आरोग्य सेतु एप को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप जारी है। भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए लॉकडाउन की अवधि को दो सप्ताह के लिए और बढ़ा दिया गया है। लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाने के साथ ही सरकार ने अब सभी सार्वजनिक और निजी सेक्टर के कर्मचारियों के लिए कॉन्टैक्ट ट्रैकिंग आरोग्य सेतु ऐप का इस्तेमाल अनिवार्य कर दिया है।एक तरफ केंद्र सरकार आरोग्य सेतु एप का विस्तार कर रही है तो वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोग्य सेतु एप पर सवाल उठाए हैं। यही नहीं विधि विशेषज्ञों का मानना है कि आरोग्य सेतु गम्भीर क़ानूनी खामियों से ग्रस्त है।
विधि विशेषज्ञों का कहना है कि किसी विशिष्ट कानून की अनुपस्थिति में एनडीएमए ऐसा कानून नहीं हो सकता है जिसके तहत कॉन्टैक्ट ट्रैकिंग आरोग्य सेतु एप का इस्तेमाल अनिवार्य बनाया जा सके। क्योंकि यह उन परिस्थितियों, तरीके और सीमाओं के बारे में कुछ भी नहीं परिभाषित करता जिसके तहत सरकार नागरिक अधिकारों को सीमित करने या निजता का अधिकार का उल्लंघन करने के लिए अधिकृत हो जाती है। इससे सरकार इस बात के लिए सक्षम नहीं होती कि वह संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन कर सके। यदि एनडीएमए को वास्तव में आधार के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो यह कहता है कि सरकार ऐसा कुछ भी कर सकती है जिसे वह मानना उचित है, तो यह संवैधानिक बाध्यताओं का उल्लंघन है। ऐसी परिभाषा कार्यपालिका को तो सूट कर सकती है पर रुल आफ लॉ को नहीं।
दरअसल लॉकडाउन के दौरान समानता, स्वतंत्रता, जीवन के अधिकार जैसे संवैधानिक अधिकार प्रभावित हुए हैं। लॉक डाउन जनता को बचाने के लिए किया गया है। यह तीन क़ानूनों, एपिडमिक डिज़ीज़ एक्ट, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट और सीआरपीसी 144, के तहत लागू किया गया है। एप डाउनलोड करने को लेकर जो सबसे बड़ा विवाद है वो निजता के हनन का है। उच्चतम न्यायालय के नौ जजों की संविधान पीठ ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी थी। लेकिन सरकार अभी तक इस पर कोई क़ानून लेकर नहीं बना सकी है। वैसे भी यह बिल्कुल स्पष्ट है कि किसी भी ऐप को इस तरह से अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है। सरकार के अधिकांश आदेशों की क़ानूनी वैधता पर सवाल खड़े होने शुरू हो गये हैं।
इस बीच, आरोग्य सेतु को एक जासूसी सिस्टम बताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि आरोग्य सेतु ऐप, एक परिष्कृत निगरानी प्रणाली है, जो एक प्राइवेट ऑपरेटर द्वारा आउटसोर्स है, जिसमें कोई संस्थागत निरीक्षण नहीं किया जा रहा है। इस एप के प्रति गंभीर डेटा सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताएं हैं। प्रौद्योगिकी हमें सुरक्षित रखने में मदद कर सकती है, लेकिन एक यूजर की सहमति के बिना नागरिकों को ट्रैक नहीं किया जाना चाहिए। भय के नाम पर लाभ उठाना गलत हैं।
इससे पहले एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने एप की प्राइवेसी पर सवाल उठाए थे। इस पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने जवाब देते हुए कहा कि पूरी दुनिया में इस एप की तारीफ हो रही है। ये अगले एक-दो साल तक जारी रहेगा। आरोपों का जवाब केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर झूठ फैलाने के आरोप के साथ दिया है। रविशंकर प्रसाद का कहना है कि जिसएप को पूरी दुनिया में सराहा जा रहा है, उस पर राहुल गांधी बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। यह ऐप लोगों की रक्षा करने वाला एक शक्तिशाली साथी है। इसकी डेटा सुरक्षा की प्रणाली मजबूत है। जो लोग अपनी पूरी जिंदगी खुद ही सर्विलांस करने में शामिल रहे वे नहीं समझ सकते कि अच्छाई के लिए तकनीक का फायदा कैसे उठाया जा सकता है।
नीति आयोग ने ऐप में जीपीएस तकनीक के इस्तेमाल का बचाव किया है। आयोग ने कहा कि जीपीएस का इस्तेमाल करने से नए हॉटस्पॉट का पता लगाने में मदद मिलती है। राहुल से पहले भी कुछ विशेषज्ञों ने इस एप में निजता से समझौता किए जाने की बात कही थी। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसमें जीपीएस आधारित डेटा लोकेशन का इस्तेमाल चिंता की बात है। एप को जरूरत से ज्यादा डेटा चाहिए। इसके साथ गुणवत्ता भी दूसरे देशों के कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एप की तुलना में कम है।
गृहमंत्रालय की ओर से जारी गाइड लाइंस के मुताबिक यह ऐप निजी और सरकारी दोनों कंपनियों के कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। इतना ही नहीं, कंपनी के प्रमुख पर इसकी जवाबदेही भी होगी कि उसके सभी कर्मचारी इस एप को डाउनलोड कर लें।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ क़ानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)