वास्तव में यह व्यवस्था सड़ चुकी है, जिसमें इंसानियत व मानवता के लिए कोई जगह नहीं है। जिंदा आदमी तो दूर, यहाँ लाश को भी लोग अपनी गंदी राजनीति चमकाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। आज जब पूरे विश्व में कोविड-19 एक खतरनाक बीमारी के रूप में सामने आया है और पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था डगमगा चुकी है। कोविड-19 का अब तक कोई भी वैक्सीन नहीं बन पाने के कारण इस बीमारी से बचने के लिए लगभग सभी प्रभावित देश फ़िज़िकल डिस्टेन्सिंग का सहारा ले रहे हैं।
इस महामारी से अब तक लाखों लोग मर चुके हैं और इससे फैली अव्यवस्था के कारण भी इससे कम लोग अपनी जान नहीं गंवाए होंगे, यह भी एक सत्य है। हमारे देश में भी 24 मार्च की रात 12 बजे से फ़िज़िकल डिस्टेन्सिंग के लिए लाॅक डाउन जारी है, लेकिन फिर भी कोरोना पाॅजिटिव लोगों की संख्या व इससे मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ ही रही है।
कोरोना महामारी के इस दौर में हमारे देश में अति दक्षिणपंथी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारे पर चलने वाली भाजपा की सरकार है और यहाँ के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आरएसएस की शाखा के ही प्रशिक्षित कैडर हैं। आरएसएस की विचारधारा व लक्ष्य आज किसी से छुपा नहीं है, यह भगवा संगठन इस महामारी के दौर में भी अपनी पूरी ताकत से अपने लक्ष्य ‘हिन्दू राष्ट्र’ को पाने के लिए जी-जान से जुटा हुआ है। हमारे देश में कोरोना महामारी फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराना भी आरएसएस के अपने वृहत लक्ष्य का ही एक हिस्सा है। आज पूरे देश में मुसलमानों के प्रति नफरत की ज्वाला धधकायी जा रही है, अपने इस नापाक उद्देश्य को पूरा करने के लिए जमकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के साथ-साथ कनफुंकवा गिरोह भी पूरी तरह से सक्रिय है।
खैर, मैं इस लेख के माध्यम से आपका ध्यान दूसरी ओर आकृष्ट करना चाहता हूं। वह घटना इस प्रकार है, 12 अप्रैल को दिन के लगभग 9 बजे झारखंड की राजधानी रांची के रिम्स अस्पताल में एक कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु हो गई । इनकी मृत्यु के बाद केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय व डब्ल्यूएचओ के गाइडलाइन के अनुसार ही रांची प्रशासन ने इस लाश को दफनाने की प्रक्रिया शुरू की। प्रशासन ने फैसला किया कि लाश को बरियातू स्थित जोड़ा तालाब के इन्द्रप्रस्थ काॅलोनी स्थित कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। वहाँ लाश को दफनाने के लिए जेसीबी से गड्ढा भी खोदा गया, लेकिन स्थानीय लोगों के अचानक विरोध के कारण वहाँ लाश दफनाना स्थगित कर दिया गया।
वैसे, अंजुमन इस्लामिया के महासचिव हाजी मुख्तार अहमद का कहना है कि बरियातू के सत्तार काॅलोनी स्थित कब्रिस्तान में शव दफनाने को लेकर कोई विवाद नहीं था, प्रशासन ने कम जगह होने के कारण यहाँ शव दफनाना रद्द किया। लेकिन अखबारों में बरियातू में भी शव नहीं दफनाने को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन की तस्वीर छपी है, इसका मतलब यही है कि यहाँ भी विरोध के कारण ही लाश नहीं दफनाया जा सका। इसके बाद प्रशासन ने तय किया कि रातू रोड स्थित कब्रिस्तान में दफनाने का निर्णय लिया। लोगों का कहना है कि प्रशासन का यह निर्णय बहुत ही तेजी से रातू रोड पहुंच गई और प्रशासन के पहुंचने से पहले ही लाॅक डाउन की धज्जियां उड़ाते हुए सैकड़ों महिला-पुरुष रातू रोड स्थित कब्रिस्तान पहुंच गये और कब्रिस्तान को घेर कर विरोध-प्रदर्शन करने लगे। लोगों का कहना था कि कोरोना का संक्रमण कैसे फैलेगा, यह कहना मुश्किल है।
इसलिए हम जान दे देंगे लेकिन यहाँ शव दफनाने नहीं देंगे। यहाँ भी प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों की मांगों को मानते हुए शव दफनाये बगैर वापस आ गई। फिर प्रशासन ने डोरंडा स्थित कब्रिस्तान का रूख किया, लेकिन वहाँ भी स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन के कारण प्रशासन को पीछे हटना पड़ा। बाद में अफवाह उड़ी कि जोमार नदी के पास शव को दफनाया या जलाया जाएगा, वहाँ भी काफी संख्या में लोग जमा होकर विरोध-प्रदर्शन करने लगे, लेकिन वहाँ प्रशासन पहुंचा ही नहीं। आखिरकार रात के लगभग एक-डेढ़ बजे मृतक के अपने मोहल्ले हिन्दपीढ़ी के बच्चों के कब्रिस्तान में ही दफनाया गया।
बीबीसी न्यूज पोर्टल पर 18 मार्च, 2020 को प्रकाशित खबर के अनुसार “कोरोना वायरस के संक्रमण से किसी की मृत्यु होने के बाद उसके शव का प्रबंधन कैसे किया जाए और क्या सावधानियाँ बरती जाएं, इस बारे में भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ दिशा-निदेश जारी किए हैं। राजधानी दिल्ली में एक बुज़ुर्ग महिला की COVID-19 के कारण मृत्यु होने के बाद लोगों में यह भ्रम देखने को मिला था कि उनके शव के अंतिम संस्कार से भी संक्रमण फैल सकता है।
इस घटना के बाद दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने यह दावा किया कि शव के अंतिम संस्कार से कोरोना वायरस नहीं फैलता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के दख़ल के बाद चिकित्सकों की एक टीम की निगरानी में महिला का अंतिम संस्कार किया गया था। इस पूरे मामले को देखते हुए ही भारत सरकार ने नेशनल सेंटर फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल (एनसीडीसी) की मदद से ये दिशा-निदेश तैयार किए हैं।
18 मार्च 2020 को प्रेस से बात करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने एनसीडीसी के हवाले से कहा कि ‘जिस तरह की गाइडलाइंस निपाह वायरस के संक्रमण के समय जारी की गई थीं, COVID-19 के लिए उन्हीं में कुछ बदलाव किए गए हैं।
चूंकि COVID-19 एक नई बीमारी है और वैज्ञानिकों के पास फ़िलहाल इसकी सीमित समझ है। इसलिए महामारियों से संबंधित जो समझ अब तक हमारे पास है, उसी के आधार पर ये गाइडलाइंस तैयार की गई हैं।’
क्या हैं गाइडलाइंस:
1. दिशा-निर्देश में इस बात पर बहुत ज़ोर दिया गया है कि COVID-19 हवा से नहीं फैलता बल्कि बारीक कणों के ज़रिए फैलता है।
