चंदौली। वाराणसी मंडल के पिछड़े जनपद चंदौली में कुपोषण मिटाने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं। इसके लिए राज्य शासन की ओर से जनपद में 1873 आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए हैं। जहां पर सरकार की योजनाओं के माध्यम से कुपोषण जैसी भयावह बीमारी को रोकने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं।
लेकिन, नियमित निगरानी नहीं होने से जमीनी स्तर पर कई जरूरतमंद लाभार्थी अनुपूरक पोषाहार व बाल पुष्टाहार से वंचित हो जा रहे हैं। नियत तिथि पर यानि माहवार वितरण में इधर-उधर होने पर लाभार्थी गफलत में योजना का लाभ उठाने से वंचित रह जा रहे हैं।
नतीजन जनपद में अति कुपोषित बच्चों की तादात ढाई हजार के आंकड़े को पार गया है।
जिला कार्यक्रम अधिकारी बाल विकास चंदौली कार्यालय से दी गई जानकारी के अनुसार चंदौली जनपद में कुल 1873 आंगनबाड़ी केंद्रों पर आंगनबाड़ी 1641, सहायिका 1650 और कार्यकत्री 1317 सेवा दे रही हैं। जनपद में योजना से जुड़े कुल बच्चों की तादात 230088 है।
इसमें गर्भवती महिलाएं 14322 एवं धात्री (स्तनपान करने वाली महिलाएं) की संख्या 11518 है। जुलाई 2024 के आंकड़ों के अनुसार जिले में अति कुपोषित (लाल रंग ) बच्चों की संख्या 2739 और (पीला रंग ) यानी आंशिक कुपोषित बच्चे 20675 हैं।
लिहाजा, पहले से ही बेहद गरीबी और प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवन गुजार रहे लाभार्थी के बच्चे की थाली में पौष्टिक आहार नहीं पहुंच पा रहा है। इस आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि इनके बच्चों के शारीरिक विकास व मानसिक विकास मानक से पिछड़ जाएगा। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अथक प्रयासों व योजना पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी जिले से कुपोषण कैसे मिटेगा ?
सीन-1
पिछले माह नहीं मिला पोषण आहार
बरहनी विकासखंड क्षेत्र के चौंतीस वर्षीय अनवर बेहद गरीब हैं। उनका परिवार घास-फूस और तिरपाल के छप्पर में गुजारा करता है। परिवार के लिए दो वक्त की रोटी के लिए दिनभर मेहनत-मजदूरी करते हैं।
इससे समय मिला तो खाने-पीने का ठेला गांव-गांव लेकर जाते हैं। इसमें कई बार घर लौटने के क्रम में रात भी हो जाती है। इससे जो आमदनी होती है, उसी से बमुश्किल गुजारा हो पाता है।
बड़ी मुश्किल से मिल पाती है दो वक्त की रोटी
