Thursday, April 25, 2024

J&K हाईकोर्ट बार ने लिखा चीफ जस्टिस को पत्र, कहा- कोर्ट में लंबित पड़ी हैं 99 फीसदी हैबियस कार्पस याचिकाएं

अगस्त 19 को अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद से जम्मू व कश्मीर हाईकोर्ट में दायर 99 प्रतिशत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं अभी तक लंबित चल रही हैं। श्रीनगर में जम्मू और कश्मीर बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने ये बात भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबड़े को लिखे एक पत्र में कही है। 25 जून को लिखे पत्र में समिति ने कहा कि 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35-ए हटाने के बाद से, कश्मीर घाटी से क़रीब 13,000 लोग जम्मू-कश्मीर क्रिमिनल प्रोसीजर कोड और सैकड़ों दूसरे लोग पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत गिरफ्तार किए गए हैं।

पत्र में कहा गया है कि 6 अगस्त 2019 से श्रीनगर में केंद्र शासित जम्मू व कश्मीर के माननीय हाईकोर्ट के सामने 600 से अधिक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं और आज तक हाईकोर्ट में इनमें से 1 प्रतिशत का भी फैसला नहीं हुआ है। पत्र में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल क़य्यूम के लिए दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का भी हवाला दिया गया और कहा गया कि हाईकोर्ट ने याचिका पर फैसला लेने में 6 महीने और अपील पर फैसले में और तीन महीने का समय लिया।

बार एसोसिएशन ने जम्मू और कश्मीर में इंटरनेट स्पीड पर लगी बंदिशों की वजह से वकीलों को पेश आ रही दिक़्क़तों पर भी रोशनी डाली है ।पत्र में कहा गया कि अगस्त 2019 के बाद से ख़ासकर श्रीनगर में वकीलों को ‘बहुत मुश्किलों’ का सामना करना पड़ रहा है।

पत्र में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर में 4-जी के ऑपरेशन पर लगी बंदिशों की वजह से, वर्चुअल मोड में मुक़दमों पर बहस करना बहुत मुश्किल हो जाता है।हालांकि वकील को कोर्ट के सामने पेश होने का विकल्प दिया जाता है। जिन वकीलों के केस लिस्ट में होते हैं, उन्हें तो कोर्ट परिसर में घुसने दिया जाता है, लेकिन उनके क्लर्क और जूनियर्स को अंदर नहीं आने दिया जाता, जिसकी वजह से वकील कोर्ट की ठीक से मदद नहीं कर पाते। एसोसिएशन ने सीजेआई के साथ मीटिंग की दरख़्वास्त की है और मांग की है कि इसकी शिकायतों के निपटारे के लिए आदेश जारी किए जाएं।

अपने पत्र में बार एसोसिएशन ने ये भी कहा कि वो अपनी चिंताओं को लेकर हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस गीता मित्तल के पास भी गई थी। लेकिन कोई ठोस क़दम नहीं उठाए गए। पत्र में कहा गया कि केंद्र-शासित जम्मू व कश्मीर के माननीय हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश ने लॉकडाउन से एक हफ्ता पहले श्रीनगर में जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति से मुलाक़ात की थी, जिसमें समिति ने हर लॉर्डशिप को जे एंड के हाईकोर्ट बार एसोसिएशन श्रीनगर के सदस्यों को पेश आ रही समस्याओं से अवगत कराया था। लेकिन, अभी तक केंद्र-शासित जम्मू व कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश की ओर से समस्याओं को सुलझाने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए गए।

एसोसिएशन ने ये भी कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन लगाए जाने के बाद इसकी कार्यकारी समिति ने चीफ जस्टिस गीता मित्तल से एक और मीटिंग करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। पत्र में कहा गया कि एसोसिएशन को ‘मजबूरी’ में सीजेआई को लिखना पड़ा, क्योंकि चीफ जस्टिस गीता मित्तल ‘कोई फैसला नहीं ले सकीं हैं’ और न ही उन्होंने इसके सदस्यों के साथ मीटिंग की है।

इस बीच, उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ वकील और जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियां अब्दुल कयूम द्वारा दायर उस याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उनकी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करने और जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 के तहत उनकी हिरासत को बरकरार रखने के जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के 28 मई, 2020 के आदेश को चुनौती दी गई है।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने मामले की सुनवाई की और उस पर नोटिस जारी किया, जो जुलाई के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट के दोबारा खुलने के बाद सूचीबद्ध की जाएगी। तिहाड़ जेल में हिरासत में रहने के दौरान क़यूम को गर्मियों के कपड़े और दैनिक आवश्यक चीजें प्रदान करने के लिए एक अंतरिम आदेश भी पारित किया गया है। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे और वकील वृंदा ग्रोवर, वकील सौतिक बनर्जी की सहायता से याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने के लिए 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा उपाय किए जाने के बाद, 7 अगस्त, 2019 से कयूम हिरासत में हैं। क़यूम की ओर से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड आकाश कामरा द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता बार में 40 वर्ष से अधिक से वरिष्ठ अधिवक्ता हैं, जो कई बार हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं। इसमें 2014 से वर्तमान दिन तक का कार्यकाल भी शामिल है।

याचिका में कहा गया है कि उत्तरदाताओं ने 4 और 5 अगस्त, 2019 की रात को जम्मू और कश्मीर के दंड प्रक्रिया संहिता के 151 के साथ धारा 107 के प्रावधानों के तहत उन्हें हिरासत में लिया था। उसके बाद जम्मू-कश्मीर पीएसए, 1978 के प्रावधानों को लागू करते हुए उन्हें हिरासत में रखा गया था। इसके बाद, 07 अगस्त, 2019 को हिरासत के खिलाफ सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत निरोध का आदेश पारित किया गया था और 08 अगस्त, 2019 को याचिकाकर्ता को बिना किसी पूर्व सूचना के केंद्रीय जेल, आगरा, उत्तर प्रदेश ले जाया गया, जहां उन्हें एकान्त में रखा गया था।

क़यूम ने आदेश को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी, जिसे 07 फरवरी, 2020 को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद, उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एक अपील भी 28 मई, 2020 को खारिज कर दी गई। उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई की और उसी पर नोटिस जारी किया। मामला अब उच्चतम न्यायालय  के दोबारा खुलने के बाद जुलाई के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध किया गया है।

 (वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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