सुंदरलाल बहुगुणा स्मृति दिवस: जल-जंगल-जमीन के संघर्षों को तेज करने का जनांदोलनों के नेताओं का आह्वान

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देहरादून: देशभर के कई पर्यावरणविद और जन संघर्षों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने जल, जंगल, जमीन और जन अधिकारों के संघर्ष को पूरे देश में तेज करने आह्वान किया है। पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उत्तराखंड सरकार पर जन आकांक्षाओं के साथ खिलवाड़ करने और पर्यावरण संरक्षण और महिलाओं की सुरक्षा में असफल रहने का आरोप लगाते हुए महिलाओं और युवाओं के नेतृत्व में संघर्ष तेज करने का अपील की है।

चिपको आंदोलन के नेता और प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा की दूसरी बरसी पर देहरादून में आयोजित सम्मान समारोह में जुटे पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि विकास के नाम पर जिस तरह से हिमालय के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, वह भविष्य के लिए खतरनाक है। उन्होंने उत्तराखंड के अस्तित्व को बचाने के आंदोलन में हर संभव मदद का भी आश्वासन दिया। इस मौके पर बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी को सुन्दरलाल बहुगुणा स्मृति हिमालय प्रहरी सम्मान प्रदान किया गया। 

उत्तराखंड के पर्यावरण और जन संघर्षों को लेकर हुई परिचर्चा में नर्मदा आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, जन आंदोलनों के प्रतीक और पूर्व आईएएस अधिकारी डॉ. कमल टावरी, स्व. सुन्दरलाल बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा, पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा, मैती आंदोलन के प्रणेता कल्याण सिंह मैती, बीज बचाओ आंदोलन के विजय जड़धारी, यूकॉस्ट के पूर्व निदेशक डॉ. राजेन्द्र डोभाल सहित पर्यावरण और जन आंदोलनों से जुड़े तमाम लोग मौजूद थे। वक्ताओं ने हिमालय के अस्तित्व पर मंडरा रहे संकट पर चर्चा की और इसे बचाने के लिए महिलाओं और युवाओं के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन चलाने की जरूरत पर जोर दिया।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने कहा कि एक तरफ जहां अमेरिकी और यूरोपीय देश बड़े बांधों को तोड़ने की मुहिम शुरू कर चुके हैं और यूरोपीय देशों में 4 हजार से ज्यादा बांध तोड़े जा चुके हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में बड़े बांध बनाने के लिए आज भी लोगों को विस्थापित किया जा रहा है। मौजूदा सरकार हर चीज को भव्य बनाने का अभियान छेड़े हुए है, लेकिन यह भव्यता हमारे पर्यावरण और हमारी पीढ़ियों के भविष्य को खतरे में डाल रही है। चाहे नर्मदा बांध हो या टिहरी बांध, हर जगह बड़ी संख्या में लोगों को उनकी जड़ों से अलग किया गया। नर्मदा घाटी में 50 हजार परिवारों को उनकी जमीन से उजाड़कर छोड़ दिया गया। 37 वर्षों तक आंदोलन चलाने के बाद ही उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हो पाईं।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर

मेधा पाटकर ने कहा कि एक तरफ जहां चारधाम सड़क परियोजना के नाम पर उत्तराखंड में पहाड़ों को बेतरतीब तरीके से काटा जा रहा है। ऐसा करने के लिए ग्राम पंचायतों की मंजूरी तक नहीं ली जा रही है या फर्जी तरीके से ली जा रही है। तर्क दिया जाता है कि जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उतना वनीकरण भी किया जा रहा है, लेकिन देशभर में उन्होंने देखा है कि जहां पेड़ काटे जाते हैं, उससे सैकड़ों किमी दूर वनीकरण का दावा किया जाता है, यह सब बेमानी है। फिलहाल उत्तराखंड में जो जंगल हैं, उन्हें बचाना बड़ी चुनौती है।

उन्होंने राज्य में आम लोगों के संघर्षों का जिक्र किया और कहा कि नौकरी मांगने पर बेरोजगार युवाओं पर उत्तराखंड सरकार लाठियां चलवाती है और अंकिता भंडारी के हत्यारोपियों को संरक्षण दिया जाता है। उन्होंने बदरीनाथ में मास्टर प्लान का भी जिक्र किया और कहा कि बदरीनाथ जिस संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में स्थित है, वहां इतने बड़े निर्माण विनाश को दावत देने जैसे हैं।