30 अगस्त दिन शुक्रवार को अपने बिटिया के साथ प्राथमिक विद्यालय स्थित आंगनबाड़ी से पुष्टाहार लेकर लौटने के क्रम में अनवर, बाल पुष्टाहार या अनुपूरक पोषाहार आपको मिलता है? सवाल के जवाब में वह “जनचौक” को बताते हैं कि “ 30 अगस्त को राशन (आंगनबाड़ी से मिलने वाला पुष्टाहार) मिला है”।
अनवर कहते हैं “पिछले महीने मेरे बच्चों को राशन नहीं मिल सका है। सरकार तो हमारे जैसे गरीबों के बच्चों को बिटामिन वाला भोजन देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, लेकिन कई बार उनका लाभ हमलोगों तक नहीं पहुंच पाता है। बहुत गरीबी है, जीवन बहुत कठिन संघर्ष में कट रहा है”।
वे बताते हैं कि परिवार में पत्नी व बच्चों समेत को पांच सदस्य है। इनके दो वक्त की दाल-रोटी के बंदोबस्त के लिए जो काम-मजदूरी मिलती है कर लेता हूं। बाकी, खाली रहने पर गोलगप्पे ठेला पर रखकर गांव-गांव बेचने निकल पड़ता हूं। जो थोड़ी-बहुत आमदनी होती है, उसी से जीवन की नैया पार लग रही है। मेरा परिवार तिरपाल में रहता है”।
तो … पालन-पोषण का फिर तो अल्लाह ही मालिक
कुछ याद करते हुए अनवर कह पड़ते हैं “साल 2020-21 के मानसून सीजन में आंधी-तूफान में बांस-तिरपाल आशियाना हम ही लोगों के ऊपर गिर गया। जिसमें परिवार के सभी सदस्य दब गए थे। गांववालों ने बड़ी मुश्किल से मलबे से हमलोगों को निकला। इस हादसे में मेरी छाती की हड्डी यानी पसली टूट गई थी। इलाज के लिए कर्ज लेने पड़े और कई परेशानियों से मेरे परिवार को गुजरना पड़ा”।
आगे उन्होंने कहा कि “मैने कई बार आवास योजना के लिए लिखा-पढ़ी कर भेजा\ऑनलाइन किया, लेकिन अबतक आवास योजना का लाभ नहीं मिल सका है। साहब, अब आप ही बताइये, यदि हम जैसे गरीबों के बच्चों के पुष्टाहार\अनुपूरक आहार समय से नहीं मिलेगा, तो उनके पालन-पोषण का फिर तो अल्लाह ही मालिक है”।
केस-2
अप्रैल से अबतक सिर्फ दो ही बार मिला राशन
मानिकपुर सानी गांव की विधवा बसंती देवी बुधवार को आंगनबाड़ी से राशन लेकर लौट रही थी। वह राशन (बाल पुष्टाहार) वितरण के लेट-लतीफी से परेशान हैं।
बसंती “जनचौक” से कहती हैं कि, मेरे बेटे कमलेश के तीन बच्चे हैं। उनका बाल\मातृत्व पुष्टाहार (समूह सखी के सहयोग से बांटा जाने वाला पुष्टाहार) लेकर लौट रही हूं। फगुआ से पहले फिर रामनवमी (अप्रैल) के बाद सिर्फ दो ही बार राशन मिल सका है। इसके बाद फिर जुलाई में मिला। अब बुधवार यानि 4 सितम्बर को मिल रहा है।
“इस बीच मई का राशन कहां गया ? जब स्कूल बंद हो जाता है तो गार्जियन को बच्चों की पूरी फ़ीस देनी पड़ती है। सरकार जरूर राशन भेजी होगी। या किसी कारण नहीं भेजी हो तो कोई बात नहीं। अन्यथा, जब राशन आया तो हमलोगों को मिला नहीं, तो फिर कहां चला गया ?
