दिल्ली के भाजपा सांसदों ने अपनी सांसद निधि के इस्तेमाल में बरती कोताही

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दिल्ली। इस बार के चुनाव में मोदी लहर दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही। ऐसे में दिल्ली की सातों सीट पर भी भारी उहापोह की स्थिति बनी हुई है। 2014 का चुनाव यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और महिला सुरक्षा के नाम पर लड़ा गया था, और दिल्ली ने सातों सीट पर भाजपा को भारी जीत दिलाई थी। 2019 में भी पुलवामा के शहीदों और बालाकोट एयरस्ट्राइक के नाम पर बड़ी संख्या में आम लोगों ने अपना वोट भाजपा के पक्ष में दिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि दिल्ली की सातों सीटों पर एक बार फिर सभी भाजपा उम्मीदवार जीत गये। 

दिल्ली के सातों भाजपा सांसदों का ट्रैक रिकॉर्ड इस बार महंगा पड़ने वाला है 

लेकिन इस बार चुनौती चौतरफा है, और मुकाबले में संयुक्त विपक्ष चुनौती बनकर खड़ा है। इस बार दिल्ली की 4 सीटों पर आम आदमी पार्टी (आप) और 3 पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं। भाजपा ने भी माहौल को भांपते हुए इस बार एक सीट छोड़ बाकी सभी सीटों पर अपने पुराने उम्मीदवारों को हटाकर नए उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। लेकिन मोदी लहर की सवारी गांठने की संभावना इस बार काफी कम होने की वजह से भाजपा सांसदों के 10 साल के काम की समीक्षा अब आम मतदाता भी करने लगे हैं। लोग अब यह भी समझने लगे हैं कि कैसे मोदी-शाह के शासन में सांसदों की भूमिका को नगण्य बनाकर उन्हें सिर्फ एक संख्या के बतौर इस्तेमाल किया गया, और मोदी शासन के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) को छुपाने के लिए भाजपा के मौजूदा सांसदों के सिर पर सारा ठीकरा फोड़ उनकी जगह पर नए चेहरों को सामने किया जा रहा है। 

भाजपा के दिल्ली सांसद MPLAD फंड का उपयोग करने में फिसड्डी रहे 

आज भाजपा के 10 साल की उपलब्धियों की चर्चा हो रही है। इस संदर्भ में इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने आज दिल्ली में MPLAD मद से 10 वर्ष के दौरान क्या काम कराया गया और कितना पैसा बिना खर्च किये ही बेकार चला गया, का खुलासा करते हुए बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित की है। 

बता दें कि 1993 में पीवी नरसिम्हाराव सरकार के कार्यकाल में MPLAD योजना के तहत प्रत्येक सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए प्रति वर्ष 5 करोड़ रूपये की राशि खर्च करने का अधिकार प्रदान किया गया था। इस प्रकार 10 वर्ष तक दिल्ली में भाजपा के प्रत्येक सांसद के पास जन-कल्याण के कामों पर खर्च करने के लिए 50 करोड़ रूपये की राशि मौजूद थी। 7 सांसदों के हिसाब से यह राशि 350 करोड़ रूपये बैठती है, लेकिन कोविड-19 महामारी की वजह से इस मद में कटौती के कारण यह राशि 311.50 करोड़ रूपये रह गई। 

लेकिन आंकड़े बताते हैं कि भाजपा सांसदों ने MPLAD स्कीम से करीब 100 करोड़ रूपये की राशि का जनकल्याण में सदुपयोग करना भी उचित नहीं समझा, नतीजतन यह राशि बट्टे खाते में जा चुकी है। इसमें से 81 करोड़ रूपये तो केंद्र सरकार इसलिए जारी नहीं कर सकी, क्योंकि सांसदों की ओर से कोई ठोस योजना ही नहीं पेश की गई, उल्टा केंद्र से जो राशि प्राप्त हुई थी, उसमें से भी 19.75 करोड़ रूपये को खर्च नहीं किया जा सका। इस योजना के तहत साफ़ पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़क निर्माण के कार्यों पर खर्च किया जा सकता है। दिल्ली की कच्ची बस्तियों में रहने वाली 70% आबादी इन चीजों के लिए कितना तरस रही है, ये तो उन्हीं जन-प्रतिनिधियों को मालूम हो सकता है, जिन्हें अगली बार चुनाव जीतने के लिए इन्हीं मतदाताओं के सामने जाने की मजबूरी हो। 

