केंद्र सरकार के कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने पटना हाई कोर्ट के शताब्दी समारोह कार्यक्रम में कहा है कि कोर्ट के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जजों के खिलाफ किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं होनी चाहिए। जजों के खिलाफ़ एजेंडा सेट करने वालों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मन मुताबिक फैसला नहीं आने पर जजों के खिलाफ सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई जाती है। उनकी ट्रोलिंग की जाती है। इसे टॉलरेट नहीं किया जाएगा।
राफेल डील, अयोध्या केस, बाबरी मस्जिद विध्वंस केस, सोहराबुद्दीन शेख फेक एनकाउंटर केस, जज लोया मर्डर केस में सरकर के पक्ष में कोर्ट के फैसलों पर सोशल मीडिया में आलोचना हुई थी। इतना ही नहीं बुद्धजीवी, एक्टिविस्ट, दलित आदिवासी कार्यकर्ता, पर्यावरणविद्, वकीलों को अलग-अलग फर्जी केसों में ज़मानत खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के एक जज द्वारा अर्णब गोस्वामी की रिहाई के लिए निजी स्वतंत्रता के अधिकार की दुहाई देने पर भी जज की ख़ूब आलोचना हुई थी। इतना ही नहीं, जंगलों से आदिवासियों को खदेड़ने, आरक्षण आदि सरकार की रुचि वाले मामलों में सरकार के मन मुआफिक फैसले सुनाने के बाद जनसामान्य में ये धारणा और मजबूत हुई है कि न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर रही है।
सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को जमानत देने वाले सीजेआई पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाए जाने और अयोध्या मामले में सरकार की चाहत के मुताबिक बहुसंख्यक वर्ग के पक्ष में फैसला देने के बाद रिटायर हुए पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को राज्यसभा सांसद बनाए जाने के बाद ये बहस मजबूत हुई है कि न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर रही है।
सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति फर्जी एनकाउंटर मामले में अमित शाह की पैरवी की कर चुके यू ललित को रातों-रात सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया। ऐसे में जजों के आफ्टर रिटायरमेंट पैकेज पर लगातार आलोचना हो रही है।
क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को पूरी आजादी है कि वो अपने हिसाब से कानून के आधार पर चाहे जो फैसला दें। किसी को भी अधिकार है कि वो जजमेंट की आलोचना करे। मगर किसी भी तरह की ट्रोलिंग बर्दाशत नहीं की जाएगी। किसी भी तरह का एजेंडा सेटिंग और सार्वजनिक तौर पर जजों की आलोचना करना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। काफी लंबे समय से इस बारे में सोच रहा था, मगर पहली बार इसे सार्वजनिक तौर पर बोल रहा हूं। मैं ये सोचता हूं कि पटना हाई कोर्ट का मंच इस बात को कहने के लिए सबसे अच्छा है। ये केवल बिहार के लिए मैसेज नहीं है बल्कि पूरे देश के लिए ये मैसेज है। पटना से मैं पूरे देश को बताना चाहता हूं।
केंद्रीय कानून मंत्री ने आगे कहा कि राष्ट्रीय सोशल मीडिया गाइडलाइन के जरिए हम लोगों के विचारों का स्वागत करते हैं। बोलने की आजादी का समर्थन करते हैं, लेकिन सोशल मीडिया का इस्तेमाल समस्या नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया का मिस यूज और एब्यूज समस्या है। भारत के 135 करोड़ लोग अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। इसमें से कुछ लोग मिसयूज करते हैं, कुछ एब्यूज करते हैं, कुछ अपनी बातों को रखते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत एक आजाद देश है, कोई भी कुछ भी कह सकता है। कुछ लोग कोर्ट के फैसले की भी आलोचना करते हैं। मगर हाल के दिनों में एक नया ट्रेंड चल रहा है। कुछ लोगों को किसी फैसले के बारे में अपना विचार हो सकता है। वो उसके लिए पीआईएल फाइल करते हैं। इसमें कोई समस्या नहीं है, ये उनका अधिकार है। मगर बाद में वो किसी जजमेंट के खिलाफ कैंपेनिंग शुरू कर देते हैं। अगर उनके विचार के मुताबिक फैसला नहीं आता है तो वो जजों के खिलाफ कैंपेन शुरू कर देते हैं। इसे टॉलरेट नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे ने आज शनिवार को पटना हाई कोर्ट के शताब्दी भवन का उद्घाटन किया। उद्घाटन के मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद के अलावा सुप्रीम कोर्ट के जज नवीन सिन्हा, जज इंदिरा बनर्जी और जज हेमंत गुप्ता भी मौजूद रहे। समारोह में पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और हाई कोर्ट के सभी जज खास तौर पर मौजूद थे। कार्यक्रम में झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन सीनियर एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा भी शामिल रहे।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)