केस-3
पोषाहार बंटा ही नहीं मैसेज आया कि आपको राशन मिल गया है
बसंती आगे कहती हैं कि “आगनबाड़ी से मिलने वाला पोषाहार मिला 30 अगस्त को। मेरे पड़ोस में रहने वाले दीपक गुप्ता ने मुझसे पूछ कि “बड़ी मम्मी बच्चों का पोषाहार मिल गया क्या ? उन्हें बताया कि अभी कोई राशन नहीं मिला है। तब दीपक ने अपने मोबाइल फोन में दिखाया कि – देखिये, 22 अगस्त को मैसेज आया है।
इसमें लिखा है कि “सही पोषण देश रौशन, प्रिय (लाभार्थी बच्चे का नाम), 25 दिनों अगस्त-2024 के लिए आपका टेक होम राशन (THR) राशन आज (22 अगस्त को) दे दिया गया है। यदि आपको अपना (THR) प्राप्त नहीं हुआ है या आप अपनी प्रतिक्रिया साझा करना चाहते हैं, तो कृपया पोषण हेल्पलाइन 14408 पर संपर्क करें। महिला एवं बल विकास मंत्रालय।” यह बात आई-गई हो गई।
बहरहाल, इस तरह के मैसेज अन्य कई लोगों के मोबाइल पर आये होंगे। एक लाभार्थी बच्चे के पिता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि “मेरे मोबाइल पर भी राशन वितरण का मैसेज आया, लेकिन राशन नहीं मिला। मैंने अभी भी इस मैसेज की मूल कॉपी और स्क्रीनशॉट रखा हूं। इसके ठीक आठवें दिन पोषाहार वितरित हुआ। इसकी पुष्टि ग्रामीणों से पूछकर की जा सकती है।”
बहरहाल, “मैंने सोचा, मेरे घर से राशन लेने आंगनबाड़ी तक मेरी मां जाती है। कई दोनों से नानी के यहां किसी की तबियत ख़राब होने पर वह नानी के गांव गई हैं, तो आखिर राशन लेने कौन गया ? पापा भी घर पर नहीं हैं। इस पशोपेश की स्थिति में मैंने स्थानीय आगनबाड़ी को फोन किया, उन्होंने बताया कि “राशन अभी नहीं वितरित हुआ है। जल्द ही वितरित कर दिया जाएगा। हमलोगों के ऊपर के अधिकारी के कहने पर बिना वितरण किये ही, लाभार्थियों को राशन वितरण का डाटा अपडेट कर दिए हैं।”
बठ्ठी-कमरौर निवासी राजन कुमार ने बताया कि “मेरे भैया रोहित कुमार के 8-9 महीने के बच्चे योगी का तीन- चार दिन पहले राशन\बाल पोषाहार मिला है। यह राशन तीन महीने बाद मिला है। ऐसे में जब पोषाहार ही समय से बच्चे को नहीं मिलेगा, तो मानक के अनुरूप उसके तंदुरुस्ती को कैसे कायम किया जा सकता है ?
राजन बताते हैं, “गांव में चमार समाज, बिन्द समाज, मुस्लिम, डोम, कोयरी-कुशवाहा, नाई और तेली-गुप्ता समेत कई पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं। ये लोग मजदूरी, कृषि और अन्य कार्य कर परिवार का पेट पालते हैं। इसमें चमार समाज के लोग आर्थिक और सामाजिक रूप से मुख्यधारा से बहुत दूर है”।
उनका कहना है कि “राशन\बाल पोषाहार इनके बच्चों को खुराक में मिलना इन्हें कुपोषण से बचा सकता है, लेकिन जब तीन-चार महीने पर मिलेगा तो देश के नौनिहालों के सेहत को कैसे चुस्त-दुरुस्त रखा जा सकता है? यह बड़ा सवाल और समाज में चिंता का विषय है।”
क्या है अनुपूरक पोषाहार योजना
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 07 माह से 06 वर्ष के कुपोषित तथा अति कुपोषित बच्चों, गर्भवती तथा धात्री माताओं एव किशोरी बालिकाओं को कुपोषण दूर करने के उद्येश्य से अनुपूरक पुष्टाहार उपलब्ध कराया जाता है। विकेन्द्रीकृत व्यवस्था के अन्तर्गत वर्तमान समय में पूरे प्रदेश की 897 परियोजनाओं में आंगनवाड़ी केन्द्रों पर मातृ समितियों के माध्यम से 03 से 06 वर्ष आयु के बच्चों को गरम पका-पकाया खाना (हाट कुक्ड फूड) उपलब्ध कराया जा रहा है।
