Thursday, March 28, 2024

IAS मर्डर में दोषी बाहुबली आनंद मोहन की 15 साल बाद रिहाई के लिए बिहार सरकार ने बदला नियम

पटना। नीतीश सरकार ने बिहार जेल नियमावली 2012 में संशोधन किया है। कानून के नियमों से ‘ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारी के हत्यारे’ कैटेगरी को हटा दिया गया है। यह संशोधन बाहुबली आनंद मोहन और राज बल्लभ यादव जैसे 25 अपराधियों की रिहाई का रास्ता साफ़ कर सकता है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में सिर्फ आनंद मोहन की चर्चा हो रही है। आखिर क्यों?

एक दलित जिलाधिकारी की हत्या के सजायाफ्ता आनंद मोहन को जेल से बाहर निकालने के लिए नीतीश सरकार ने कानून ही बदल दिया। कुछ दिन पहले पेरोल पर बाहर आये आनंद मोहन को अब वापस जेल नहीं जाना होगा। आनंद मोहन जो 32 अलग-अलग आपराधिक मामलों में आरोपी रह चुका है, जिस पर IPC की 17 धाराएं हत्या के प्रयास की दर्ज हैं, 3 हत्या के आरोप हैं। उसकी रिहाई को लेकर बिहार का जेल मैनुअल तक बदल दिया गया है। बिहार के राजनीतिक हालत कुछ ऐसा ही कह रहे हैं।

आनंद मोहन के गृह जिला सहरसा में कार्यरत वकील कुणाल कश्यप के मुताबिक 10 अप्रैल को राज्य के गृह विभाग के द्वारा जारी अधिसूचना के मुताबिक बिहार में जेल नियमावली 2012 के नियम 481 (आई) (ए) में उल्लेखित वाक्यांश ‘या, एक लोक सेवक की हत्या’ को हटा दिया गया। यानी आतंकवादी, बलात्कारी और ड्यूटी पर सरकारी कर्मचारी के हत्यारे के तहत आने वाले कैदियों की समय से पहले रिहाई का कोई प्रावधान नहीं था।

आसान भाषा में पूरी कहानी समझिए

राजनीतिक टिप्पणीकार साकिब विस्तार से बताते हैं कि,”आनंद मोहन ने वर्ष 1994 में गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या, जो दलित जाति से थे, उन्हें भीड़ को इशारा करके तब मरवा दिया। जब वो अपनी सरकारी कार से एक मीटिंग से होकर जा रहे थे। निचली अदालत से आनंद मोहन को फांसी की सज मिली। जिसे पटना हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास में बदल दिया। आजीवन कारावास के सज़ायाफ्ता आनंद मोहन जेल में लगभग 15 साल बिता चुके हैं।”

साकिब कहते हैं कि “जेल अधिनियम के मुताबिक कोई हत्या के मामले में उम्रकैद के सज़ायाफ्ता को 14 साल की सज़ा पूरी करने के बाद समय पूर्व रिहाई पर विचार किया जा सकता है। लेकिन काम पर तैनात सरकारी अधिकारी के मामले में यह सजा 20 साल है। उसके बाद भी सरकार और जेल ऑथोरिटी का अधिकार है कि वह चाहे तो ऐसे मामले में रिहाई पर विचार कर सकता है। अभी बिहार सरकार ने क़ानून में संशोधन कर के सरकारी अधिकारी वाला लाइन डिलीट कर दिया। अब हर मामले में 14 साल बाद यह विचार हो सकता है और इसके लाभार्थी आनंद मोहन होंगे।”

अपराधी की जाति पर बहस

आनंद मोहन की राजनीतिक भूमि शिवहर के रहने वाले राहुल तिवारी बताते हैं कि “जो बीजेपी कल तक आनंद मोहन को छोड़ने की बात कर रही थी आज विरोध क्यों कर रही है? आनंद मोहन को राजपूत होने के नाते छोड़ा गया तो फिर 8 यादव कैदी कैसे छूटे? आनंद मोहन के साथ 8 यादव, 3 कोयरी, 2 पासवान, 4 मुसलमान सहित 27 कैदी रिहा किए जाएंगे। आनंद मोहन अब तक 15 साल जेल में रहे है।”

राहुल तिवारी कहते हैं कि “अगर कानून नहीं भी बदला जाता तो वह एक-दो साल में छूटकर वापस आ जाते। सच यह है कि बीजेपी को अपने कोर वोटर राजपूत के टूटने का डर है। आनंद मोहन अभी बिहार में राजपूत के सबसे बड़े नेता हैं।”

