तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर केंद्र सरकार एक बार फिर बैकफुट पर आ गई है। केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों की निगरानी के लिए सोशल मीडिया एजेंसी की सेवा लेने के अपने प्रस्ताव को टाल दिया है।
यूआईडीएआई ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि उसने विवादास्पद ‘सोशल मीडिया निगरानी एजेंसी’ के लिए बोलियां आमंत्रित करने के लिए निविदा वापस ले ली हैं। प्राधिकरण ने यह भी कहा है कि यह भविष्य में इस तरह की निविदा जारी नहीं करेगा।
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिका में यूआईडीएआई के फैसले को डिजिटल निजता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में चुनौती दी गई थी। महुआ मोइत्रा ने याचिका में उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया था कि वह 18 जुलाई को जारी किए गए प्रस्ताव को रद्द करें, क्योंकि ये अनुच्छेद 14 (समानता), 1 9 (1) (ए) (भाषण की स्वतंत्रता) और संविधान के 21 (जीवन, स्वतंत्रता और निजता) का उल्लंघन है।
याचिका में आरोप कि प्राधिकरण सोशल मीडिया की निगरानी करना चाहता है। याचिका में मोइत्रा ने कहा कि यूआईडीएआई की परियोजना एक अन्य नाम से सिर्फ एक और सोशल मीडिया निगरानी केंद्र थी, जिसके लिए निविदा सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा मंगाई गई थी और बाद में दायर जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दिए जाने पर वापस ले ली गई थी।
दरअसल यूआईडीएआई ने पिछले साल जुलाई में एक ऐसी एजेंसी के लिए बोली आमंत्रित करने के लिए निविदा जारी की थी, जिसमें ‘ऑनलाइन बातचीत को ट्रैक और मॉनिटर करने’ की तकनीकी क्षमता हो, इस तरह की सभी बातचीत का विश्लेषण करें और विसंगति को चिह्नित करें। यूआईडीएआई ने दावा किया था कि इस सोशल मीडिया मॉनिटरिंग एजेंसी का इस्तेमाल केवल आधार से जुड़ी जन भावनाओं को समझने और आधार परियोजना से जुड़ी गलत धारणाओं और गलतफहमियों को दूर करने के लिए किया जाएगा।
वर्तमान मामले में कई सुनवाई होने के बाद यूआईडीएआई ने जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ के समक्ष कहा कि ये निविदा समाप्त हो गई है और यूआईडीएआई की निविदा को पुनर्जीवित करने या समान निविदा जारी करने की कोई योजना नहीं है। निजाम पाशा और रंजीता रोहतगी के साथ उपस्थित वरिष्ठ वकील डॉ. अभिषेक सिंघवी ने पीठ से अनुरोध किया कि यूआईडीएआई द्वारा दिए गए बयानों को आदेश में दर्ज किया जाए और बयान के संदर्भ में जनहित याचिका का निपटारा किया जाए।
यह दूसरी बार है जब केंद्र सरकार ने कृष्णानगर की सांसद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सोशल मीडिया निगरानी की अपनी योजनाओं को वापस लिया है। पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जोहेब हुसैन की ओर से दिए गए प्रतिवेदन पर संज्ञान लिया कि यूआईडीएआई की न तो इस परियोजना को लेकर कोई योजना है न ही उसे आगे बढ़ाने का कोई इरादा है। हुसैन ने शुरू में ही अदालत को दी जानकारी में बताया कि यूआईडीएआई ने इस परियोजना पर आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है और अनुरोध प्रस्ताव का समय बीत चुका है।
जस्टिस कौल और जस्टिस जोसफ की पीठ ने तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की उस याचिका का निस्तारण किया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सोशल मीडिया निगरानी एजेंसी की तैनाती का मकसद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर निगरानी बढ़ाना है।
यूआईडीएआई द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्मों जैसे ट्विटर, फेसबुक, यू ट्यूब, गूगल प्लस आदि पर आधार से संबंधित गतिविधियों की निगरानी के लिए एक निजी एजेंसी की सेवाएं लेने के कथित प्रस्ताव के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एजी वेणुगोपाल की सहायता मांगी थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि मामला गंभीर है, क्योंकि इस मुद्दे में निजता का मौलिक अधिकार शामिल है, जिसका भारत का विशिष्ट पहचान विकास प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा उल्लंघन किया जा रहा है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा था कि सूचना प्रसारण मंत्रालय ने नागरिकों की सोशल मीडिया सामग्री की निगरानी के लिए सोशल मीडिया केंद्र बनाने के लिए एक समान अधिसूचना जारी की थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा अदालत को दिए गए आश्वासन के अनुसार पिछले महीने ये अधिसूचना वापस ले ली गई थी, इसलिए हमें एजी को इस मामले में सुनना है। इससे पहले ऐसी ही याचिका पर केंद्र सरकार ने कहा था कि वो सोशल मीडिया की निगरानी नहीं करेगी। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि उसने सोशल मीडिया कम्युनिकेशन हब स्थापित करने के प्रस्ताव को वापस ले लिया है।
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा था कि क्या सरकार सर्विलांस स्टेट बनाना चाहती है? तृणमूल कांग्रेस की विधायक महुआ मोइत्रा का कहना था कि सोशल मीडिया की निगरानी के लिए केंद्र यह कार्रवाई कर रहा है। इसके बाद ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ईमेल में मौजूद हर डेटा तक केंद्र की पहुंच हो जाएगी। निजता के अधिकार का यह सरासर उल्लंघन है। इससे हर व्यक्ति की निजी जानकारी को भी सरकार खंगाल सकेगी। इसमें जिला स्तर तक सरकार डेटा को खंगाल सकेगी।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)
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