उत्तराखंड में बीती सात फरवरी को चमोली के तपोवन में ग्लेशियर टूटने से हुए हादसे में भारी जान-माल की हानि के मामले में एक-दूसरे के सर पर इसका ठीकरा फोड़ने की कवायद शुरू हो गई है। उच्चतम न्यायालय के जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने उत्तराखंड में कुछ दिनों पहले आई आपदा का संबंध सड़क चौड़ी करने से जोड़े जाने के चारधाम परियोजना समिति के अध्यक्ष के आरोपों का केंद्र को जवाब दाखिल करने की बुधवार को अनुमति दे दी। उत्तराखंड में चारधाम राजमार्ग परियोजना की निगरानी कर रही उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष ने उच्चतम न्यायालय को लिखे पत्र में आरोप लगाया कि पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण और सड़क को चौड़ा करने से हिमालयी पारिस्थितिकी को अपूरणीय नुकसान पहुंच रहा है, जिसके कारण चमोली जिले में अचानक बाढ़ रूपी आपदा आई।
उत्तराखंड में बीती सात फरवरी को चमोली के तपोवन में ग्लेशियर टूटने की घटना हुई थी। इससे आए जल प्रलय की चपेट में सैकड़ों गांव आ गए थे। इस हादसे के शिकार अभी तक 58 लोगों के शव बरामद किए गए हैं, जबकि डेढ़ सौ से ज्यादा लोग लापता हैं। इस आपदा में ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। लापता लोगों की तलाश में यहां टनल में मलबा हटाने का काम चल रहा है।
अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) केके वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष के पत्र का जवाब दाखिल करना चाहेंगे। वेणुगोपाल ने कहा कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सरकार को लिखे अपने पत्र में (हालिया) आपदा का संबंध चारधाम परियोजना से होने का जिक्र किया है। उनकी दलील पर पीठ ने कहा कि आप इस पर जवाब दाखिल करिए। साथ ही, पीठ ने विषय की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए सूचीबद्ध कर दी।
उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने अदालत को लिखे पत्र में कहा कि वर्ष 2013 में केदारनाथ में हुए हादसे के बाद एक विशेषज्ञ समिति ने पनबिजली परियोजनाओं के प्रभावों पर प्रकाश डालते हुए एक रिपोर्ट सौंपी थी, और उसमें व्यक्त की गई चिंताओं और अनुशंसाओं पर ध्यान दिया जाता तो ऋषिगंगा और तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजनाओं में जान-माल के व्यापक नुकसान से बचा जा सकता था। उपलब्ध साक्ष्यों (सबूतों) और 2013 में हुए हादसे के मद्देनजर वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारिक हमारी रिपोर्ट की सराहना करने के बजाय, यह बेहद खेदजनक है कि 15 जनवरी, 2021 के अपने हलफनामे में रक्षा मंत्रालय ने मकसद की असंवेदनशीलता पर सवाल उठाए।
रवि चोपड़ा ने उच्चतम न्यायालय को लिखा है कि पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण और सड़क को चौड़ा करने से हिमालयी पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) को अपूरणीय नुकसान पहुंच रहा है, जिसके कारण चमोली जिले में अचानक बाढ़ रूपी आपदा आई। चोपड़ा ने न्यायालय से मांग की है कि रक्षा मंत्रालय उनके एवं समिति के दो अन्य सदस्यों के खिलाफ लगाए गए इन आरोपों को वापस ले। दरअसल, सड़क को चौड़ा करने के कार्य और राज्य में आई हालिया आपदा के बारे में चोपड़ा ने 13 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था और इसमें कई आरोप लगाए गए हैं।
केंद्र ने अदालत से कहा कि चारधाम हाईवे परियोजना का धौलीगंगा हादसे से कोई लेना-देना नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने पीठ से उच्च अधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने सरकार को लिखे पत्र में आपदा का संबंध चारधाम परियोजना से होने का जिक्र किया और कहा कि चोपड़ा का दावा सही नहीं है। चोपड़ा ने स्वयं सरकार को यह पत्र लिखा है और वो इस पर रक्षा मंत्रालय का जवाब लिखित में देंगे।