2. मेडिकल स्टाफ़ से कहा गया है कि वो COVID-19 के संक्रमण से मरे व्यक्ति के शव को वॉर्ड या आइसोलेशन रूम से नीचे लिखी गईं सावधानियों के साथ ही शिफ़्ट करें:
3. शव को हटाते समय पीपीई का प्रयोग करें। पीपीई एक तरह का ‘मेडिकल सूट’ है जिसमें मेडिकल स्टाफ़ को बड़ा चश्मा, एन 95 मास्क, दस्ताने और ऐसा एप्रन पहनने का परामर्श दिया जाता है जिसके भीतर पानी ना जा सके।
मरीज़ के शरीर में लगीं सभी ट्यूब बड़ी सावधानी से हटाई जाएं। शव के किसी हिस्से में घाव हो या ख़ून के रिसाव की आशंका हो तो उसे ढका जाए।
4. मेडिकल स्टाफ़ यह सुनिश्चित करे कि शव से किसी तरह का तरल पदार्थ ना रिसे।
5. शव को प्लास्टिक के लीक-प्रूफ़ बैग में रखा जाए। उस बैग को एक प्रतिशत हाइपोक्लोराइट की मदद से कीटाणु रहित बनाया जाए। इसके बाद ही शव को परिवार द्वारा दी गई सफेद चादर में लपेटा जाए।
6. केवल परिवार के लोगों को ही COVID-19 के संक्रमण से मरे व्यक्ति का शव दिया जाए।
7. कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति के इलाज में इस्तेमाल हुईं ट्यूब और अन्य मेडिकल उपकरण, शव को ले जाने में इस्तेमाल हुए बैग और चादरें, सभी को नष्ट करना ज़रूरी है।
8. मेडिकल स्टाफ़ को यह दिशा-निर्देश मिले हैं वे मृतक के परिवार को भी ज़रूरी जानकारियाँ दें और उनकी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए काम करें।
शवगृह से जुड़ी गाइडलाइंस:
1.भारत सरकार के अनुसार COVID-19 से संक्रमित शव को ऐसे चेंबर में रखा जाए जिसका तापमान क़रीब चार डिग्री सेल्सियस हो।
2. शवगृह को साफ़ रखा जाए और फ़र्श पर तरल पदार्थ ना हो।
3. COVID-19 से संक्रमित शव की एम्ब्लेमिंग पर रोक है। यानी मौत के बाद शव को सुरक्षित रखने के लिए उस पर कोई लेप नहीं लगाया जा सकता।
4. कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति की ऑटोप्सी यानी शव-परीक्षा भी बहुत ज़रूरी होने पर ही की जाए।
5. शवगृह से COVID-19 शव निकाले जाने के बाद सभी दरवाज़े, फ़र्श और ट्रॉली सोडियम हाइपोक्लोराइट से साफ़ किए जाएं।
शव को ले जाने वालों के लिए:
1. सही तरीक़े से, यानी प्लास्टिक बैग और चादर में बंद किए गए शव से उसे ले जाने वालों को कोई ख़तरा नहीं है।
2. लेकिन जिस वाहन को ऐसा शव ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जाए, उसे भी रोगाणुओं से मुक्त करने वाले द्रव्य से साफ़ करना ज़रूरी है।
अंत्येष्टि या दफ़्न करने से संबंधित गाइडलाइंस:
1. अंतिम संस्कार की जगह को और क़ब्रिस्तान को संवेदनशील जगह मानें। भीड़ को जमा ना होने दें ताकि कोरोना वायरस के ख़तरे को कम रखा जा सके।
2. परिवार के अनुरोध पर मेडिकल स्टाफ़ के लोग अंतिम दर्शन के लिए मृतक का चेहरा प्लास्टिक बैग खोलकर दिखा सकते हैं, पर इसके लिए भी सारी सावधानियाँ बरती जाएं।
3. अंतिम संस्कार से जुड़ीं सिर्फ़ उन्हीं धार्मिक क्रियाओं की अनुमति होगी जिनमें शव को छुआ ना जाता हो।
4. शव को नहलाने, चूमने, गले लगाने या उसके क़रीब जाने की अनुमति नहीं होगी।
5. शव दहन से उठने वाली राख से कोई ख़तरा नहीं है। अंतिम क्रियाओं के लिए मानव-भस्म को एकत्र करने में कोई ख़तरा नहीं है।”
कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद की प्रक्रिया पर केन्द्र सरकार की एक स्पष्ट गाइडलाइन है, फिर भी रांची प्रशासन बार-बार भीड़ के सामने क्यों बेबस नजर आया ? झारखंड सरकार के एक भी मंत्री ने कोरोना संक्रमण के बारे में फैले हुए झूठे अफवाह से आक्रोशित जनता को समझाने का प्रयास क्यों नहीं किया ? प्रशासन की हर अगली योजना के बारे में मोहल्ले वाले कैसे अवगत होते रहे ? वे कौन लोग थे, जो जनता को लाश नहीं दफनाने को लेकर उकसा रहे थे ? आखिर कोरोना से संक्रमित व्यक्ति की मृत्यु के बाद की गाइडलाइन को लेकर अब तक जनता को जागरूक क्यों नहीं किया गया है ? ऐसे कई सवाल हैं, जो झारखंड सरकार को कठघरे में खड़ा करते हैं।
लाश को दफनाने को लेकर देर रात तक चले इस घटनाक्रम ने इंसानियत को तो तार-तार किया ही, साथ में आने वाले समय की भयावहता ने भी लोगों को सोचने को मजबूर कर दिया है। संघ के एजेंडे से प्रभावित होते हुए कुछ लोग सोशल साइट्स पर इस विरोध प्रदर्शन को उचित ठहराने लगे और कोरोना संक्रमित शव को इलेक्ट्रिक शवदावगृह में जलाने की वकालत भी करने लगे और इसके पीछे यह तर्क दिया जाने लगा कि साइन्टिफिक तरीके से यही सही है।
लेकिन जब ऐसे लोगों से कोरोना संक्रमित शव के बारे में डब्ल्यूएचओ या किसी स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन मांगी गयी, तो ऐसे लोग कट लिये। रांची स्थित ‘श्री महावीर मंडल डोरंडा’ केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष संजय पोद्दार व मंत्री पप्पू वर्मा ने तो उपायुक्त को आवेदन देकर किसी भी कोरोना संक्रमित शव की अंत्येष्टि शहर से बाहर करने की ही मांग कर डाली। आज जिस तरह से ‘गोदी मीडिया’ और आरएसएस के लगुवे-भगुवे मुसलमानों के प्रति नफरत उगल रहे हैं, उसमें मुसलमानों को समाज से अलग-थलग करने की पूरी तैयारी है। इसीलिए कभी सीएए, एनआरसी और एनपीआर, तो अभी कोरोना महामारी में भी उनको ही निशाना बनाया जा रहा है।
दरअसल आज दुनिया आत्मकेन्द्रित होती जा रही है और इस शोषण व लूट पर टिकी इस व्यवस्था के पोषणकर्ता यह कभी भी नहीं चाहेंगे कि लोग सामूहिकता में किसी भी विषम परिस्थितियों से टक्कर लें। हमारे जैसे अर्द्ध-औपनिवेशिक और अर्द्ध-सामंती व्यवस्था वाले देश में तो गरीब जनता के सामने महामारी से ज्यादा अपने आप को भूख से बचाने की चिंता है और ऐसी परिस्थिति में दक्षिणपंथी ताकतों द्वारा फैलाये जा रहे संगठित अफवाह के कारण जनता के आपस में लड़ने की स्थिति तैयार की जा रही है।
ऐसे में इस बदबूदार हो रही व्यवस्था की बदबू और इस बदबू को फैलाने वाली ताकतों को भी आज खुली आँखों से साफ देखा जा सकता है। आज जनता को आपस में लड़ाने के बजाय अपनी लड़ाई का विपक्ष इस बदबूदार व्यवस्था के पालनहारों को बनाना होगा, तभी भविष्य में हम एक प्रेममयी दुनिया को देख पायेंगे।
(रूपेश कुमार सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल झारखंड के रामगढ़ में रहते हैं।)
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