Friday, March 29, 2024

सिर्फ 4 राज्यों में ही बीजेपी की सरकार, 11 राज्यों में बैसाखी के सहारे

मोदी मैजिक के आभासी गुब्बारे की हवा अब निकलने लगी है। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की सांसें अब उखड़ने लगी हैं। कर्नाटक के चुनाव में इतनी भी सीटें नही मिल पाईं कि सम्मानजनक हार कहा जा सके। देश ने 2014 के बाद जिस अवतार को अविजित मान लिया था उसकी कलई अब खुलने लगी है। प्याज़ की परत दर परत उतर रही है और अंदर सिर्फ परत ही मिल रही है।

लंपट मीडिया के प्रचार प्रबंधन और लंपट आईटी सेल के ज़रिए जनता की गाढ़ी कमाई के अरबों रुपये खर्च करके बनाई गई इमेज की सच्चाई इतनी ही बची है कि देश के सिर्फ 4 राज्यों में बीजेपी की सरकार है, बाकी 11 राज्यों में वो बैसाखी के सहारे है।

उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात को छोड़ दिया जाय तो बाकी जगहों पर बीजेपी सहयोगियों के भरोसे बैसाखी सरकार चला रही है। ये बात बीजेपी के नेता भी समझ रहे हैं कि भौकाल का गुब्बारा अब हवा रोकने में नाकाम साबित हो रहा है। जहां तक एमपी की बात है तो जनादेश बीजेपी के खिलाफ था और तोड़फोड़ कर किसी तरह सरकार चलाई जा रही है। लेकिन अगर फिर भी इसको जोड़ लिया जाय तो उत्तर प्रदेश, एमपी, उत्तराखंड और गुजरात के अलावा हर राज्य में सहयोगियों के ऊपर निर्भर बीजेपी सिमटती जा रही है।

15 राज्यों में जैसे तैसे सत्ता में काबिज होने वाली पार्टी गुजरात, उत्तर प्रदेश, एमपी और उत्तराखंड को छोड़ कर 11 राज्यों में सहयोगियों के बिना चुनाव में उतरने की सोच भी नहीं सकती ऐसा इसलिए भी कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां वो राममंदिर को मुद्दा बना कर 2017 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही लेकिन अपनी स्थिति को देखते हुए तमाम दावों के विपरीत 2022 के चुनाव में अपना दल (एस) और निषाद पार्टी के बिना चुनाव नहीं लड़ सकी।

कर्नाटक के चुनावी फैसले ने अचानक इस ओर ध्यान दिलाया कि असल सच्चाई यह है कि मज़बूत दिखने वाला यह राजनीतिक दल बहुत ही कमजोर है। कर्नाटक का चुनाव सिर्फ बीजेपी ही नही बल्कि संघ की भी सबसे बुरी हार है। जनता ने इनकी विचारधारा को नकार दिया है। ऐसा ही कमोबेश पूरे देश के हालात हैं। जिस कारण बीजेपी अकेले चुनाव में जाने से कतराती है।

जिन लोगों को यह लगता है कि बीजेपी बहुत ही बड़ी और मज़बूत पार्टी है उनके सामने महाराष्ट्र का उदाहरण है। महाराष्ट्र में तोड़ फोड़ करने के बाद बीजेपी ने तमाम कोशिशें कर लीं लेकिन अपना मुख्यमंत्री नहीं बना सकी और शिवसेना के एक छोटे से बागी नेता को जिसको महाराष्ट्र के बाहर कोई जानता भी नहीं है मुख्यमंत्री बनाने पर मजबूर होना पड़ गया।

यही हाल केंद्र की सरकार का भी है पूरे देश में विजय पताका फहराने का दावा करने वाली सरकार चुनाव के वक़्त छोटे-छोटे दलों पर निर्भर नज़र आती है। पार्टी के पास अब एक भी विश्वसनीय चेहरा नहीं है जिसकी पैन इंडिया छवि हो। 2024 को लेकर देशभर में चर्चाओं का बाजार गर्म है जनता के सामने नकली मुद्दे फेंके जा रहे हैं आंदोलनों को इस डर से कुचला जा रहा है कि कहीं सच्चाई बाहर न आ जाये। तमाम एजेंसियों को इस काम में लगा दिया है कि जनता के मुद्दों पर आंदोलन खड़ा करने वाले सामाजिक, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को परेशान करते रहो।

लेकिन इस सबसे इतर केंद्र की सरकार के सामने अब जनता के असल मुद्दे भस्मासुर बनके खड़े हो चुके हैं। साम्प्रदायिकता का जो खेल बीजेपी ने शुरू किया था अब उसमें वो खुद फंसती नज़र आ रही है। कर्नाटक में बजरंग दल के प्रतिबंध के वायदे का जिस तरह से कर्नाटक की जनता ने समर्थन किया उससे यह साफ हो गया है कि बीजेपी की साम्प्रदायिक राजनीति अपने अंतिम दिनों में हैं। जनता का हौसला बुलंद है और दक्षिण से मिली ताकत ने उत्तर भारत को दिशा और ऊर्जा दोनों दे दी है।

(गुफरान सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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