कितनी जहरीली है जातिवादी मानसिकता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं। परंतु मेरी राय में देश के आत्मनिर्भर बनने की राह में अनेक बाधाएं हैं। जब तक इन बाधाओं को दूर नहीं किया जाता देश का आत्मनिर्भर बनना कठिन है। इन बाधाओं में साम्प्रदायिकता और जातिवाद प्रमुख हैं। जातिवाद का जहर कितना गंभीर है इसे दर्शाने वाली एक घटना आज सामने आई है।

समाचारपत्रों में प्रकाशित खबर के अनुसार जबलपुर के तिलवारा क्षेत्र के रमनगरा में अलग-अलग जातियों के एक युवक एवं युवती ने प्रेम विवाह किया। परंतु इस विवाह से युवती का भाई आक्रोशित था। इसके चलते उसने अपनी बहन के पति अर्थात अपने बहनोई का सिर और एक हाथ सरेआम काट दिया। उसका आक्रोश घृणा के वशीभूत इतना भयानक था कि उसने अपने बहनोई का कटा हुआ सिर और हाथ एक बोरे में रखा और उसे लेकर पुलिस थाने पहुंच गया। वहीं इस घटना की खबर सुनते ही उसकी बहन ने आत्महत्या कर ली।

हमारे देश में आए दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। विभिन्न धर्मों, जातियों और यहां तक कि एक ही गोत्र के युवक-युवतियों के विवाह का कई बार हिंसक अंत होता है। यद्यपि संविधान में जाति,धर्म,लिंग आधारित भेदभाव की मनाही है परंतु संविधान लागू होने के 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी हम इन बुराइयों को समाप्त नहीं कर पाए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हमने न तो इन बुराइयों के बारे में देश के नागरिकों को जागरूक किया है और ना ही इनके विरूद्ध अभियान चलाया है। उल्टे,राजनीतिक मतभेदों के बावजूद जाति के मंच पर समान जाति वाले एक हो जाते हैं।

यह राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने वाला सबसे बड़ा कलंक है। इस बात की पूरी संभावना है कि तथाकथित लव जिहाद को नियंत्रित करने का दावा करने वाले नए कानून से इस गलत प्रवृत्ति को और बल मिलेगा। 

(एलएस हरदेनिया स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और आजकल भोपाल में रहते हैं।)   

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