Friday, March 29, 2024

भागवत ने आज बिल्कुल सामने रख दिया हिंदू राष्ट्र का एजेंडा

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आज एक बार फिर उस समय अपने हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को आगे किया जब उन्होंने न केवल मुसलमानों पर खुलकर बात की बल्कि मुगल बादशाह अकबर से लेकर बाबरी मस्जिद तक का जिक्र किया। वैसे तो बातचीत का अंदाज और लहजा कुछ ऐसा था जैसे वह किसी तरह के भेदभाव या फिर वैमनस्य की बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन बातचीत का पूरा कंटेंट न केवल हिंदू बहुमतवाद से भरा पड़ा था बल्कि वह भारतीय समाज के कबीलाई चरित्र का भी पर्दाफाश कर रहा था।

उनकी पूरी बातचीत में यह स्थापना निहित थी कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और उसकी संस्कृति हिंदू या सनातनी है। हालांकि उन्होंने इस बात को बेहद चालाकी से रखा। क्योंकि उन्होंने न तो कभी हिंदू शब्द कहा और न ही सनातनी धर्म का जिक्र किया। उन्होंने उसे देश की संस्कृति कहकर संबोधित किया। और कहा कि इस पर जब भी हमला हुआ है तो सभी धर्मों और समुदायों ने अपने धर्म, जाति आदि को भूलकर उसका मुकाबला किया। और इसी रौ में वह महाराणा प्रताप का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उनके साथ मुसलमान भी लड़े। यानि दूसरे तरीके से उन्होंने सीधे अकबर को आक्रमणकारी घोषित कर दिया। और अकबर के खिलाफ मुसलमानों की लड़ाई को इस्तेमाल कर लिया। और वह भी देश की संस्कृति के नाम पर। 

अब भागवत से कोई पूछे कि उस समय देश की संस्कृति केवल हिंदू या फिर सनातन थी। उसमें मुसलमान या फिर उनके धर्म से जुड़ा कोई अवयव नहीं था। और इस देश में रहते तकरीबन 800 सालों से मुसलमानों का यहां की संस्कृति से कोई नाता नहीं है? उन्होंने क्या उसमें कोई योगदान नहीं दिया? या फिर वह देश से अलग किसी द्वीप पर विकसित हुआ? देश की मुख्यधारा और समाज से उसका कोई लेना-देना नहीं था। या इस देश का मुस्लिम समुदाय हिंदू-सनातनी संस्कृति का गुलाम है जिसमें उसका अपना कोई वजूद नहीं। और न ही पहचान तथा संस्कृति है। और अगर है तो भागवत को ज़रूर यह बात बतानी चाहिए कि वह किस रूप में है।

भागवत ने पूरी बातचीत इस तरह से पेश की जैसे देश कोई कबीलों का समूह हो। उसमें केवल धर्म हैं जातियां हैं और समुदाय हैं और संस्कृति के नाम पर एक संस्कृति है वह भी हिंदू। बहरहाल इस मसले पर बाद में आएंगे। इस मौके पर उन्होंने जो बाबरी-मस्जिद का जिक्र किया है। बात उस पर। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद इसलिए गिरायी गयी क्योंकि वह हमले और अपमान की प्रतीक थी। और राम मंदिर बनाकर उसको खत्म करने की कोशिश की जा रही है। अब भागवत के इस तर्क के हिसाब से तो फिर इस देश में अपमान के हजारों प्रतीक मिल जाएंगे और उसमें सिर्फ हिंदू धर्म के नहीं बल्कि बौद्ध धर्म से भी जुड़े हुए होंगे और ये बौद्ध धर्म के उसके गर्भस्थल कहिए या फिर जन्मस्थान में भी तलाशे जा सकते हैं। ऐसे में अगर सबको ठीक किया जाने लगा तो फिर इस देश में कुछ बचेगा नहीं, युद्ध के सिवा।

दरअसल भागवत की पूरी सोच का किसी आधुनिक लोकतांत्रिक देश से रिश्ता नहीं है। वह पूरे देश और समाज को एक कबीलाई अंदाज में देखते हैं। जिसमें धर्म हैं। जातियां हैं। क्षेत्र हैं और समुदाय हैं। दूसरे देशों को देखने का उनका नजरिया भी कमोबेश इससे अलग नहीं है। किसी देश की पहचान और उसके पूरे वजूद का आकलन उसी पैमाने पर करते हैं। अपनी इसी बातचीत में उन्होंने कहा है कि क्या दुनिया का कोई ऐसा देश होगा जहां आक्रमणकारियों को वहां रहने का मौका मिला हो। उनका इशारा इस देश में रहने वाले मुसलमानों से है। और इस तरह से उनकी कोशिश इसे आक्रमणकारियों की जमात के तौर पर चिन्हित करने की है। 

