कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद बीआरएस और टीएमसी क्यों हैं परेशान?

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। कर्नाटक चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ दिख रहा है। भाजपा के फासीवादी राजनीति के समक्ष अब कांग्रेस चुनौती बन के खड़ी होती दिख रही है। पहले भाजपा कांग्रेस और राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं ले रही थी। लेकिन अब सत्तारूढ़ संघ-भाजपा के साथ ही क्षेत्रीय दल भी कांग्रेस को चुनौती मानने लगे हैं। कुछ दल तो कांग्रेस से गठबंधन के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं, लेकिन कुछ दल अब भाजपा के साथ ही कांग्रेस पर भी हमलावर हो गए हैं। ताजा मामला तेलंगाना का है जहां बीआरएस ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

दरअसल, यह सब सिर्फ कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ही कारण नहीं है। बल्कि हाल ही में कर्नाटक और इसके पहले कई जगह हुए उप-चुनावों में जिस तरह अल्पसंख्यकों और काफी हद तक दलितों का कांग्रेस के पक्ष में झुकाव दिखा। उससे क्षेत्रीय दलों की चिंता बढ़ गई है। सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं पश्चिम बंगाल विधानसभा उप- चुनाव में यह साफ-साफ देखा गया कि अल्पसंख्यक अब किसी क्षेत्रीय पार्टी के मोहपाश में बंधे रहने की बजाए एक राष्ट्रीय पार्टी और विश्वसनीय नेतृत्व की तलाश में हैं। हर दल को आजमाने के बाद अब वह फिर कांग्रेस की तरफ रूख कर रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद अल्पसंख्यकों का कांग्रेस की ओर झुकाव बढ़ा है। कर्नाटक में मुसलमानों ने जेडीएस को करीब पूरी तरह छोड़कर कांग्रेस का साथ दिया। कमोवेश यही स्थिति दलितों की भी रही।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सबसे पहले दीवाल पर लिखी इस इबारत को पढ़ा, और सब कुछ भूल कर कांग्रेस से सार्वजनिक अपील की कि वह बंगाल को टीएमसी के लिए छोड़े और पूरे देश में हम कांग्रेस का सहयोग करेंगे। ममता बनर्जी का तर्क है कि टीएमसी बंगाल में मजबूत है तो वहां उनके लिए सीट छोड़ दी जाए। लेकिन ममता बनर्जी यह भूल रहीं हैं कि कांग्रेस भले ही विधायकों और सांसदों के लिहाज से पश्चिम बंगाल में नगण्य स्थिति में है, लेकिन हर राज्य में कांग्रेस का संगठन है और एक शानदार अतीत रहा है। वह कैसे किसी राज्य से खुद को पूरी तरह बाहर कर सकती है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तो कांग्रेस से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर अपनी राजनीति को सुरक्षित करना चाहती हैं, लेकिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव अब कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं। फिलहाल, बीएरएस नेता के. चंद्रशेखर राव अभी कांग्रेस को बहुत भाव देने के पक्ष में नहीं हैं। वह विपक्षी दलों के ‘गठबंधन’ पर भी अवसरवादी रूख अख्तियार करते रहे हैं। लेकिन तेलंगाना में अब बीआरएस भाजपा के साथ कांग्रेस से भी सतर्क रहने की रणनीति बना रही है।

मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव अब भाजपा और कांग्रेस दोनों पर आक्रामक हैं। उन्होंने गुजरात मॉडल को फर्जी बताते हुए और खारिज करते हुए अपने सहयोगियों से “विकास के तेलंगाना मॉडल” को आक्रामक रूप से बढ़ावा देने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में तेलंगाना मॉडल पर बात की जा रही है। वे कह रहे हैं कि पार्टियां देश के विभिन्न हिस्सों में हमारी योजनाओं का अनुकरण कर रही हैं। हम जाति या धर्म के आधार पर बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए विकास सुनिश्चित करते हैं। हमने पिछले नौ साल में काफी अच्छा काम किया है और लोग हमारे साथ हैं।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत ने बीआरएस के विधायक, सांसद और कार्यकर्ताओं को परेशान कर रखा था। इस बात की जानकारी केसीआर तक पहुंची तो उन्होंने बुधवार शाम तेलंगाना भवन में पार्टी मुख्यालय में पार्टी के सांसदों, विधायकों और एमएलसी को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अपने लंबे शासनकाल के दौरान देश को बर्बाद कर दिया। पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को नोटिस न करते हुए उन्होंने कहा कि विधायक-सांसद अपने-अपने क्षेत्र में कड़ी मेहनत करे, जनता के प्रति एक बार फिर खुद को समर्पित करे, कांग्रेस कोई खतरा नहीं है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक केसीआर की इस प्रतिक्रिया को 13 मई को राज्य कांग्रेस द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत का जश्न मनाने के आलोक में देखा जाना चाहिए, जिसमें तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) ने परिणाम को पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया था। तेलंगाना में सरकार बनाने की कसम खाई। टीपीसीसी प्रमुख ए रेवंत रेड्डी ने कहा कि कर्नाटक के लोगों ने भाजपा की नफरत की राजनीति को खारिज कर दिया है और कांग्रेस के विकास के वादे को वोट दिया है। रेड्डी ने कहा था “कर्नाटक पूरे भारत में कांग्रेस के पुनरुद्धार का मार्ग प्रशस्त करता है। अगला नंबर तेलंगाना का है।”

वहीं बीआरएस नेताओं ने कहा कि बुधवार शाम को सीएम ने अपने नजदीकी नेताओं को संकेत दिया कि राज्य में चुनाव नजदीक आने के साथ ही आत्मविश्वास से भरी कांग्रेस को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए है। बीआरएस अध्यक्ष कुछ मौजूदा विधायकों को प्रदर्शन के आधार पर टिकट से वंचित करने की रणनीति बना रहे थे। लेकिन बुधवार को उन्होंने सभी मौजूदा विधायकों को आश्वासन दिया कि उन्हें फिर से टिकट दिया जाएगा, लेकिन चेतावनी के साथ कि वह उनके काम पर कड़ी नजर रखेंगे।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का तेलंगाना में क्या असर होगा, बीआरएस इस मुद्दे पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। बीआरएस अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव पर भी विचार कर रही है।

केसीआर ने कहा कि 2014 से राज्य में बीआरएस द्वारा किए गए विकास कार्यों के कारण, लोग आसानी से कांग्रेस के चुनावी वादों पर विश्वास नहीं करेंगे और इससे दूर रहेंगे। उन्होंने बीआरएस की हैट्रिक पर भी भरोसा जताया और कहा कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 95-105 सीटें जीतेगी।

सीएम के. चंद्रशेखर राव ने अपनी पार्टी के सदस्यों से कहा “हमारे सभी सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि हम तीसरी बार अच्छे बहुमत से जीतेंगे, लेकिन आप सभी को कड़ी मेहनत करनी चाहिए और अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लोगों के बीच अधिक समय बिताकर मेरे निर्देशों का पालन करना चाहिए। यह कार्य करने का समय है। अपने क्षेत्रों में वापस जाएं, अपने कैडर और स्थानीय नेताओं को इकट्ठा करें और काम पर वापस जाएं। अपने क्षेत्रों में कम से कम 21 दिन बिताएं, लोगों से मिलें और उनसे बीआरएस शासनकाल के दौरान राज्य की उपलब्धियों के बारे में बातएं। ”

बीआरएस प्रतिक्रियाएं बता रही हैं कि अब वह भाजपा के साथ कांग्रेस को भी अपने लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देख रही है। क्योंकि तेलंगाना के पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की है, और इस जीत का प्रभाव दूसरे राज्यों में भी पड़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author