वहीं राजनीतिक टिप्पणीकार साकिब कहते हैं कि, “मोहम्मद शहाबुद्दीन बिना सज़ायाफ्ता हुए, अंडरट्रायल रहते हुए ही 12 साल जेल में रह चुके थे तब पटना हाईकोर्ट ने ज़मानत दी थी। फिर एक्टिविस्ट और बिहार सरकार ज़मानत के ख़िलाफ़ याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट गई। 2021 में निधन तक वे 16 साल जेल में रह चुके थे। आज उम्रकैद के सज़ायाफ्ता जो अबतक 15 साल जेल में रहे हैं उनको रिहा करने के लिए क़ानून बदल कर रिहाई दी गई है।”

“आनंद मोहन अकेले नहीं छूट रहे, उनके साथ 27 कैदी और छूट रहे हैं। आनंद मोहन को नीतीश और तेजस्वी दोनों साथ में छोड़ रहे हैं, बकायदा नियम बदला गया है। सच ये है कि पार्टी और नेता की कोई जाति नहीं होती है। लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय के बीच भी आनंद मोहन वैशाली से अपनी पत्नी लवली आनंद को निर्दलीय सांसद बनवाने में सफल हुए थे। भाजपा विपक्ष में होकर भी कुछ नही बोलेगी क्योंकि उनको आनंद मोहन में स्कोप दिखता है, नीतीश, तेजस्वी तो स्कोप का मजा लेने के फिराक में हैं!” करणी सेना से जुड़े संकेत बताते है‌।

वहीं कुर्मी सेना से जुड़े अमित पटेल बताते हैं कि “राजपूत समाज का वैसे भी नीतीश कुमार को वोट नहीं मिलना है। ऐसे में कानून में बदलाव करवाकर वे गलत परंपरा शुरू कर रहे हैं।”

सुपौल जदयू के स्थानीय नेता पंकज कुमार बताते है कि “आनंद मोहन के रिहाई के जरिए जो नीतीश कुमार की दलित राजनीति पर निशाना साध रहे हैं वह जान लें कि बिहार में नीतीश सरकार द्वारा विकास मित्र के 9775 पद सिर्फ दलित समाज के युवकों, युवतियों के लिए सृजित किए गए हैं। जिनमें लगभग 9700 पद पर दलित समाज के लोगों को सरकारी रोजगार दिया गया है।”

पंकज कुमार कहते हैं कि “देश में यह एकमात्र उदाहरण है जब किसी नौकरी में शत प्रतिशत दलित समाज के युवकों, युवतियों की भर्ती की गई है। विकास मित्र का कार्य अर्द्ध लिपिकीय और फील्ड वर्क का है। बिहार सरकार सिर्फ आनंद मोहन को ही नहीं छोड़ रही बल्कि उनके अलावा अन्य 26 सजायाफ्ता कैदी भी छूट रहे हैं। जो अलग-अलग जाति से आते है।”

आईएएस एसोसिएशन और आइएएस की पत्नी का विरोध

सेंट्रल आईएएस एसोसिएशन ने गोपालगंज के पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया की नृशंस हत्या के दोषियों को नियमों में बदलाव कर रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर गहरी निराशा व्यक्त की है। साथ ही एसोसिएशन ने बयान जारी कर कहा है कि बिहार सरकार जल्द से जल्द अपने फैसले पर पुनर्विचार करे।

वहीं जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने कहा कि हमारे साथ अन्याय हुआ है। उसको पहले मौत की सज़ा थी जिसे उम्रकैद में बदल दिया गया। हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा। बिहार में सब जातीय राजनीति है। वह राजपूत है और उसके बाहर आने से उसको राजपूत वोट मिलेगा। एक अपराधी को बाहर लाने की क्या जरूरत है?

अतीक का विरोध करने वाले आनंद के समर्थन में

वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्रा लिखते हैं कि जिन्होंने अतीक की हत्या का विरोध किया, वही लोग अब आनंद मोहन के समर्थन में हैं। अपराध का तो पता नहीं लेकिन अपराधी में जाति जरूर देखी जाती है। संसद-विधानसभा आपकी है। कानून बना दीजिये, राजनीतिक दलों के सभी अपराधी भगत सिंह हैं। वह इसलिए कि हर पार्टी में अपराधी हैं।”

