नई दिल्ली। नया संशोधित यातायात कानून भाजपा की अंतर्कलह को सतह पर लाएगा। इसमें कई का चलान कटेगा। कई बाप-बाप करेंगे। इसकी शुरुआत हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बीच सौहार्द नहीं है। अब ये खुल के सामने आ रहा है। जिस तरह से नए ट्रैफिक रूल्स को गुजरात सरकार ने रद्दी की टोकरी में डाल कर गडकरी को बैकफुट पर धकेला है, अन्य राज्य सरकारों के लिए वैसा ही करने को उकसाया है, ये साफ-साफ इशारा कर रहा है भाजपा के ‘अंदर आल इज नॉट वेल!
भाजपा के खास वर्ग के समर्थन से गडकरी पर अलोकप्रिय, गैर जनतांत्रिक कानून बनाने का ठीकरा फोड़ने से पहले देश भर में नए परिवहन कानून के खिलाफ माहौल बनाने में ऐसा ‘होम’ किया जाएगा कि गडकरी शरणागत हो जाएं! गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने क्या बिना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्वास में लिए केंद्र के नये परिवहन कानून को पलटने का फैसला किया होगा? ना, कतई नहीं। ऐसा संभव ही नहीं है। सब जानते हैं रुपानी वहां खड़ाऊं सरकार चला रहे हैं।
तो फिर अपनी ही केंद्र सरकार के बनाए कानून को रुपानी सरकार ने क्यों फुस्स कर दिया? क्या वे पीएमओ द्वारा बनाए गए किसी कानून पर ऐसी ही तल्ख प्रतिक्रिया देने की हिम्मत करेंगे? सवाल ही नहीं। तो फिर इस कानून को संशोधित कर उसे भोथरा बनाने का आशीर्वाद उन्हें किसने दिया? क्यों दिया? भाजपा के पूर्व अध्यक्ष, पार्टी के वरिष्ठतम नेता महाराष्ट्र के नितिन गडकरी को महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि बेहद जूनियर परिवहन मंत्री दिवाकर रावते पत्र लिखकर नए कानून पर उन्हें पुनर्विचार की नसीहत दे रहे हैं, क्या ये सब सामान्य बातें हैं? नहीं, बिल्कुल नहीं। गडकरी की घेराबंदी की जा रही है, ताकि वे मोदी और अमित शाह के बीच किसी भी परिस्थिति में शहंशाह बन कर न उभरें।
राजनीति संभावनाओं का खेल है। कल, आज और कल की भाजपा के अंदर लक्षमण रेखा खींची जा रही है। गडकरी पर ‘नागपुर’ की असीम कृपा है। उस कृपा को पहले उन्हीं के मोहरों से मात देकर ‘कुदृष्टि’ में बदलने की कोशिश है। संघ की नजर में उन्हें सियासी खलनायक बनाने की जुगत है। बहाना होगा- गडकरी के नए परिवहन कानून के जन विरोध के कारण भाजपा को हो रहा नुकसान।
गडकरी ‘अपनों’ की घेराबंदी का ये खेल भांप गए हैं। इसलिए पूरी आक्रामकता के साथ नये कानून के पक्ष में वकालत कर रहे हैं। संसद में कानून पास कराने के वक्त कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने नये कानून को मिलकर पास कराया। अब विरोध का नाटक कर राजनीतिक फायदा उठाने के फिराक में हैं। इनके नेताओं को आम जनता पकड़े। उनसे सवाल पूछे, संसद में समर्थन, सड़क पर विरोध, ये कैसा दोगलापन है?
(शिशिर सोनी पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं। यह लेख शुक्रवार से साभार लिया गया है।)