जोशीमठ में हो रहे धंसाव को लेकर भी मेधा पाटकर ने सवाल उठाते हुए कहा कि 1976 में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के साथ ही पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट ने भी एक रिपोर्ट तैयार की थी और विस्तार से लेख लिखा था, सरकारों ने उस पर ध्यान नहीं दिया। जोशीमठ में बड़े-बड़े निर्माण किये गये। आज नतीजा सामने है। जोशीमठ धंस रहा है, लेकिन इसके बावजूद लोगों के पुनर्वास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा सके हैं।

मेधा पाटकर ने कहा कि उत्तराखंड सरकार को लगता है कि पीठ पर घास लाती महिलाओं के चित्र दीवारों पर उकेरकर वह पहाड़ की मेहनतकश महिलाओं को सम्मान दे रही है, लेकिन यह कोई सम्मान नहीं है। अपना सम्मान हासिल करने के लिए महिलाओं को खुद आगे आना होगा। अंकिता भंडारी जैसे हत्याकांड राज्य में न हों, इसके लिए खुद प्रयास करना होगा। उन्होंने इस बात पर चिन्ता जताई कि बिल गेट्स जैसे लोग भारत पर कृषि पर अधिकार करना चाहते हैं। ये वही बिल गेट्स हैं, जिन्होंने चाइना की उस लेबोरेटरी में बड़ा निवेश किया था, जिससे कोविड वायरस निकला।

मेधा पाटकर ने कहा कि इस दौर में जबकि सरकारें वन कानून को बदलने का षडयंत्र कर रही हैं, ग्राम पंचायतों से उनके अधिकार छीनने की कोशिश की जा रही है। बिना ग्राम पंचायतों की अनुमति के गांवों के जंगल काटे जा रहे हैं और उनकी जमीनों में बांध बनाये जा रहे हैं। ऐसे मौके पर सुन्दरलाल बहुगुणा की धरोहर को आगे बढ़ाने की जरूरत है। उन्हें हमें श्रद्धांजलि नहीं देनी है, बल्कि कार्यांजलि देनी है। ऐसा उनके कामों को आगे बढ़ाकर ही संभव हो सकता है।

‘बीज बचाओ आंदोलन’ के विजय जड़धारी ने स्व. सुन्दरलाल बहुगुणा को याद करते हुए उनके साथ किये गये विभिन्न आंदोलनों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बहुगुणा ने अपने जीवन में दो प्रण लिये और दोनों पूरे किये। जब उन्हें पता चला कि पानी कम हो रहा है तो उन्होंने प्रण किया कि वे कभी चावल नहीं खाएंगे, क्योंकि धान उगाने में पानी ज्यादा लगता है। यह प्रण उन्होंने जिन्दगी भर निभाया। दूसरा प्रण उन्होंने यह किया कि जब तक टिहरी बांध का निर्माण नहीं रुकता, तब तक वे अपने गांव नहीं जाएंगे। टिहरी बांध का निर्माण नहीं रुका और वे अपने गांव नहीं गये।

विजय जड़धारी ने कहा कि सरकारी षडयंत्र के तहत परंपरागत बीजों को खत्म किया जा रहा है। इससे हम बीजों के मामले में कंपनियों पर निर्भर हो रहे हैं। ऐसे में उन्होंने परंपरागत बीजों के संरक्षण का बीड़ा उठाया और अपने परिवार के सहयोग से इस काम में काफी हद तक सफलता मिली। उन्होंने उत्तराखंड में जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए मिल-जुल कर काम करने की जरूरत पर जोर दिया।

यूकॉस्ट के पूर्व निदेशक डॉ राजेन्द्र डोभाल ने कहा कि आम तौर पर यह सवाल उठाया जाता है कि बांधों के खिलाफ आंदोलन करने का आज तक कोई लाभ नहीं हुआ। बड़े और लंबे आंदोलन के बावजूद टिहरी बांध को बनने से नहीं रोका जा सका। ऐसा ही नर्मदा बांध और अन्य बड़े बांधों के मामले में भी हुआ।

उन्होंने कहा कि ये आंदोलन बेशक बांधों को बनने से रोकने में विफल रहे हों, लेकिन पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने में इन आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत की धरती के पर्यावरण आंदोलनों ने न सिर्फ भारत बल्कि विश्वभर में पर्यावरण संरक्षण के प्रति अलख जगाई है। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा और मैती आंदोलन के कल्याण सिंह रावत ने भी परिचर्चा में हिस्सा लिया और हिमालय की संवेदनशीलता का आकलन किये बिना कोई बड़ी योजना न बनाने की बात कही।

(देहरादून से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट)

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