Saturday, April 20, 2024

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ मौत-2: होमी जहांगीर भाभा की विमान दुर्घटना के पीछे था सीआईए का हाथ!

क्या आप जानते हैं कि अक्टूबर 1965, में डॉ होमी जहांगीर भाभा ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की थी कि अगर उन्हें अनुमति मिल जाती है, तो भारत के पास 18 महीने में परमाणु बम बनाने की क्षमता है। इसके ठीक तीन महीने के बाद होमी भाभा की 1966 में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। क्या यह षड्यंत्र था? या सिर्फ एक दुर्घटना? आप यह तो जानते ही होंगे कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम से अमेरिका इतना खफा है कि उसने ईरान पर तमाम प्रतिबन्ध लगा रखे हैं तब कल्पना कीजिये कि आज से 56 साल पहले वर्ष 1965 में उस पर भाभा कि इस घोषणा से क्या बीती होगी और वह कितना बौखलाया होगा?  

दरअसल तमिलनाडु के नीलगिरि जिले के कुन्नूर में वरिष्ठ रक्षा अधिकारियों को ले जा रहा भारतीय वायु सेना का एक हेलिकॉप्टर क्रैश हो गया और ये हेलिकॉप्टर था Mi-17V5। इस हादसे में सीडीएस बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत सहित इसमें मौजूद 11 अन्य लोगों की मौत हो गई। इस हादसे ने उन सभी घटनाओं की यादें ताजा कर दी हैं, जिनमें वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा, राजनेता वाई एस राजशेखर रेड्डी, संजय गांधी, माधव राव सिंधिया, जीएमसी बाल योगी, एस मोहन कुमारमंगलम, ओपी जिंदल, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री दोरजी खांडू जैसे भारत के सपूतों को जान गंवानी पड़ी। लेकिन इनमें डॉ होमी जहांगीर भाभा की विमान दुर्घटना में मृत्यु आज तक देश के प्रबुद्ध नागरिकों के गले से नीचे नहीं उतरी और इसे सीआईए की साजिश ही अधिकांश लोग मानते हैं। 

24 जनवरी, 1966 को देश के प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा वियना में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की वैज्ञानिक सलाहकार समिति की बैठक में भाग लेने के लिए जाते समय फ्रांस के मोंट ब्लैंक के पास विमान हादसे में जान गंवा बैठे थे। कहा जाता है कि अगर होमी जहांगीर भाभा की मौत एक विमान हादसे (plane crash) में न हुई होती तो शायद भारत न्यूक्लियर साइंस के क्षेत्र में कहीं बड़ी उपलब्धि हासिल कर चुका होता। सिर्फ 56 साल की उम्र में भारत में न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम के जनक भाभा की मौत हो गई। आरोप है कि भाभा की मौत के पीछे साजिश थी। भारत के न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम को रोकने के लिए भाभा की मौत की साजिश रची गई थी। होमी जहांगीर भाभा जिंदा होते तो भारत न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में महारत हासिल कर चुका होता। 

होमी जहांगीर भाभा की मौत एक विमान हादसे में हुई। लेकिन कहा जाता है कि वो विमान हादसा जानबूझकर करवाया गया था। अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम आगे बढ़े। इसलिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने होमी जहांगीर भाभा जिस प्लेन से जा रहे थे, उसका क्रैश करवा दिया। हालांकि इसे कभी साबित नहीं किया जा सका। 24 जनवरी, 1966 को होमी जहांगीर भाभा एयर इंडिया के फ्लाइट नंबर 101 से सफर कर रहे थे। मुंबई से न्‍यूयॉर्क जा रहा एयर इंडिया का बोइंग 707 विमान माउंट ब्‍लैंक पहाड़ियों के पास हादसे का शिकार हो गया। इस हादसे में होमी जहांगीर भाभा समेत विमान में सवार सभी 117 यात्रियों की मौत हो गई थी । 

उस समय से इस हादसे को लेकर कई बातें हुई। कई लोगों का मानना है कि इस विमान को साजिश के जरिए दुर्घटना का शिकार बनाया गया। कुछ लोगों का मानना है कि विमान में बम धमाका हुआ था जबकि कुछ का कहना है कि इसे मिसाइल या लड़ाकू विमान के जरिए गिराया गया था। 

आधिकारिक तौर पर जो जानकारी निकलकर सामने आई उसके मुताबिक जेनेवा एयरपोर्ट और फ्लाइट के पायलट के बीच गलतफहमी हुई थी। माउंट ब्लैंक की पहाड़ियों के बीच फ्लाइट के लोकेशन को लेकर कंफ्यूजन हुई थी। जिसकी वजह से विमान हादसे का शिकार हुआ। इसके बाद विमान का कुछ पता नहीं चला। 

