Saturday, April 20, 2024

अशफ़ाक़ का जन्मदिवस: हैरान करने वाली खुशी से फांसी पर चढ़ा मस्ताना शायर- भगत सिंह

(जनवरी, 1928 के ‘किरती में भगत सिंह ने काकोरी के शहीदों के बारे में ‘विद्रोही’ नाम से लिखा था। यह लेख ‘भगत सिंह के सम्पूर्ण दस्तावेज’ में संग्रहीत है, जिसका संपादन प्रोफेसर चमन लाल ने किया है। इस लेख में भगत सिंह ने रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफ़ाक़ उल्ला खां के व्यक्तित्व का वर्णन किया है। इन लोगों को काकोरी कांड के संदर्भ में फांसी हुई थी।

काकोरी कांड नौ अगस्त 1925 को हुआ था। इसी दिन क्रांतिकारियों ने ट्रेन से खजाना लूटा था। क्रांतिकारियों का मकसद ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदना था, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी संघर्ष को मजबूती मिल सके। काकोरी ट्रेन डकैती में खजाना लूटने वाले क्रांतिकारी देश के विख्यात क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ (एचआरए) के सदस्य थे।

काकोरी कांड का मुकदमा 10 महीने तक चला था, जिसमें रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफ़ाक़ उल्ला खां को फांसी की सजा हुई। अशफ़ाक़ उल्ला खां को फैज़ाबाद जेल में 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी-डॉ. सिद्धार्थ)

यह मस्ताना शायर भी हैरान करने वाली खुशी से फांसी पर चढ़ा। सुंदर और लंबा-चौड़ा जवान था, तगड़ा बहुत था। जेल में कुछ कमजोर हो गया था। आपने मुलाकात के समय बताया कि कमजोर होने का कारण ग़म नहीं, बल्कि खुदा की याद में मस्त रहने की खातिर रोटी बहुत कम खाना है। फांसी से एक दिन पहले आपकी मुलाकात हुई। आप खूब सजे संवरे थे। बड़े-बड़े कढ़े हुए केश खूब सजते थे। बड़ा हंस-हंस कर बातें करते रहे। आपने कहा, कल मेरी शादी होने वाली है। दूसरे दिन सुबह छह बजे आपको फांसी दी गई। कुरान शरीफ का बस्ता लटका कर हाजियों की तरह वजीफा पढ़ते हुए बड़े हौसले से चल पड़े। आगे जाकर तख्ते पर रस्सी को चूम लिया। वहीं आपने कहा,
मैंने कभी किसी आदमी के खून से अपने हाथ नहीं रंगे और मेरा इंसाफ खुदा के सामने होगा। मेरे ऊपर लगे सभी इल्जाम गलत हैं।

खुदा का नाम लेते ही रस्सी खींची गई और वे कूच कर गए। उनके रिश्तेदारों ने बड़ी मिन्नतों-खुशामदों से उनकी लाश ली और उन्हें शाहजहांपुर ले आए। लखनऊ स्टेशन पर मालगाड़ी के एक डिब्बे में उनकी लाश देखने का अवसर कुछ लोगों को मिला। फांसी के दस घंटे बाद भी उनके चेहरे पर वैसी ही रौनक थी। ऐसा लगता था कि अभी ही सोए हों, लेकिन अशफ़ाक़ तो ऐसी नींद सो गए थे कि जहां से वे कभी नहीं जगेंगे। अशफ़ाक़ शायर थे और उनका शायर उपनाम हसरत था। मरने के पहले आपने ये दो शेर कहे थे,
फनाह हैं हम सबके लिए, हम पै कुछ नहीं मौकूफ!
वका है एक फकत जाने की ब्रिया के लिए

(नाश तो सभी होंगे, कोई अकेल हम थोड़े होंगे। न मरने वाला सिर्फ तो एक परमात्मा है।)

तंग आकर हम उनके जुल्म से बेदाद से
चल दिए सूए जिन्दाने फैज़ाबाद से

अश़फ़ाक की ओर से एक माफीनामा छपा था, श्री राम प्रसाद ने अपने आखिरी एलान में पोजीशन साफ कर दी। आपने कहा कि अशफ़ाक़ माफीनाम तो क्या, अपील के लिए भी राजी न थे। आपने (अशफ़ाक़) कहा था कि, मैं खुदा के सिवाय किसी के आगे झुकना नहीं चाहता। परंतु रामप्रसाद (रामप्रसाद बिस्मिल) के कहने-सुनने से आपने वह सब कुछ लिखा था। वरना मौत का कोई उन्हें डर या भय नहीं था। उपरोक्त हाल पढ़ कर पाठक भी यह बात समझ सकते हैं।

आप शाहजहांपुर के रहने वाले थे और आप रामप्रसाद (रामप्रसाद बिस्मिल) का दायां हाथ थे, मुसलमान होने के बावजूद भी कट्टर आर्य समाजी धर्म के रामप्रसाद से हद दर्जे का प्रेम था। दोनों प्रेमी एक बड़े काम के लिए अपने प्राण उत्सर्ग कर अमर हो गए।

  • प्रस्तुति- डॉ. सिद्धार्थ

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक के सलाहकार संपादक हैं।)

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