बकोरिया मुठभेड़ कांड: सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट के बाद अदालत ने किया केस बंद

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झारखंड। पलामू जिले में हुए सबसे चर्चित बकोरिया मुठभेड़ कांड की सीबीआई की विशेष अदालत ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है। अब इस चर्चित कांड की कोई सुनवाई सीबीआई की विशेष अदालत में नहीं होगी। सीबीआई ने इस कांड की जांच के बाद मुठभेड़ को सही बताते हुए पिछले महीने ही क्लोजर रिपोर्ट अदालत में दाखिल की थी तथा 30 मई को सीबीआई की ओर से दाखिल क्लोजर रिपोर्ट पर सीबीआई कोर्ट में सुनवाई हुई।

सुनवाई के बाद अदालत ने क्लोजर रिपोर्ट को सही पाते हुए केस बंद करने का आदेश दिया है। लेकिन मुठभेड़ में मारे गए उदय यादव के पिता जवाहर यादव ने क्लोजर रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया। वह इसके खिलाफ प्रोटेस्ट याचिका दाखिल करेंगे। इसके लिए अदालत से समय की मांग की गई है। जिस पर अदालत ने उन्हें समय प्रदान किया है।

9 जून, 2015 को पलामू के सतबरवा (बकोरिया) में कथित मुठभेड़ में मारे गए कथित 12 नक्सलियों की सनसनीखेज खबर देश के अखबारों व न्यूज चैनलों पर पुलिस की जांबाजी को सलाम के साथ सुर्खियों में रही थी। मगर कुछ ही दिनों बाद इस फर्जी मुठभेड़ का जब खुलासा हुआ तब कोर्ट के आदेश के बाद मामले की सीआईडी जांच की घोषणा हुई।

सीआइडी के तत्कालीन एडीजी एमवी राव ने जब जांच शुरू की तभी झारखंड के तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय ने जांच की दिशा को प्रभावित करने की कोशिश में एमवी राव को निर्देश दिया कि वे जांच की गति धीमी रखें, कोर्ट के आदेश की चिंता नहीं करें। मगर एमवी राव ने डीके पांडेय की बात मानने से साफ इंकार कर दिया था।

तत्कालीन सीआईडी एडीजी एमवी राव

नतीजा यह रहा कि जिसके तुरंत बाद उनका तबादला सीआइडी से नयी दिल्ली स्थित ओएसडी कैंप में कर दिया गया, जबकि यह पद स्वीकृत भी नहीं था। राव को 13 नवंबर, 2017 एडीजी सीआईडी के रूप में पदस्थापित किया गया था और 13 दिसंबर को उन्हें पद से हटा दिया गया। सूत्र बताते हैं कि अब तक किसी भी अफसर को बिना उसकी सहमति के ओएसडी कैंप में पदस्थापित नहीं किया गया है। 

इस बावत एडीजी एमवी राव ने अपने तबादले के विरोध में गृह सचिव को एक पत्र लिखा था। पत्र की प्रतिलिपि झारखंड के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के अलावा केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी गयी। पत्र में यह भी कहा गया था कि ”बकोरिया कांड की जांच सही दिशा में ले जानेवाले और दर्ज एफआईआर से मतभेद रखने का साहस करनेवाले अफसरों का पहले भी तबादला किया गया है। यह एक बड़े अपराध को दबाने और अपराध में शामिल अफसरों को बचाने की साजिश है।

”सनद रहे एमवी राव के पत्र के आलोक में गृह विभाग द्वारा डीके पांडेय को नोटिस भेजा गया। बकोरिया कांड मामले में अपनी भूमिका पर पक्ष रखने को कहा गया। डीजीपी से प्रतिक्रिया मांगी गयी। गृह विभाग उनका पक्ष जानने के बाद ही उनपर कार्रवाई करेगा कहा गया’’।

जबकि कथित मुठभेड़ के तुरंत बाद भी कई अफसरों के तबादले कर दिये गये थे। सीआईडी के तत्कालीन एडीजी रेजी डुंगडुंग व पलामू के तत्कालीन डीआइजी हेमंत टोप्पो का तबादला किया गया। उनके बाद सीआईडी एडीजी बने अजय भटनागर व अजय कुमार सिंह के कार्यकाल में मामले की जांच सुस्त हो गयी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस पर टिप्पणी की थी।

मामले में रुचि लेने की वजह से रांची जोन की तत्कालीन आईजी सुमन गुप्ता का भी अचानक तबादला कर दिया गया था। पलामू सदर थाना के तत्कालीन प्रभारी हरीश पाठक को पुराने मामले में निलंबित कर दिया गया था। ये सारे घटनाक्रम उस वक्त स्थानीय अखबारों की सुर्खियों में रहे।

जिस तरह से पलामू के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में पिछले आठ जून 2015 को पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में मारे गये 12 लोगों को पुलिस माओवादी बताती रही थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया मामला आईने की तरह साफ होता गया।