बता दें कि MPLAD फंड के लिए सांसदों को जिला प्रशासन के समक्ष विभिन्न योजनाओं पर फंड की दरियाफ्त करनी होती है। इसके बाद जिला प्रशासन सांख्यिकी एवं कार्यक्रम मंत्रालय से संपर्क साधकर इन योजनाओं के तहत फंड जारी करने के लिए संपर्क किया जाता है। लेकिन यदि सांसद की ओर से फंड हासिल करने के लिए प्रयास ही न किया जाये तो केंद्र सरकार की ओर से फंड का आवंटन नहीं किया जाता। जिला प्रशासन के पास फंड आने के बाद सांसदों को हर परियोजना की प्रगति को लेकर केंद्र को मासिक प्रगति रिपोर्ट जमा करनी होती है। अगर योजना के तहत जिला प्रशासन काम को पूरा नहीं कराता तो ऐसे में अप्रयुक्त फंड स्वतः लेप्स हो जाते हैं। 

10 वर्षों के दौरान दिल्ली के सांसदों का ट्रैक रिकॉर्ड 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 2014 में दिल्ली से चुने गये सांसदों का ट्रैक रिकॉर्ड 2019 की तुलना में बेहतर था। इन पांच वर्षों के दौरान सातों लोकसभा के लिए कुल 187.50 करोड़ रूपये की राशि अनुमोदित थी, जिसमें से 185 करोड़ रूपये से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों के लिए केंद्र से पैसे मिले थे, लेकिन इसमें से 16.82 करोड़ रूपये किसी भी परियोजना में खर्च नहीं किये जा सके।  

2019 की 17वीं लोकसभा में हालांकि कोविड-19 महामारी के चलते यह राशि घटकर 124 करोड़ रूपये रह गई थी, लेकिन दिल्ली के सांसद महज 45.5 करोड़ रूपये की योजनाओं को ही मंजूरी पाने में सफल रहे। इसमें से भी 2.93 करोड़ रूपये खर्च नहीं किये जा सके। इसका अर्थ यह है कि 78.5 करोड़ रूपये होने के बावजूद दिल्ली के लोगों की भलाई के लिए इस्तेमाल नहीं किये जा सके। 

इसके पीछे की मुख्य वजह का खुलासा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की वेबसाइट से पता चलता है, जिसमें साफ़ दर्शाया गया है कि उक्त सांसदों के द्वारा विभिन्न योजनाओं के बारे में मासिक प्रगति रिपोर्ट जमा नहीं करने की वजह से आगे का फंड जारी नहीं किया जा सका। आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं, क्योंकि अधिकांश परियोजनाओं का काम अधूरा पड़ा है। 

सातों सांसदों में चांदनी चौक से हर्ष वर्धन का ट्रैक रिकॉर्ड सबसे बेहतर था, जिनकी 364 परियोजानाओं को मंजूरी दी गई थी। लेकिन मात्र 98 योजनायें ही पूरी हो सकीं। इसके बाद उत्तरी पश्चिम दिल्ली के सांसद हंस राज हंस का नबंर आता है, जिनकी 154 योजनाओं को मंजूर किया गया था और 47 योजनायें पूरी हो सकीं। सबसे बुरा हाल पूर्वी दिल्ली से सांसद गौतम गंभीर का रहा, जिन्होंने अपने 5 वर्ष के कार्यकाल के दौरान महज 48 कार्यों के लिए मंजूरी हासिल की थी, और महज 12 काम ही पूरे हो सके। उत्तर-पूर्वी दिल्ली से दो बार सांसद रह चुके मनोज तिवारी, जिन्हें तीसरी बार भी मैदान में उतारा गया है- का रिकॉर्ड भी बेहद खराब है। उनकी ओर से कुल 70 योजनाओं के लिए संस्तुति मांगी गई थी, जिसमें से सिर्फ 12 काम ही पूरे हो सके हैं। जाहिर है भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने फीडबैक लोकसभा क्षेत्र की जनता से न लेकर उनके भोजपुरी गायक और पूर्वांचली मतदाताओं के बीच लोकप्रियता को ध्यान में रखा है।

MPLADS.GOV.IN वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक भाजपा सांसदों की ओर से जिन कई परियोजनाओं के लिए प्रस्ताव भेजा गया था, उन्हें मंजूरी नहीं मिल सकी। इनमें सीसीटीवी कैमरे स्थापित करने, सार्वजनिक पार्कों में विकास कार्य, खेल और जिम के उपकरण सहित स्पोर्ट्स ग्राउंड जैसी योजनायें शामिल थीं।  

