बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पिछले साल कांग्रेस में शामिल होने के लिये पार्टी छोड़ने वाले छह विधायकों को राजस्थान विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान सत्तारूढ़ पार्टी (कांग्रेस) के खिलाफ मतदान करने का रविवार को व्हिप जारी किया। ऐसा करके मायावती बहुजन विरोधी भाजपा को प्रत्यक्ष फायदा पहुँचा रही हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में संदीप यादव, वाजिब अली, दीपचंद खेरिया, लखन मीणा, जोगेंद्र अवाना और राजेंद्र गुधा बसपा के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे थे और सभी बसपा विधायकों ने 16 सितंबर 2019 को कांग्रेस में एक समूह के रूप में विलय के लिए अर्जी दी थी। विधानसभा स्पीकर ने अर्जी के दो दिन बाद आदेश जारी कर घोषित किया कि इन छह विधायकों से कांग्रेस के अभिन्न सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए।
बसपा का सही समय पर हाईकोर्ट जाना ‘भाजपा हित’ क्यों है
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि बसपा पहले भी अदालत जा सकती थी लेकिन हम कांग्रेस और सीएम अशोक गहलोत को सबक सिखाने के लिए सही समय का इंतजार कर रहे थे। अब हमने कोर्ट जाने का फैसला किया है। कांग्रेस की वजह से हमें अदालत में जाना पड़ा और बसपा मुनासिब वक्त की राह देख रही थी। इस बार हम इस मामले को ठंडा नहीं पड़ने देंगे और सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। कांग्रेस को सबक सीखना बहुत जरूरी है। कांग्रेस आज जिस काम को चोरी कह रही है, वही काम कांग्रेस ने बसपा के साथ किया था। चोरी के सामान के चोरी हो जाने पर आज कांग्रेस शोर मचा रही है।”
साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि, “हमने बीएसपी के सिंबल पर जीते सभी 6 विधायकों से राजस्थान विधानसभा सत्र के दौरान कांग्रेस के खिलाफ वोट करने के लिए कहा है। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी पार्टी से सदस्यता रद्द कर दी जाएगी।”
कांग्रेस में शामिल हुए बीएसपी के 6 विधायकों के पीछे क्यों पड़ी है भाजपा
राजस्थान हाईकोर्ट में गया ये मामला इसलिए अहम है क्योंकि सचिन पायलट की बगावत के बाद राजस्थान की सरकार बहुत कम मार्जिन से सत्ता में रह गई है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि पायलट गुट के 19 विधायकों के जाने के बाद भी कांग्रेस के पास 107 विधायकों का समर्थन हासिल है। जबकि विपक्ष और सचिन पायलट गुट उनके पास सिर्फ 103 विधायक होने का दावा कर रहा है। 200 विधानसभा सीट वाले राजस्थान में सरकार बनाने के लिए बहुमत का सामान्य आंकड़ा 101 है। इस लिहाज से बीएसपी के इन 6 विधायकों का मामला बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। यदि किसी भी तरह से बसपा के इन 6 विधायकों की मान्यता रद्द हो जाती है, या पार्टी व्हिप के अनुसार ये कांग्रेस सरकार के खिलाफ वोटिंग कर देते हैं तो राजस्थान में गहलोत सरकार अल्पमत में आकर गिर जाएगी। यही भाजपा और बसपा की साझा चाहत है।
भाजपा-बसपा संग-संग पहुँची हाईकोर्ट
भाजपा विधायक मदन दिलावर और बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर करके बसपा के 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल हो जाने को चुनौती दी गई है।
राजस्थान हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति महेंद्र कुमार गोयल की एकल पीठ आज 29 जुलाई को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। इससे पहले भी भाजपा के एक विधायक ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर बसपा के सभी छह विधायकों के कांग्रेस में शामिल हो जाने को लेकर याचिका दायर की थी जिसे राजस्थान हाईकोर्ट खारिज कर दिया था।
बीएसपी विधायकों के लिए भाजपा का धरना
बीजेपी विधायक मदन दिलावर विधानसभा स्पीकर के दफ़्तर के बाहर धरने पर बैठे हैं। उनका कहना है कि बीएसपी विधायकों को कांग्रेस में शामिल करने के फैसले को उन्होंने स्पीकर के पास चुनौती दी थी लेकिन स्पीकर ने काफी समय बाद मदन दिलावर की याचिका को खारिज कर दिया। जब वो स्पीकर से उनके फैसले की कॉपी मांगने गए तो उन्हें कॉपी नहीं दी गई। इसके विरोध में वह विधानसभा में स्पीकर के दफ्तर के बाहर धरने पर बैठे हैं। मदन दिलावर ने कहा कि यह नियमों के अनुरूप नहीं है कि किसी पार्टी के विधायकों को स्पीकर अपनी पार्टी में शामिल कर लें।
