पूंजीवाद (Capitalism) ने पिछले कुछ दशकों में विश्वभर में अपनी शक्ति और प्रभाव स्थापित किया है, लेकिन यह भी सच है कि इसके साथ कई समस्याएँ भी उभर कर सामने आई हैं, जैसे बढ़ती असमानता, जलवायु परिवर्तन, और सामाजिक-आर्थिक संकट! इसके बावजूद लोग इसे क्यों अपनाए हुए हैं, इसका तर्क और तथ्य से निम्नलिखित विश्लेषण किया जा सकता है:
1. परिचालन और वैकल्पिक प्रणालियों की कमी
परिचितता का प्रभाव: पूंजीवाद का ढांचा अब तक का सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत और परिचित आर्थिक मॉडल बन चुका है। लोग इससे परिचित हैं और इसकी जगह पर किसी नए मॉडल की कल्पना करना कठिन है।
विकल्पों की असफलता: समाजवाद, साम्यवाद या अन्य वैकल्पिक प्रणालियों ने कई जगहों पर अपनी विफलता दिखाई है। इससे पूंजीवाद की ओर लोगों का झुकाव मजबूती से बना रहा।
2. लोगों की मनोवैज्ञानिक स्थिति
आशा और अवसर: पूंजीवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सफलता के सपने को प्रोत्साहित करता है। यह “आप भी अमीर बन सकते हैं” का सपना दिखाता है, भले ही यह बहुत कम लोगों के लिए सच हो।
भय: लोग यह सोचकर पूंजीवाद के साथ बने रहते हैं कि इसका विकल्प अराजकता, गरीबी, और शून्यता ला सकता है।
3. शक्तिशाली संस्थानों का समर्थन
राजनीतिक नियंत्रण: बड़े पूंजीवादी देश (जैसे अमेरिका) और उनके बहुराष्ट्रीय निगम इस मॉडल को बनाए रखने और उसका प्रचार करने के लिए बड़े संसाधन खर्च करते हैं।
मीडिया और प्रचार: मुख्यधारा के मीडिया और शिक्षा प्रणाली अक्सर पूंजीवाद को “सर्वश्रेष्ठ” विकल्प के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिससे यह आदर्श सत्य प्रतीत होता है।
4. तर्कहीनता और बदलाव का डर
सामूहिक तर्कहीनता: समाज अक्सर प्रचलित प्रणाली को इसलिए अपनाए रखता है क्योंकि वह तुरंत फायदे और लंबे समय के नुकसान को पहचानने में विफल रहता है।
बदलाव का डर: लोगों को बदलाव में असुरक्षा महसूस होती है। वे स्थिरता को प्राथमिकता देते हैं, भले ही वह प्रणाली दोषपूर्ण भी क्यों न हो।
5. आर्थिक लाभ के भ्रम
उपभोक्तावाद का प्रलोभन: पूंजीवाद ने उपभोक्तावाद को बढ़ावा दिया है, जिसमें हर व्यक्ति को बाजार से अपने लिए लाभ उठाने का अवसर मिलता है। यह भ्रम पैदा करता है कि व्यक्ति की भलाई पूंजीवादी व्यवस्था में निहित है।
अल्पकालिक समाधान: पूंजीवाद अक्सर समस्याओं का अल्पकालिक समाधान प्रदान करता है, जैसे बेरोजगारी के लिए नई नौकरियाँ, लेकिन दीर्घकालिक समस्याओं को नजरअंदाज करता है।
6. आर्थिक मजबूरी
निर्भरता: छोटे देशों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को पूंजीवादी देशों की मदद और व्यापारिक संबंधों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे उनके लिए इस प्रणाली को चुनौती देना मुश्किल हो जाता है।
वैश्वीकरण: वैश्वीकरण ने आर्थिक नेटवर्क को इतना जटिल बना दिया है कि पूंजीवाद से हटने का मतलब बड़े आर्थिक संकट पैदा करना हो सकता है।
निष्कर्ष: लोग पूंजीवाद को इसलिए ढो रहे हैं क्योंकि यह विकल्पहीनता, आदत, और प्रचार का परिणाम है। लेकिन जैसे-जैसे पर्यावरणीय संकट, सामाजिक असमानता और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है, पूंजीवाद के खिलाफ प्रश्न उठने लगे हैं। इसे बदलने के लिए एक वैकल्पिक, न्यायसंगत और स्थायी मॉडल की जरूरत है; लेकिन वह मॉडल केवल तर्क और विचार से ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक क्रियान्वयन से सफल होगा।
चीन के पास कृषि योग्य भूमि की सीमित मात्रा होने के बावजूद, यह अपनी बड़ी आबादी के लिए खाद्यान्न उत्पादन में सफल रहा है।इसके पीछे कई प्रमुख तथ्य और तर्क हैं:
1. कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल: चीन के कुल भूभाग का केवल 7% ही कृषि योग्य है, जबकि यह विश्व की लगभग 20% आबादी का घर है। देश का बड़ा हिस्सा पहाड़ी, रेगिस्तानी, या कठोर जलवायु वाला है, जो खेती के लिए अनुपयुक्त है।
2. प्रभावी कृषि तकनीकें: चीन ने आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया है, जैसे उच्च उत्पादकता वाली फसलों का उपयोग, जैव-प्रौद्योगिकी, और सटीक सिंचाई। हरित क्रांति के तहत उन्नत बीजों और रसायनों का उपयोग व्यापक स्तर पर किया गया।
3. सघन कृषि प्रणाली: चीन में भूमि का अत्यधिक सघन उपयोग होता है। एक ही भूमि पर एक साल में कई फसलें उगाई जाती हैं (उदाहरण: धान और गेहूं की दोहरी फसल प्रणाली)
4. सरकारी नीतियां और निवेश: सरकार कृषि को प्राथमिकता देती है, जैसे सब्सिडी देना, सिंचाई परियोजनाएं बनाना, और खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता देना। “भूमि सुधार” जैसे कार्यक्रमों के जरिए कृषि भूमि का कुशल उपयोग सुनिश्चित किया गया।
5. खाद्य आयात का सहारा: सीमित भूमि के कारण चीन कुछ खाद्य पदार्थों का आयात करता है, विशेष रूप से सोयाबीन, मक्का आदि। आयातित फसलों का उपयोग घरेलू उत्पादन को समर्थन देने के लिए किया जाता है।
6. उन्नत प्रबंधन प्रणाली: कृषि में जल और उर्वरकों का कुशल प्रबंधन चीन की सफलता का एक बड़ा कारण है। खाद्य उत्पादन और वितरण प्रणाली को सुव्यवस्थित किया गया है ताकि नुकसान कम हो।
7. आर्थिक और प्रौद्योगिकीय विकास: चीन ने आर्थिक सुधारों के जरिए कृषि क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन दिया। स्मार्ट खेती (ड्रोन, AI, IoT) का उपयोग करके उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।
निष्कर्ष: चीन की उपलब्धि उसके किसानों की मेहनत, सरकार की नीतियों और आधुनिक प्रौद्योगिकी का समन्वय है। सीमित संसाधनों के बावजूद यह खाद्यान्न उत्पादन के मामले में लगभग आत्मनिर्भरता बनाए रखने में सक्षम हुआ है।
(ठाकुर प्रसाद का लेख)
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