सामान्य बच्चों को कम से कम 500 कैलोरी ऊर्जा और 12-15 ग्राम प्रोटीन, कुपोषित बच्चों को कम से कम 300 कैलोरी ऊर्जा और 08-10 ग्राम प्रोटीन, अति कुपोषित बच्चों, किशोरियों, गर्भवती तथा धात्री महिलाओं के लिये 600 कैलोरी ऊर्जा तथा 20 से 25 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन अनुपूरक पुष्टाहार में प्रतिदिन उपलब्ध कराने का मानक तैयार किया गया है।
लापरवाह अधिकारी-कर्मचारी पर हो कार्रवाई
भाकपा (माले) चंदौली जिला सचिव कॉमरेड अनिल पासवान ने “जनचौक” को बताया कि “बाल पोषाहार और राशन योजना खासकर वंचित और हाशिए पर रहने वाले समाज के बच्चों में पोषण पूरक हो, इसके लिए यह योजना प्रदेश-देश स्तर पर चलाई जा रही है।
देश की बड़ी आबादी के पात्र लोग इसका इस्तेमाल कर अपने बच्चों को कुपोषण से बचाने में संतोषजनक परिणाम मिल रहे हैं, लेकिन सूबे के पिछड़े और किसान-मजदूर बाहुल्य जनपद चंदौली में कुछेक-अधिकारी और कर्मचारियों की लापरवाही से पोषाहार योजना से चकिया, नौगढ़, बरहनी, धानापुर, सकलडीहा समेत सभी विकासखंडों में कई पात्र लाभार्थी समुचित रूप से योजना का लाभ उठाने से पिछड़ जाते हैं।”
खामियों को दूर किया जाए
“अभी एक समस्या देखने को मिल रही है कि राशन वितरण के पहले ही लाभार्थी बच्चों के अभिभावक के मोबाइल पर मैसेज भेजा जा रहा है कि आपके बच्चे का राशन दे दिया गया, जबकि सच्चाई यह है कि राशन एक हफ्ते-दस दिन बाद बांटा जा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बाद की तिथियों पर राशन लेने नहीं पहुंचने पर भी शासन को तो डाटा भेजा जा चुका है कि, राशन रिसीव कर लिया गया है। यह तो एक बड़ी लापरवाही है। इसे विभागीय स्तर पर तत्काल सुधार करना चाहिए।”
लेट-लतीफी से टूट जाता है पोषण चक्र
अनिल आगे कहते हैं “कई बार तो पोषाहार वितरण इतना लेट-लतीफी से की जाती है कि पोषाहार के अभाव में पौष्टिक चक्र टूट जाता है। इतना ही नहीं, बाल पोषाहार नहीं होने से भी अभिभावक भी बच्चों की खुराक पर ध्यान देना छोड़ देते हैं। ऐसे में अति कुपोषित और आंशिक कुपोषित बच्चों को मुख्यधारा में लाना और चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
“लिहाजा, योजना को लाभार्थियों तक पहुंचाने में लापरवाही बरतने व भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों को चिन्हित कर कार्रवाई करे। साथ ही साथ योजना की नियमित निगरानी और लाभार्थियों से समय-समय पर फीडबैक भी लेते रहे, ताकि खामियों को ठीक किया जा सके।”
कार्यालय में भी नहीं मिलीं डीपीओ
बाल पोषाहार के वितरण के संबंध में जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) चंदौली जया त्रिपाठी से बुधवार को फोन पर संपर्क करने किया गया तो उन्होंने दफ्तर में जानकारी देने के लिए बुलाया। गुरुवार को वे दफ्तर में नहीं मिलीं। फोन करने पर उन्होंने फोन भी नहीं उठाया।
कार्यालय में अपर संख्या अधिकारी दिलीप कुमार ने बताया कि “बाल\पोषाहार के वितरण में हो रही देरी के सम्बन्ध में निदेशालय को पत्र भेजा गया है। साथ ही योजना का लाभ लाभार्थियों को देने में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों पर जांच कर कार्रवाई की जायेगी।”
(पवन कुमार मौर्य चंदौली\वाराणसी के पत्रकार हैं)