बीएसपी ने सत्ता विरोधी वोटों का बँटवारा करके भाजपा को फायदा पहुँचाया
लोकसभा चुनाव से पहले हुए तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में मायावती की भूमिका को लेकर सवाल उठे थे। उसी समय ये आरोप लगा था कि बीएसपी इन राज्यों में कांग्रेस को हराने के लिए चुनाव लड़ रही है। बसपा ने जिस तरह से टिकट बांटे, उससे कांग्रेस को नुकसान और भाजपा को लाभ मिला।
राजस्थान में ऐसी 10 सीटें थीं जिनमें हार जीत का अंतर 1000 वोटों से भी कम था। भीलवाड़ा के असिंद सीट से भाजपा के जब्बर सिंह ने कांग्रेस के मनीष मेवाड़ा को 154 वोटों से हराया था, पीलीबंगा सीट से भाजपा के धर्मेंद कुमार ने कांग्रेस प्रत्याशी को महज 278 वोटों से हराया था। जबकि पूरे प्रदेश में बसपा को 4 प्रतिशत वोट मिले थे। बसपा के अलग चुनाव लड़ने का नुकसान कांग्रेस को हुआ। यदि बसपा और कांग्रेस मिलकर लड़े होते तो भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाता। लेकिन बसपा ने अकेले दम चुनाव लड़ने का फैसला करके मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनो ही राज्यों में कांग्रेस को बहुमत नहीं प्राप्त करने दिया।
भाजपा की आर्थिक, राजनीतिक, समाजिक नीतियों का समर्थन
मायावती पहली ऐसी विपक्षी नेता हैं जो सत्ता के बजाय अन्य विपक्षी पार्टियों पर हमले करती हैं। पूँजीवादी मीडिया की तरह वो भी सत्ता की नहीं बल्कि विपक्ष की जवाबदेही पर सवाल खड़े करती हैं। मौजूदा समय में मायावती सपा और कांग्रेस के खिलाफ ज्यादा हमलावर रही हैं। लॉक डाउन के दौरान मायावती ने प्रवासी मजदूरों को उनके गांव भेजने में सरकार से उतने आक्रामक तरीके से मांग रखकर मुद्दा नहीं उठाया, जितना कांग्रेस महासचिव प्रियंका के उत्तर प्रदेश सरकार के साथ बढ़े टकराव पर दिखाई पड़ा।
मायावती राजनीतिक और आर्थिक मसलों पर खुलकर जन विरोधी भाजपा के साथ खड़ी हुई हैं। यहां तक कि वो संविधान और बहुजन विरोधी मसलों पर भी बसपा नेता मायावती भाजपा का समर्थन करती आई हैं। और ये कोई एक दो नहीं बल्कि कई बार सामने आया है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 डायल्यूट करने का समर्थन करते हुए उन्होंने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का भी हवाला दे दिया। वे यहीं तक नहीं रुकीं बल्कि भाजपा से ज्यादा कड़ा हमला विपक्षी नेताओं पर किया। और मायावती ने एक साल से क़ैद कश्मीरी अवाम के बारे में आज तक एक शब्द तक नहीं कहा है।
इससे पहले संविधान विरोधी ‘सवर्ण आरक्षण’ का भी मायावती ने न सिर्फ़ खुलकर समर्थन किया बल्कि 2014 के लोकसभा चुनाव पूर्व उन्होंने ही सबसे पहले आर्थिक आधार पर ‘सवर्ण आरक्षण’ का मुद्दा उठाया था।
सीएए एनआरसी के पक्ष में भले ही मायावती ने खुलकर कुछ न बोला हो लेकिन जब देश भर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ़ जनता सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर रही थी तब मायावती ने दलित समाज के लोगों से अपील किया था कि वो लोग सड़कों पर हो रहे आंदोलन में न उतरें। एनआरसी से दलित समुदाय का भी उतना ही नुकसान है जितना मुस्लिम समुदाय का। अगर उस समय दलित बहुजन समाज के लोग भी सड़कों पर उसी तादाद में उतरकर आंदोलन में साथ आते तो आज तस्वीर कुछ और होती। लेकिन दलित बहुजनों को सड़कों पर उतरने से रोक कर बसपा ने किसको फायदा पहुँचाया बहुजन समाज को या कि ब्राह्मणवादी भाजपा को।
भाजपा की आर्थिक नीतियां पूँजीवादी, निजीकरण को बढ़ावा देती हैं। स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, सार्वजनिक संस्थाओं, सार्वजनिक कंपनियों, सार्वजनिक संसाधनों को निजी हाथों में बेंच देने से सबसे ज़्यादा नुकसान बहुजन वर्ग को होगा, बावजूद इसके मायावती भाजपा की आर्थिक नीतियों का समर्थन करती आई हैं।
(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)