पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम सीबीआई और ईडी के चक्रव्यूह में पूरी तरह फंस गए हैं। पहले सीबीआई फिर ईडी का खेल पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के मामले में शुरू हो गया है। इसमें पहले सीबीआई हिरासत में लेती है और हिरसत के बाद आरोपी को तिहाड़ जेल भेजा जाता है फिर अगर ज़मानत मंजूर हो गयी तो रिहा होते ही तिहाड़ के गेट से ईडी आरोपी को अपनी हिरासत में ले लेती है फिर ईडी के मामले में आरोपी की तिहाड़ जेल पूछताछ के बाद भेज दिया जाता है। अब आरोपी को नए सिरे से ईडी मामले में जमानत लेनी पड़ती है और फिर तिहाड़ के गेट पर नया मामला लेकर कोई न कोई एजेंसी खड़ी मिलती है। इस तरह जेल से बाहर आने में कम से कम चार छह महीनें तो लग ही जाते हैं। बाद में ट्रायल होने पर अधिकांश मामले अदालत में ठहर नहीं पाते और आरोपी बरी हो जाते हैं। लेकिन तब तक उसकी प्रतिष्ठा पूरी तरह धूमिल हो जाती है और दोष सिद्धि में असफल सरकारी एजेंसियों के जिम्मेदार अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
लगभग 15 दिन से दिल्ली उच्च न्यायालय, सीबीआई अदालत और उच्चतम न्यायालय के बीच शटल कॉक की तरह फेंके जाने के बाद अंततः सीबीआई हिरासत में रहे पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को विशेष अदालत ने 14 दिन के रिमांड पर तिहाड़ जेल भेज दिया। आईएनएक्स मीडिया केस में सीबीआई हिरासत की अवधि खत्म होने के बाद चिदंबरम को गुरुवार को कोर्ट में पेश किया गया था। उन्हें 19 सितंबर तक तिहाड़ जेल में रहना होगा। न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के बारे में चिदंबरम से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मुझे केवल देश की अर्थव्यवस्था की चिंता है।
राउस एवेन्यू कोर्ट में सुनवाई के दौरान चिदंबरम के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि उनके मुवक्किल प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने सरेंडर करने के लिए तैयार हैं। वे ईडी के सामने सरेंडर करेंगे और ईडी उन्हें हिरासत में ले लेगा। चिदंबरम ने भी कहा कि मेरे खिलाफ कुछ नहीं मिला। जब मैं ईडी के सामने सरेंडर को तैयार हूं तो मुझे जेल क्यों जाना चाहिए? इस पर सीबीआई की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी हमारी दलील मानी है कि चिदंबरम सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। दरअसल यदि तब तक चिदंबरम को हिरासत में नहीं लेगा जब तक उनकी सीबीआई मामले में ज़मानत नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट भी ईडी के दावों से सहमत थी
इससे पहले चिदंबरम ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से जुड़े मामले में दिल्ली हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत नहीं मिलने को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को अर्जी खारिज करते हुए कहा कि मनी ट्रेल को उजागर करना जरूरी है। उच्चतम न्यायालय भी ईडी के उस दावे से सहमत थी कि आरोपी को गिरफ्तार कर पूछताछ जरूरी है। जमानत देने से जांच पर असर पड़ सकता है। सीबीआई की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चिदंबरम को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया जाना चाहिए। वे ताकतवर इंसान हैं, इसलिए उन्हें खुला नहीं छोड़ना चाहिए। इस पर चिदंबरम के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हमने सबूतों से छेड़छाड़ की, इसका कोई सबूत नहीं है।
जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि आर्थिक अपराध से अलग तरीके से निपटा जाना चाहिए, क्योंकि यह देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। अग्रिम जमानत को किसी को उसके अधिकार के तौर पर नहीं दिया जा सकता। ये मामलों पर निर्भर करता है। इस केस में यह उचित नहीं है। एजेंसी को जांच के लिए पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। इस स्थिति में जमानत देने से जांच प्रभावित हो सकती है। पीठ ने कहा कि अदालत का काम जांच प्रक्रिया की निगरानी करना है, ताकि कानूनी प्रावधानों का कोई उल्लंघन न करे। आरोपियों से पूछताछ और उससे पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति का निर्णय जांच एजेंसी पर ही छोड़ देना चाहिए। जांच पुलिस का विशेषाधिकार है, अदालतों को उसमें दखल नहीं देना चाहिए।
पीठ ने कहा कि हमने प्रवर्तन निदेशालय की केस डायरी देखी है और मनी ट्रेल को उजागर करना जरूरी है। ईडी के दावे से सहमत हैं कि मामले में आरोपी को गिरफ्तार कर पूछताछ जरूरी है। ईडी ने सीलबंद लिफाफे में कुछ दस्तावेज दिए थे। लेकिन हमने उन्हें नहीं देखा। इसके अलावा पीठ ने तीन तारीखों पर ईडी से हुई पूछताछ का ब्यौरा देने से जुड़ी अर्जी भी रद्द कर दी।
इसके पूर्व दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 अगस्त को याचिका रद्द करते हुए कहा था कि शुरुआती तौर पर चिदंबरम भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में किंगपिन लगते हैं। वे मौजूदा सांसद हैं, सिर्फ इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है। प्रभावी जांच के लिए हिरासत में लेकर पूछताछ जरूरी है। इस मामले में गिरफ्तारी से राहत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा।
एयरसेल-मैक्सिस केस में पिता-पुत्र को अग्रिम जमानत मिली
सीबीआई अदालत ने एयरसेल-मैक्सिस केस में चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति को अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट ने यह फैसला ईडी और सीबीआई दोनों से जुड़े मामलों में दिया है। साथ ही अदालत ने चिदंबरम और कार्ति को निर्देश दिया है कि वे जांच एजेंसियों का सहयोग करें। जज ओपी सैनी ने ईडी से कहा कि 2018 में केस दर्ज करने के बाद आपने जांच के लिए कई बार तारीखें बढ़वाई। जांच में वैसे ही काफी देरी हो चुकी है और शुरुआत से ही सभी दस्तावेज आपके पास हैं। इसकी कोई संभावना नहीं है कि चिदंबरम ने ऐसा कोई अपराध किया है, जबकि वे सरकार में किसी पद पर नहीं हैं। उन पर 1.13 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप गंभीर नहीं हैं। जबकि दयानिधि मारन के खिलाफ रिश्वत का आरोप है, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया।
आरोप है कि चिदंबरम ने वित्त मंत्री रहते हुए रिश्वत लेकर आईएनएक्स को 2007 में 305 करोड़ रु. लेने के लिए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड से मंजूरी दिलाई थी। जिन कंपनियों को फायदा हुआ, उन्हें चिदंबरम के सांसद बेटे कार्ति चलाते हैं। सीबीआई ने 15 मई 2017 को केस दर्ज किया था। 2018 में ईडी ने भी मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। एयरसेल-मैक्सिस डील में भी चिदंबरम आरोपी हैं। इसमें सीबीआई ने 2017 में एफआईआर दर्ज की थी।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार हैं आप आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)