हिमांशु कहते हैं कि “अपनी पार्टी के अपराधी में सभी को भगत सिंह दिखता है तो दूसरे दलों के अपराधियों में ओसामा बिन लादेन। सारा मसला वोट का है। बचाव और विरोध के पीछे बस वोट बैंक है। किसी को हिंदू वोट चाहिए, किसी को मुसलमान वोट चाहिए। कोई दलित एंगल निकाल रहा है। भारत की राजनीति ध्रुवीकरण और समानांतर धुव्रीकरण मतलब पॉलराइजेशन और पैरलल पॉलराइजेशन पर अटक गई है। बस एक एंगल कोई नहीं निकाल रहा। वह एंगल है अपराधी-अपराधी होता है।

आनंद मोहन का बेटा शिवहर से विधायक है। जबकि अतीक के बेटा का एनकाउंटर किया जा चुका है। अतीक की पत्नी छुपकर रह रही है जबकि आनंद मोहन की पत्नी महागठबंधन के टिकट पर सहरसा से विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है और शिवहर लोकसभा क्षेत्र से महागठबंधन के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। अतीक को निपटाया जा चुका है और आनंद मोहन को वर्तमान सरकार जेल से रिहा करने की तैयारी में है। यहीं भारत की वर्तमान राजनीति है।

बिहार के लिए यह शर्मनाक दिन

बिहार के स्वतंत्र पत्रकार अशोक कुमार पांडे लिखते हैं कि “आनंद मोहन को जेल से रिहा कर दिया गया है। सब शांति से स्वीकार कर रहे हैं। कोई कुछ नहीं बोल रहा है। बाहुबली आनंद मोहन पर कई केस रहे हैं। DM की हत्या मामलें में वो आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे। उनके लिए कानून बदल दिया गया है। बिहार के लिए यह सबसे शर्मनाक दिन है।”

उन्होंने कहा कि “हर बात के लिए सरकार का समर्थन करने वाले लोगों के बारे क्या कहा जाये। अब देखना होगा कि कल कौन सी पार्टी क्या बयान देती है या सरकार की इस क्रांतिकारी करतूत को ऐसे ही स्वीकार कर लेती है। सहयोगी दल इस पर बोलने की हिम्मत जुटा पायेंगे या नही। जिस फायदे के लिए नीतीश कुमार की सरकार ने आनंद मोहन को रिहा करने का फैसला लिया है, सम्भव नहीं दिखता कि वे उस फायदे को हासिल कर पायेंगे। बिहार के लिए यह शर्मनाक दिन है।”

उन्होंने कहा कि “एक तो दलितों में वैसे भी आईएएस और आईपीएस कम होते थे। उसके बावजूद एक दलित जे कृष्णैया गोपालगंज के कलेक्टर बन गए थे। आनन्द मोहन सिंह के गुंडों ने एक दलित कलेक्टर की लिंचिंग करके हत्या कर दिया था। कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी जिसे बदलकर उम्र कैद कर दिया गया था। अब नीतीश कुमार ने जेल नियमों में बदलाव करके आनंद मोहन को रिहा करने का मन बना लिया है।

यह वहीं नीतीश कुमार हैं जिसने बेल मिलने के बावजूद शहाबुद्दीन को तिहाड़ तक सफर कराया और उस तिहाड़ से उनकी लाश भी बिहार नहीं लौटी। यह नीतीश के बहुत दोहरे चेहरे हैं। दलितों के हितैषी भी बनते हैं और दलित के हत्यारे को छोड़ने के लिए कानून भी बदलते हैं।”

सोशल मीडिया पर जदयू-राजद वार

आनंद मोहन की रिहाई पर सोशल मीडिया में राजद-जदयू के फैन एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते हुए दिखे। रजनीश पटेल ने ट्वीट करते हुए लिखा कि “डीएम जी कृष्णैया की हत्या कब हुई- लालूजी के राज में। कोर्ट से सजा प्राप्त हत्यारे की पत्नी-बेटे को टिकट कौन दिया- लालूजी ने। हत्यारे के परिवार को किसने राजनैतिक जमीन दे दी- लालूजी ने, और अब हत्यारे को जेल से रिहा कौन कर रहा- लालू जी के पुत्र तेजस्वी यादव नीतीश जी की छत्रछाया में।”

वहीं बिहार की राजनीति पर लिखने वाले अभिषेक राज लिखते हैं कि “जब साहब यानी शहाबुद्दीन का 2021 में निधन हुआ तब तक वे 16 साल जेल में रह चुके थे। आज उम्रकैद के सज़ायाफ्ता जो अबतक 15 साल जेल में रहा है उसको रिहा करने के लिए क़ानून बदल कर रिहाई दी जा रही है। एक ही कानून पर किसी से नफरत किसी से प्यार जी हां ये है नीतीश युग का बिहार।”

(पटना से राहुल की रिपोर्ट)

जनचौक से जुड़े

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles