केंद्र सरकार लटका देती है सुप्रीमकोर्ट के आदेश

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यदि राजसत्ता न चाहे या किसी निहित स्वार्थवश उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित दिशा निर्देशों का पालन न करे तो उच्चतम न्यायालय को उसी तरह कड़ी प्रतिक्रिया देनी पड़ती है जिस तरह उच्चतम न्यायालय के जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सूचना प्रौद्योगिकी कानून यानी आईटी एक्ट की धारा 66A को गैर-संवैधानिक घोषित किए जाने के बावजूद इसके तहत मुकदमे दर्ज किए जाने पर दी है। इसी तरह जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने सोमवार को भारत संघ द्वारा दायर उस विविध आवेदन (एमए) पर विचार करने से इंकार कर दिया, जिसमें फैसले में कुछ स्पष्टीकरण की मांग की गई थी, जिसमें सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया गया था। पीठ ने फैसला सुनाए जाने के बाद स्पष्टीकरण मांगने के लिए एमए दाखिल करने के फैशन पर नाखुशी व्यक्त की। पीठ ने कहा कि अगर फैसले के संबंध में कोई शिकायत है, तो इस पर पुनर्विचार के लिए ही उपयुक्त उपाय है।

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने सोमवार को राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार को पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें श्रेया सिंघल मामले के फैसले के तहत धारा 66 ए के प्रावधान के तहत प्राथमिकी के खिलाफ विभिन्न दिशा-निर्देश और गाइडलाइन मांगी गई हैं। पीठ ने कहा कि चूंकि यह मामला न केवल अदालतों से संबंधित है, बल्कि पुलिस से भी। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों और उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार को नोटिस जारी किया जाता है। यह आज से 4 सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए। रजिस्ट्री को नोटिस जारी होने पर दलीलों को संलग्न करना होगा।

पीठ ने कहा कि वह विस्तृत आदेश  पास करेगा ताकि आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत मुकदमे दर्ज करने का चलन हमेशा के लिए खत्म हो जाए। पीठ  ने कहा कि ऐसे नहीं चल सकता। हम कोर्ट और पुलिस के लिए समग्र आदेश पारित करेंगे। इसके साथ ही पीठ  ने इस मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान देशभर के हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को भी नोटिस जारी किया है।

कोर्ट के आदेश के जवाब में, केंद्र ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि पुलिस और सार्वजनिक आदेश राज्य के विषय हैं, श्रेया सिंघल के फैसले को लागू करने के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी, जिसने आईटी अधिनियम की धारा 66 ए को हटा दिया था, राज्य के पास है। इसके अलावा, कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी फैसले को लागू करने के लिए समान जिम्मेदारी साझा करती हैं। इसके बाद पीठ ने सोमवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश से जवाब दाखिल करने को कहा है।पीठ ने आईटी एक्ट 66ए का अभी तक होने वाले इस्तेमाल पर टिप्पणी की और कहा कि हम एक समग्र आदेश पारित करेंगे। अदालत ने तमाम राज्यों और यूटी को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए को 2015 में ही गैर-संवैधानिक ठहरा दिया था इसके बाद भी देशभर में हजारों केस इसी धारा के तहत दर्ज किए गए हैं।

अपने जवाबी हलफनामे में, पीयूसीएल ने कहा कि श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय के फैसले को प्रभावी ढंग से लागू करने की दिशा में केंद्र द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं। पीठ पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) द्वारा दायर उस आवेदन पर सुनवाई कर रही थी जिसमें धारा 66ए के रद्द किए गए प्रावधान के तहत प्राथमिकी के खिलाफ विभिन्न दिशा-निर्देश मांगे गए थे। जस्टिस नरीमन ने याचिका पर विचार करते ही कहा, “अद्भुत। मैं बस इतना ही कह सकता हूं। श्रेया सिंघल 2015 का फैसला है। जो चल रहा है वह भयानक है।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय  ने 5 जुलाई को सुनवाई में यह जानकर हैरानी जताई थी कि छह साल पहले निरस्त किए गए कानूनी प्रावधान के तहत मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। फिर केंद्र सरकार ने 14 जुलाई को राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वो पुलिस को आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया करे। यह धारा ऑनलाइन टिप्पणी करने से जुड़ी है। 2015 में उच्चतम न्यायालय  ने ऑनलाइन ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने को अपराध की श्रेणी में डालने वाली विवादित धारा 66ए को खत्म कर दिया था।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की याचिका में केंद्र सरकार को धारा 66ए के तहत एफआईआर दर्ज करने के खिलाफ सभी पुलिस स्टेशनों को सलाह देने की मांग की गई थी, जिसे उच्चतम न्यायालय  ने 24 मार्च 2015 श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ मे असंवैधानिक घोषित कर दिया था। याचिका में कहा  गया है कि आईटी अधिनियम की धारा 66 ए न केवल पुलिस स्टेशनों के भीतर बल्कि देश भर के ट्रायल कोर्ट के मामलों में भी उपयोग में है।

याचिका में ज़ोंबी ट्रैकर वेबसाइट के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा गया है कि 10 मार्च, 2021 तक, लगभग 745 मामले अभी भी लंबित हैं और जिला अदालतों के समक्ष सक्रिय हैं, जिनमें अभियुक्तों पर आईटी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत आरोप लगाए जाते हैं।

पीयूसीएल ने केंद्र सरकार को सभी प्रमुख समाचार पत्रों में अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं में प्रकाशित करने का निर्देश देने की भी मांग की, जिसमें आम जनता को सूचित किया गया कि धारा 66 ए को समाप्त कर दिया गया है और अब यह कानून नहीं है। एनजीओ ने 2018 में इसी तरह की याचिका दायर कर 2015 के फैसले के अनुपालन की मांग की थी।

15 फरवरी, 2019  को उच्चतम न्यायालय ने श्रेया सिंघल के फैसले की प्रतियां इस देश के प्रत्येक उच्च न्यायालय द्वारा सभी जिला अदालतों को उपलब्ध कराने का निर्देश देते हुए मामले का निपटारा किया था ।

  (वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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