MPLAD स्कीम के लिए जो दिशानिर्देश हैं, उसके तहत किसी भी परियोजना की मंजूरी के लिए आवश्यक है कि परियोजना कम से कम 2.5 लाख रूपये या इससे अधिक की हो। इंडियन एक्सप्रेस ने जब यह सवाल भाजपा के एक नेता से किया तो उनका कहना था कि सांसद निधि का अधिकांश फंड काम में लाया जा चुका है, जिसे सांसदों के कार्यालय से अपडेट किया जा सकता है। 

पिछले दस वर्षों से दिल्ली के सातों सांसदों का दिल्ली या देश की राजनीति में कोई प्रभावी योगदान नहीं रहा है। इनका काम संसद के भीतर ट्रेजरी बेंच के बहुमत को साबित करने के अलावा, दिल्ली की राज्य सरकार के खिलाफ बयानबाजी करने से अधिक कभी नहीं रहा। इनमें से डॉ. हर्षवर्धन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और नई दिल्ली लोकसभा सीट की सांसद मीनाक्षी लेखी, विदेश राज्य मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में इन दोनों का टिकट काट दिया गया, और दिल्ली के मतदाताओं के बीच कोई उफ़ तक सुनने को नहीं मिला। यह साफ़ बताता है कि दिल्ली के नागरिक पहले ही उनसे कोई उम्मीद नहीं कर रहे थे। राष्ट्रवाद की आंधी चल रही होती या मोदी मैजिक इस बार भी काम कर रहा होता तो इन्हीं सांसदों को एक बार फिर खड़ा करने पर भी सभी जीत सकते थे, लेकिन आज हालात पूरी तरह से उलट चुके हैं।

मोदी मैजिक की गैर-मौजूदगी में संयुक्त विपक्ष का पलड़ा भारी 

तमाम मीडिया रिपोर्ट्स और चुनावी चाणक्य दिल्ली को लेकर पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि तीसरी बार भी यहां से भाजपा सारी सीटें बड़े अंतर से जीतने जा रही है। इसके लिए वे कारण गिनाते हुए कहते हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में 56.86% मत पड़े थे, जबकि कांग्रेस और आप पार्टी के कुल वोट प्रतिशत को मिला भी दें तो भी वे इसका मुकाबला नहीं कर सकते। 

ऐसे लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि 2009 में कांग्रेस पार्टी को दिल्ली की सातों सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। इतना ही नहीं, उस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में 57.11% वोट पड़े थे, जो भाजपा के पिछले प्रचंड जीत के प्रतिशत से अधिक था। 2004 में भी कांग्रेस 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। 2019 में कांग्रेस को हासिल 22.51% और आप के 18.11% वोटों को मिलाकर जो लोग इसे नाकाफी बता रहे हैं, वे असल में जीत-हार के लिए जरुरी केमिस्ट्री को पूरी तरह से नजरअंदाज कर देना चाहते हैं

2019 के बाद दिल्ली ने दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे, सीएए विरोध प्रदर्शन, दिल्ली की सीमाओं पर किसानों की जत्थेबंदियां, कोविड-19 महामारी के दौरान लाखों की संख्या में असंगठित मजदूरों के पलायन के साथ बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी की मार को झेला है। इसके अलावा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस इस बार एकजुट होकर लड़ रही है। असल में दिल्ली सरकार में आप पार्टी की 200 यूनिट बिजली मुफ्त योजना, प्रतिदिन 700 लीटर पानी मुफ्त के साथ-साथ  शिक्षा, स्वास्थ्य मोहल्ला क्लिनिक, सीवर लाइन, महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा के बाद 1000 रूपये की आर्थिक सहायता जैसी योजनाओं ने दिल्ली को एनसीआर में रह रहे लाखों गरीब और मध्य वर्ग की तुलना में बेहतर स्थिति में रहने लायक बनाये रखा है। 

इन मुद्दों पर दिल्ली का बहुसंख्यक मतदाता आज भी आप पार्टी के पीछे खड़ा है, लेकिन केंद्र में सरकार बनाने के लिए संख्याबल के अभाव में उसका वोट विभाजित हो जाता था। इस कमी को आप-कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के तहत काफी हद तक दूर कर दिया है। दिल्ली जैसे मेट्रोपोलिटन शहर के सांसदों से उम्मीद की जानी चाहिए कि वे किसी नेता की छवि को चमकाने के लिए रबर स्टांप की भूमिका निभाने की जगह दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के लिए उदाहरण बनें, और MPLAD जैसे फंड का शतप्रतिशत उपयोग लोककल्याणकारी योजनाओं के लिए खर्च करें। 

 (इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर आधारित।)

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