बताती हैं कि “आशा वर्कर को 3 हजार रुपए मासिक मिलते हैं। 6 प्वाइंट पूरे न होने पर 500 रुपए कट जाते हैं। अपने एरिया में काम करते हैं, डिस्पेंसरी में काम करते हैं, जब भी कोई फोन आता है मरीज का रात में 12 बजे, 1 बजे या भोर में 3-4 बजे हमें तुरंत लेकर उन्हें अस्पताल जाना पड़ता है। आदमी को गले में खरास की शिकायत हुई तो भी हमें फोन आता है और हम फोन उठाते हैं।”
प्रिया आगे कहती हैं- “मोदी जी ने अगस्त 2019 में हमारा मानदेय दोगुना करने का आश्वासन दिया था पर आज तक नहीं किया। मोदी जी के पास मंदिर बनाने के लिए पैसे हैं पर हम आशा वर्करों को देने के लिए पैसे नहीं हैं। कई आशा वर्कर को कोरोना हुआ है लेकिन न तो उनका टेस्ट हुआ। न इलाज मिला, न ही कोई अन्य सुविधा।”
आशा वर्कर यशोदा कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान ही बीच में एक दिन विधानसभा में भी धरना दिए थे। हम कोरोना के समय में भी मरीजों के घर जा रहे हैं। कई कोरोना पोजिटिव मरीजों के घरों में पोस्टर लगाए हैं हमने। हमने कंटेनमेंट जोन में जाकर सर्वे किया है। लॉकडाउन में जब यातायात के साधन बंद थे तब हम पर्सनल रिक्शा करके अपने पॉकेट से पैसा देकर मरीज को लेने जाते थे। हमें कुछ हो जाए तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा।”
निशा कहती हैं, “कोरोना के समय कितने स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला हुआ है। लेकिन हमारे साथ कोई पुलिस फोर्स नहीं गयी। हमने अस्पतालों में जाकर कहा भी कि हमारे साथ सिविल डिफेंस भेजो लेकिन नहीं भेजा उन्होंने। उन्होंने कहा कि ये आपकी जिम्मेदारी है खुद से जाकर खुद करना है।”
साऊथ दिल्ली निजामुद्दीन की आशा वर्कर उर्मिला ने बताया कि कोरोना सर्वे करने का काम जो हमें सरकार ने दिया उसका मेहनताना 1000रुपये महीना डॉक्टर ने देने क़ो क़हा था लाकडाउन के दौरान वो भी उन्हें दिया गया जो आशा वर्कर पॉजिटिव हुई उनक़ो भी सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली। कोरोना पॉजिटिव क़ो क्लिप लगाने का 100रुपये , आने जाने के सौ रुपये जो आशा वर्कर क़ो मिलने थे वो सिविल डिफेन्स एवं A N M क़ो दिया गया। अगर आशा वर्कर के छः पॉइन्ट नहीं बनते हैं तो तीन हजार भी नही मिलेंगे।
तीन महीने की प्रिगनेन्सी हो जाती है तो उसका रजिस्ट्रेशन करवाना, टीका लगवाना , डिस्पेंसरी कार्ड बनवाना फैमिली प्लानिंग के बारे में बताना डिलीवरी के दौरान हॉस्पिटल लेकर जाना अगर ये सब नहीं हुआ तो उनको तीन हजार ना मिलकर सिर्फ 500 रूपए ही मिलेंगे। उसमे भी A N M के अलग रूल रेगुलेशन होते हैं। उर्मिला आशा वर्कर के पति टैक्सी ड्राइवर हैं जो लाक डाऊन मे घर ही हैं। उनके दो बच्चे हैं 14वर्ष की लड़की व 16वर्ष का बेटा 12वीं का एग्जाम दिया था। आशा वर्कर छाया भी साऊथ दिल्ली से हैं उनका कहना है कि हम इन्सेंटिव पर काम करते हैं।
(दिल्ली से अवधू आज़ाद की रिपोर्ट।)
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