Friday, April 19, 2024

बिहार में बड़े घोटाले की बू, सीएजी ने कहा-बार-बार मांगने पर भी नीतीश सरकार नहीं दे रही 80,000 करोड़ का हिसाब

बार-बार मांगने पर भी सुशासन बाबू की बिहार सरकार 80,000 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं दे रही। क्या नीतीश सरकार ने 80 हज़ार करोड़ रुपए का घपला किया है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि राज्य सरकार ने बार-बार कहने के बावजूद 79,690 करोड़ रुपए की उपयोगिता का प्रमाण पत्र नहीं दिया है। सीएजी ने दूसरे कई तरह की खामियाँ भी उजागर की हैं और कहा है कि 9,155 करोड़ की अग्रिम राशि की डीसी बिल पेश नहीं की है। महालेखाकार ने आशंका जताई है कि यह पूरा मामला पैसे के दुरुपयोग और गबन के जोखिम से भरा हो सकता है।

बिहार की नीतीश सरकार के वित्तीय प्रबंधन के बारे में सीएजी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कई खामियां उजागर की हैं। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 79 हजार 690 करोड़ रुपये की राशि का उपयोगिता प्रमाण पत्र बार-बार मांगने पर भी नहीं दिया जा रहा है। रिपोर्ट में माना गया है कि लंबित उपयोगिता प्रमाण पत्र उस राशि के दुरुपयोग और गबन के जोखिम से भरा हो सकता है। वहीं 9155 करोड़ की अग्रिम राशि डीसी बिल के पेश नहीं किए जाने के कारण भी लंबित था।

इस रिपोर्ट को गुरुवार को वित्त मंत्री और उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने बिहार विधान सभा में पेश किया । इस रिपोर्ट के अनुसार, करीब 18,872 करोड़ रुपये जो राज्य सरकार ने अपने विभिन उपक्रमों को दिये थे, उसके उपयोग का ऑडिट भी पिछले कई वर्षों से लंबित पड़ा है । इसके अलावा इस रिपोर्ट में 2019-20 के दौरान पहली बार 1784 करोड़ के राजस्व घाटे की पुष्टि की गयी है । वहीं राजस्व प्राप्ति में भी 7561करोड़ की कमी आयी जो बजट आंकलन के अनुसार 29.71 प्रतिशत कम था ।

31 मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार उपयोगिता प्रमाण पत्र रुपए 79690. 92 करोड़ की राशि के बकाये थे, जो निधियों के दुरुपयोग और धोखाधड़ी के जोखिम से भरा है। मार्च 2020 तक कुल रुपए 9155.44 करोड़ की राशि के 20 642 एसी विपत्र केवल मार्च 2020 में आहरित किए गए थे, जो कुल आहरित विपत्रों का 15.22 फीसद है। आकस्मिक बिलों के आचरण के विरुद्ध आकस्मिक बिलों को प्रस्तुत न करने से अपव्यय और दुरुपयोग की आशंका बढ़ गई है।

सीएजी की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट में डिफॉल्टर सरकारी कंपनियों को 18.872 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मुहैया कराने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई गई है। वित्त वर्ष 2020 तक 18 कार्यरत राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और 16 गैर कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को 18.872 करोड़ रूपये की बजटीय सहायता प्रदान की। गैर कार्यरत इन सरकारी कंपनियों में बिहार राज्य फल और सब्जी विकास निगम लिमिटेड, बिहार राज्य निर्माण निगम लिमिटेड, बिहार राज्य वन विकास निगम लिमिटेड, बिहार राज्य मत्स्य विकास निगम लिमिटेड, बिहार हिल एरिया लिफ्ट सिंचाई निगम लिमिटेड आदि शामिल हैं।

इसके अलावा बिहार सरकार द्वारा प्रमुख प्रकार के उपकर के लेखांकन के बारे में सीएजी रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार सरकार द्वारा श्रम उपकर और अन्य उपकर के लेखांकन के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया है। हालांकि कुछ विभागों की ओर से एकत्र किया गया उपकर बेकार पड़ा है जो उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है जिसके लिए इसे लगाया गया है।