चोपड़ा ने कहा है कि चार धाम परियोजना के तीन राजमार्गों पर कई गंभीर भूस्खलन संभावित स्थान एवं सड़क का हिस्सा है, जिनकी पहचान रक्षा मंत्रालय ने ‘डिफेंस फीडर रोड’ के रूप में की है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के जो आंकड़े समिति को सौंपे गए हैं, उनमें 574 किमी (राष्ट्रीय राजमार्ग 94: ऋषिकेश से उत्तरकाशी तक, राष्ट्रीय राजमार्ग 58: ऋषिकेश से माना तक और राष्ट्रीय राजमार्ग 125: टनकपुर से पिथौरागढ़ तक) में 161 संवेदनशील स्थानों की पहचान की गई है, जो प्रत्येक 3.5 किमी पर है।
पत्र में कहा गया है कि ऋषि गंगा नदी घाटी में हालिया आपदा आई, यह स्थान ‘मेन सेंट्रल थ्रस्ट’ के उत्तरी क्षेत्र में है जो अत्यधिक भूस्खलन, अचानक आने वाली बाढ़ और भूकंप संभावित क्षेत्र है। भारत-चीन सीमा की ओर जाने वाली एक डिफेंस रोड का एक हिस्सा और ऋषि गंगा नदी पर बना एक पुल भी बह गया है, जिससे क्षेत्र में आने वाली आपदा के बारे में हमारी दलील की विश्वसनीयता बढ़ जाती है।
पत्र में दावा किया गया है कि वनों की कटाई, पहाड़ी ढाल को काटा जाना, चट्टानों को तोड़ने के लिए विस्फोट करना, नदियों पर बांध बनाने, अत्यधिक पर्यटन आदि से इस क्षेत्र में आपदा की संभावना बढ़ने वाली है। इन गतिविधियों का नजदीक के ग्लेश्यिर पर प्रभाव पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने 18 जनवरी को संबद्ध पक्षों से कहा था कि उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा दाखिल रिपोर्ट पर यदि उन्हें कोई आपत्ति है, तो वे अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं। केंद्र ने न्यायालय से 21 सदस्यीय समिति की बहुमत वाली रिपोर्ट स्वीकार करने का अनुरोध किया था, जिसमें (रिपोर्ट में) यह सिफारिश की गई थी कि रणनीतिक जरूरतों और बर्फ हटाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए दो लेन वाली सड़क बनाई जाए, जिस पर 10 मीटर चौड़ी ‘कैरियेज वे’ हो।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा था कि पिछले साल दो दिसंबर को शीर्ष न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अनुपालन में समिति ने 15-16 दिसंबर 2020 को बैठक की और सड़क की चौड़ाई पर चर्चा की। इस बारे में रिपोर्ट शीर्ष न्यायालय को पिछले साल 31 दिसंबर को सौंपी गई। हलफनामे में कहा गया है कि समिति की रिपोर्ट में सड़क की चौड़ाई के मुद्दों पर एक बार फिर प्राथमिक तौर पर भिन्न-भिन्न विचार नजर आए, 16 सदस्य और नामित सदस्यों ने सिफारिश की कि भारतीय सड़क सम्मेलन: 52-2019 के प्रावधानों तथा 15 दिसंबर 2020 को सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी संशोधित परिपत्र के मुताबिक 10 मीटर चौड़े कैरियेज वे के साथ दो लेन वाली सड़क बनाई जाए।
साथ ही, भूस्खलन नियंत्रण उपायों के लिए उपयुक्त सुरक्षा मानदंड अपनाए जाएं। केंद्र ने कहा है कि बहुमत वाली रिपोर्ट में एक ओर जहां देश की सामाजिक, आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की रक्षा भी की गई है।
केंद्र ने यह भी कहा कि परियोजना के समर्थक चारधाम परियोजना का पर्यावरण और सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम करने तथा परियोजना का क्रियान्वयन खड़ी ढाल वाली घाटी के अनुरूप करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, ताकि किसी नये भूस्खलन को टाला जा सके और संवेदनशील हिमालयी घाटियों की सुरक्षा एवं संरक्षण सुनिश्चित हो सके।
गौरतलब है कि अगस्त 2019 में शीर्ष न्यायालय ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के एक आदेश में बदलाव करते हुए चारधाम परियोजना के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया था। साथ ही, यह कहा था कि एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित की जाए, जो चारधाम परियोजना से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं पर गौर करे।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)