कारपोरेट के लिए ऋण और निजी बैंकों के लिए बाजार मुहैया कराने का हिस्सा है बैंकों के मर्जर का फैसला

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वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने देश के 10 बैंकों का विलय कर उन्हें चार बड़े सरकारी बैंकों में बदल दिया। पीएनबी, केनरा, यूनियन बैंक और इंडियन बैंक में छह अन्य बैंकों का विलय कर दिया गया। 2017 में देश में 27 सरकारी बैंक थे, अब यह 12 रह जाएंगे।

सोचने समझने की बात यह है कि आखिर इस तरह से बैंकों के विलय करने का क्या कारण है। दरअसल इस प्रकार के विलय से बड़े बैंकों से कर्ज देने की क्षमता बढ़ती है।

बैंकों के मर्जर का एकमात्र उद्देश्य होता है बैलेंस शीट के आकार को बड़ा दिखाना ताकि वह बड़े लोन दे सके। और लोन डुबोने वाले मित्र उद्योगपतियों को एक ही बैंक से और भी बड़े लोन दिलवाए जा सकें और पुराने लोन को राइट ऑफ किया जा सके।

मर्जर के बाद अब यह बैंक छोटे-छोटे व्यापारियों और ग्रामीण क्षेत्र के जमाकर्ताओं की बचत राशि से बड़े उद्योगपतियों को लोन उपलब्ध कराएंगे और छोटे किसानों, व्यवसायियों, उद्यमियों, छात्रों आदि को साख सुविधाओं से वंचित रख सूदखोरों के भरोसे छोड़ देंगे।

ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के महासचिव सीएच वैंकटचलम बताते हैं कि बड़े बैंकों की पूंजी अधिक होगी और वो बड़े लोन देंगे। बैंककर्मियों की यह देश की सबसे बड़ी संस्था पहले भी इस तरह मर्जर का विरोध करती आई है। उसका कहना है कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि बैंकों के विलय से बनने वाला नया बैंक ज्यादा कुशल और क्षमतावान होता है।

बड़े और विश्वस्तरीय बैंक की बात करके सबसे पहले स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में अपने छह एसोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय कर दिया गया। उस समय यह कहा गया कि इस नीति से स्टेट बैंक विश्व के 10 सबसे बड़े बैंकों में शामिल हो जाएगा लेकिन बाद में पता लगा कि इतनी संपत्ति, ग्राहक और शाखाओं के बावजूद देश का यह सबसे बड़ा बैंक दुनिया के शीर्ष 30 बैंकों में भी शामिल नहीं हो पाया है।

अब बात करते हैं नौकरी की। सरकार कहती है कि किसी को नौकरी से निकाला नहीं जाएगा लेकिन पिछली बार जब स्टेट बैंक में बैंकों का विलय किया गया तब 6 महीनों में 10 हजार कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

दरअसल इस तरह के विलय में होता यह है कि कर्मचारियों की प्रमोशन, ट्रान्सफर और अन्य सुविधाओं के अलग-अलग नियम होते हैं। ऐसे में विलय के बाद किस बैंक के नियम लागू होंगे, यह समझना मुश्किल होता है जो लोग अपने प्रमोशन का इंतजार कर रहे होंगे, विलय के बाद सीनियारिटी की समस्या भी आती है। पेपर पर तो बैंकों का विलय हो जाता है लेकिन अलग-अलग संस्कृति, प्रौद्योगिक प्लेटफार्म एवं मानव संसाधन का एकीकरण नहीं हो पाता यह सबसे बड़ी समस्या होती है।

विलय होने वाले छोटे बैंक के कर्मचारियों को बड़े बैंक में दूसरे नागरिक की नजर से देखा जाता है और उनसे सही तरह का व्‍यवहार भी नहीं होता है, जिससे ना चाहते हुए भी कर्मचारी नौकरी छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।

बैंकों में नयी भर्ती बेहद कम हो जाती है। स्टेट बैंक में विलय का उदाहरण हमारे सामने है। विलय के बाद के वर्षों में बैंकों की शाखाओं में काम करने वाले करीब 11,382 लोग रिटायर हुए हैं और सिर्फ 798 लोगों को नए कर्मचारियों में नौकरी मिल पायी।

पिछले जितने भी मर्जर हुए हैं उनमें हजारों शाखाएं बन्द हुई हैं जबकि भारत जैसे बड़े देश में सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकिंग के संकुचन के बजाय विस्तार की आवश्यकता है, बैंकों के विलय के बाद शाखाओं के विलय से बैंकिंग व्यवस्था का लाभ ग्रामीण इलाकों के बजाए महानगरों में रहने वाले ही उठाएंगे। लेकिन किसे फिक्र है आखिर हम विश्व गुरू जो बन चुके हैं।

(गिरीश मालवीय आर्थिक मामलों के जानकार हैं और आजकल इंदौर में रहते हैं।)

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