अब भागवत को यह सामान्य बात भी नहीं पता है कि किसी भी देश में अगर कोई जाता है वह आक्रमण के रूप में हो या फिर किसी सामान्य बसाहट के क्रम में तो समय के साथ उसकी जनसंख्या में विस्तार स्वाभाविक है। इस तरह से तो पूरा अमेरिका ही आक्रमणकारियों की गिरफ्त में है और वहां के मूल निवासी ब्लैक आज भी दोयम दर्जे का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। मोहन भागवत को यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि वह खुद जिस आर्य रेस से आते हैं वह इस देश में आक्रमणकारी ही थे। और इस तरह से बसे और फैले की पूरे देश को ही अपने कब्जे में ले लिए। और उसका शासक बन बैठे। और फिर इस कड़ी में एक ऐसी समाज व्यवस्था दी जिसका घुन आज भी पूरे देश को अंदर से खाए जा रहा है। 

इसलिए इतिहास को खारिज करके या फिर उसके तथ्यों को छुपाकर कोई ऐसी प्रस्थापना को स्थापित करने की कोशिश भक्तों के लिए तो ग्राह्य हो जाएगी लेकिन सोचने-समझने और तर्क में विश्वास रखने वालों के लिए उसे पचा पाना मुश्किल है। भागवत ने ये सारी बातें महाराष्ट्र से निकलने वाली विवेक नाम की एक मैगजीन को दिए गए इंटरव्यू में कही।  

इस इंटरव्यू का सबसे खतरनाक पहलू पूरे संविधान को अपने हिंदू राष्ट्र के सीने में जज्ब कर जाने की कोशिश के तौर पर दिखी। जिसमें पाकिस्तान का उदाहरण देकर कहते हैं कि वह तो एक इस्लामिक राष्ट्र है और उसका संविधान किसी दूसरे धर्म को बराबरी के हक की इजाजत नहीं देता। क्योंकि वह मुस्लिम राष्ट्र है।

लेकिन उसी के साथ वह कहते हैं कि हमारा संविधान यह नहीं कहता कि यहां केवल हिंदू रहेंगे। और केवल उनकी ही सुनवाई होगी। और वह यह भी नहीं कहता है कि अगर आप यहां रहना चाहते हैं तो हिंदुओं के वर्चस्व को स्वीकार करना होगा। इसके साथ ही उन्होंने कुछ इस तरह से बात की जैसे संविधान उनके किसी सनातनी हिंदू ढांचे का ही एक अभिन्न हिस्सा है। जिसमें वह कहते हैं कि हमने उनके लिए एक स्पेस बनाया है। यह हमारे राष्ट्र का एक स्वभाव है। और उसे हिंदू कहकर बुलाया जाता है। इस तरह से उन्होंने पूरे संविधान को हिंदू धर्म के एक हिस्से के तौर पर पेश कर दिया।

वह इस बात को उस समय और ज्यादा खुलकर पेश करते हैं जब वो यह कहते हैं कि जब भारत और उसकी संस्कृति के प्रति समर्पण की बात आती है या फिर अपने पुरखों के प्रति सम्मान और चेतना की बात आती है तो सभी धर्मों के बीच मतभेद बिल्कुल खत्म हो जाता है। अब अगर भागवत से कोई पूछे कि ये पुरखे केवल हिंदुओं के होंगे। और मुसलमानों के पुरखों को हमलावर घोषित कर दिया जाएगा। और इस तरह से धार्मिक एकता के नाम पर मुसलमानों से हिंदू पुरखों की पूजा करवायी जाएगी। और पूरे मुस्लिम समाज को न केवल दोयम दर्जे पर बल्कि हिंदुओं के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाएगा।

यह कुछ उसी तरह की बात है जैसे अधिकार विहीन किसी मजदूर या फिर दास का अपना वजूद खत्म कर दिया जाए और वह अपने मालिक के हित को ही अपना हित समझने लगे और अपना सब कुछ उसी के हवाले कर दे। भागवत के इस भोलेपन पर भला कौन न मर जाएगा।  

(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)

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