सीएजी का कहना है कि सरकार 55 हजार करोड़ रुपये के खर्च का हिसाब नहीं दे रही है। खर्च किए गए रुपये का पक्का बिल भी उपलब्ध नहीं है। राशि का 63 प्रतिशत आपदा प्रबंधन, पंचायती राज और ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से खर्च किया गया है।दरअसल नगर एवं आवास और पंचायती राज विभाग तो ऑडिट में सहयोग ही नहीं कर रहे हैं। दोनों ही विभागों की तरफ से कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करवाया गया है। मोहन का कहना है कि सीएजी अपने संवैधानिक दायित्व के तहत विभागों का ऑडिट करता है। अगर कोई विभाग इसमें सहयोग नहीं करता है तो यह गंभीर मामला बनता है।

आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से 14864 करोड़, पंचायती राज की तरफ से 13073 करोड़ और ग्रामीण विकास विभाग ने 6579 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं दिया है। इसके साथ ही 5770 करोड़ कच्चे (एसी) बिल पर सरकारी विभागों ने खर्च कर दिया लेकिन उसका पक्का (डीसी) बिल नहीं दिया गया है।

इसके पहले भी सीएजी की रिपोर्ट में कई तरह की गड़बड़ियां सामने आई हैं। दावा किया गया है कि राज्य सरकार को एक हजार 336 करोड़ की राजस्व क्षति हुई है। 31 मार्च 2019 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए सामान्य सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त सुधार की गुंजाइश है।31 मार्च 2019 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए सामान्य, सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त सुधार की गुंजाइश बताई गई है। बाद में महालेखाकार राम अवतार शर्मा ने प्रेस कान्फ्रेंस कर बताया कि कैग ने अप्रैल 2018 से फरवरी 2020 तक कुल 629 मामलों की छानबीन की। इसमें सरकार को 3658.11 करोड़ राजस्व की हानि सामने आई। हालांकि संबंधित विभागों ने 1648 मामलों में 1336.65 करोड़ रुपये की क्षति एवं अन्य तरह की कमियां स्वीकार की।

इसके पहले महालेखा परीक्षक राकेश मोहन ने बताया था कि बिहार में सही तरीके से बजट नहीं बनाया जा रहा है। आकार तो प्रत्येक साल बढ़ जाता है, लेकिन उस हिसाब से राशि खर्च नहीं होती है। 60-70 फीसद राशि ही खर्च हो पाती है। रिपोर्ट के मुताबिक पौधारोपण में भी गड़बड़ी हुई। बेमौसम पौधारोपण से पौधे सूख गए और सरकार के 164.98 करोड़ रुपये बर्बाद हो गए।

सीएजी ने कहा कि महादलितों के लिए सामुदायिक भवन 916 में से मात्र 147 पूरे हुए। बाकी 608 भवन का काम शुरू ही नहीं हुआ। यह आंकड़ा 2016-19 के बीच का है। गया-मानपुर पथ प्रमंडल में आदेश के उल्लंघन के चलते 2.73 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च हुआ। अभियंता प्रमुख ने सड़क बनाने के लिए स्टोन चिप्स मानपुर से लाने को कहा था। लाया गया कोडरमा से। 38 किमी के बदले 100 किमी दूर से मंगाया गया।

सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में मनरेगा के तहत रोजगार का कम सृजन हुआ। निबंधित दिव्यांग व्यक्तियों में से केवल 14 फीसद को ही रोजगार मिल सका। देश में सबसे ज्यादा 88.61 लाख भूमिहीन मजदूर निबंधित हैं। इसमें 60.88 लाख (69 फीसद) का सर्वेक्षण किया गया।इसमें सिर्फ 3.34 फीसद इच्छुक भूमिहीन परिवारों को जाब कार्ड दिया गया। इसके बाद सर्वेक्षण बंद कर दिया गया। रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर वर्ग को रोजगार के अवसर देने के लिए योजनाएं नहीं बनाई गईं। ग्रामीण विकास का भी यही हाल है। स्थायी संपत्ति निर्माण की योजनाएं सिर्फ 14 फीसद ही पूरी हो सकीं। 65 फीसद काम पांच साल तक अधूरा पड़ा रहा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम ने भी कई स्तर पर गड़बड़ी की, जिससे राजस्व क्षति हुई। प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए निविदा मांगी गई। तकनीकी स्वीकृति से पहले ही ठीकेदार को 66.25 करोड़ का भुगतान भी कर दिया गया। इससे राजकोष पर 18.42 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ा।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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