इस घटना को लेकर जो तस्वीर सामने आईं उससे यह साफ होता चला गया कि एक डॉ.आर.के उर्फ अनुराग को छोड़कर किसी का भी नक्सली होने का रिकॉर्ड पुलिस के पास उपलब्ध नहीं था। मजे की बात तो यह है कि मारे गये इन 12 लोगों में पांच नाबालिग थे। जिनकी पहचान घटना के ढाई साल बाद हुई। जबकि केवल तीन नबालिगों का ही जिक्र होता रहा था। जिन्हें पुलिस अब तक नक्सली बताती रही थी।

उस वक्त बकोरिया कांड की सीआईडी जांच की कई बिंदुओं पर झारखंड हाईकोर्ट ने संदेह जताया था। इसलिए 22 अक्तूबर 2018 को हाईकोर्ट ने बकोरिया मुठभेड़ कांड की सीबीआई जांच के आदेश दिये थे। जिसके बाद 19 नवंबर को सीबीआई दिल्ली की स्पेशल सेल ने संख्या RC.4(S)/2018/SC-1/CBI/NEW DELHI के तहत एफआईआर दर्ज की।

प्राथमिकी में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 353, 307, आर्म्स एक्ट की धारा 25(1-B)A/26/27/35 और ‘एक्सप्लोसिव सब्सटांस एक्ट’ की धारा 4/5 के तहत दर्ज की गयी थी।

बाद में तत्कालीन झारखंड की रघुवर दास सरकार द्वारा सीबीआई जांच को रोकने के लिए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के स्टैंडिंग काउंसिल तापेश कुमार सिंह ने कोर्ट में स्पेशल लीव पीटिशन दायर की थी।

बकोरिया कांड मामले में हाइकोर्ट द्वारा सीबीआई से जांच कराने का आदेश के साथ ही उस वक्त विपक्ष ने इस मामले में सरकार पर जम कर निशाना साधा था। पूर्व मुख्यमंत्री व तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष हेमंत सोरेन ने बकोरिया कांड में हाइकोर्ट द्वारा सीबीआइ जांच के लिए दिये गये फैसले का स्वागत किया था। वहीं उन्होंने पुलिस महानिदेशक डीके पांडेय को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग की थी।

तत्कालीन पुलिस महानिदेशक डी के पाण्डेय

उस समय के झाविमो सुप्रीमो एवं पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (जो अब भाजपा में है और विपक्ष के नेता हैं) ने कहा था कि दोषी व दागी अधिकारियों को दंडित करना राज्य सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन झारखंड में दोषियों को सरकार का खुला संरक्षण प्राप्त है।

उन्होंने कहा था कि प्रदेश में डीजीपी, एडीजी सहित सीएस रहीं राजबाला वर्मा जैसे तीन शीर्ष अधिकारियों से जुड़ा मामला सामने आया। मगर सरकार ने कोई कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझा। मरांडी ने कहा था कि डीजीपी सवालों के घेरे में हैं और मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास गृह मंत्रालय है। उन्होंने सवाल उठाया कि एमवी राव ने डीजीपी पर जब जांच धीमा करने का दबाव बनाने का सार्वजनिक आरोप लगाया। उस समय के सीएम (जिनके पास गृह मंत्रालय भी था) ने क्या कार्रवाई की? सरकार द्वारा अदालत में जो भी एफिडेविट दायर किया गया है, उससे यह साफ है कि यह सारा मामला गृह विभाग से होकर ही गुजरा होगा।

जब बकोरिया मुठभेड़ के बाद सीआईडी ने 9 जून 2015 को जांच शुरू की थी तब सीआईडी जांच की शिथिलता पर मुठभेड़ में मारे गए उदय यादव के पिता जवाहर यादव ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उसके बाद झारखंड हाईकोर्ट ने 12 अक्टूबर 2018 को सीबीआई जांच का आदेश दिया था। जिसके बाद सीबीआई दिल्ली की स्पेशल सेल ने प्राथमिकी को टेकओवर किया था और अब सीबीआई ने फोरेंसिक रिपोर्ट में भी मुठभेड़ को सही पाया।

पलामू जिले के सतबरवा थाना क्षेत्र के बकोरिया में 8 जून 2015 को मुठभेड़ में डा. अनुराग सहित 12 लोग मारे गए थे। मुठभेड़ में मारे गए 12 लोगों में 10 का कोई नक्सली रिकार्ड नहीं था। मारे गए नक्सलियों में टाप कमांडर आर.के उर्फ अनुराग और उसका बेटा-भतीजा भी शामिल थे। मुठभेड़ में 5 नाबालिग, एक पारा शिक्षक और उसका भाई भी मारा गया था।

जांच के दौरन सीबीआई की टीम तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय, तत्कालीन आईजी ए नटराजन, डीआईजी, एसपी, सीआरपीएफ डीआईजी, कमांडेंट, थानेदार समेत कई अधिकारियों से पूछताछ की। इसके बाद सीबीआई ने अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की है।

सीबीआई द्वारा दाखिल किए गए क्लोजर रिपोर्ट पर ऐतराज जताते हुए मुठभेड़ में मारे गए उदय यादव के पिता जवाहर यादव ने इसके खिलाफ प्रोटेस्ट याचिका दाखिल करने की बात कही। इसके लिए अदालत से समय की मांग की गई है। जिस पर अदालत ने उन्हें समय दे दिया है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

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