2017 में उस विमान हादसे के कुछ सबूत हाथ लगे थे। फ्रांस में आल्पस पहाड़ियों के बीच स्थित माउंट ब्‍लैंक पर एक खोजकर्ता को मानव अवशेष मिले थे। उस वक्त बताया गया कि ये अवशेष उन लोगों के हो सकते हैं, जो 1966 के एयर इंडिया फ्लाइट क्रैश में मारे गए थे। मानव अवशेष की खोज करने वाले डेनियल रोशे ने कहा था कि मैंने इससे पहले इन पहाड़ियों पर कभी भी मानव अवशेष जैसे साक्ष्‍य नहीं पाए। इस बार मुझे एक हाथ और एक पैर का ऊपरी हिस्‍सा मिला है। हालांकि बाद में पता चला कि जो अवशेष मिले हैं वो किसी महिला के हैं। हो सकता है वो महिला की जान उसी विमान हादसे में गई हो। ये दावा इसलिए मजबूत था क्योंकि मानव अवशेष के साथ वहां एक विमान का जेट इंजन भी मिला था।

भाभा ये भी चाहते थे कि देश की सुरक्षा के लिए परमाणु बम बने। कहा जाता है कि भारत की तरक्की को देखते हुए अमेरिका डर गया था। अमेरिका को लग रहा था कि अगर भारत ने परमाणु बम बना लिया तो ये पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरनाक होगा। इसलिए सीआईए ने भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोकने के लिए भाभा की हत्या की साजिश रची। होमी भाभा को किसने मारा? भारत के परमाणु जनक की मृत्यु आज भी एक अबूझ पहेली है!

भाभा का मानना था कि भारत को एक शक्ति के रूप में उभरने के लिए अपनी परमाणु क्षमता विकसित करनी होगी, साथ ही अपनी रक्षा के लिए देश को एक परमाणु बम की भी जरुरत है। वह जवाहर लाल नेहरु के करीबी थे। बताया जाता है कि उन्होंने नेहरू को भी इस बात के लिए मना लिया था कि विज्ञान ही प्रगति का रास्ता है। होमी भाभा अंततः भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष बने।

1966 की दुर्घटना से ब्लैक बॉक्स कभी भी बरामद नहीं हुआ और मोंट ब्लांक के आसपास खतरनाक मौसम की स्थिति के कारण दुर्घटना के एक दिन बाद ही बचाव अभियान रोक दिया गया था। सितंबर 1966, में जांच फिर से शुरू हुई और फ्रांसीसी जांच आयोग ने मार्च 1967 में अपनी रिपोर्ट पूरी की। रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि पहाड़ के शिखर के पास गंभीर स्थितियां हैं, जिससे जिनेवा के हवाई यातायात नियंत्रक और पायलट के बीच गलत संचार हुई और दुर्घटना घटी। इसी रिपोर्ट को भारत सरकार ने भी स्वीकार कर लिया था।

अंतिम फ्रांसीसी जांच रिपोर्ट ने मलबे के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि दुर्घटना एक गलत अनुमान के कारण हुई थी, न कि किसी अन्य विमान द्वारा इंटरसेप्ट किए जाने के कारण। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि विमान में एक रिसीवर काम नहीं कर रहा था और पायलट ने विमान की स्थिति पर भेजे गए मौखिक डेटा का गलत अनुमान लगाया। इस बात की सच्चाई वर्ष 2008 में सामने आई, जब सीआईए अधिकारी रॉबर्ट क्रॉली और पत्रकार ग्रेगरी डगलस के बीच एक कथित बातचीत प्रकाशित हुई थी, जिससे लोगों को यह विश्वास हो गया था कि एयर इंडिया दुर्घटना और होमी भाभा के निधन में अमेरिकी खुफिया एजेंसी का हाथ था। इस बातचीत में क्राओली कह रहे थे कि भारत ने 60 के दशक में परमाणु बम पर काम शुरू कर दिया था, जो हमारे लिए समस्या थी। रॉबर्ट के मुताबिक भारत ये सब रुस की मदद से कर रहा था। इस बातचीत में रॉबर्ट क्राओली ने भाभा को खतरनाक बताया था। क्राओली के मुताबिक भाभा जिस वजह से वियना जा रहे थे, उसके बाद उनकी परेशानी और बढ़ती। कहा जाता है कि इसी वजह से विमान के कार्गो में बम विस्फोट के जरिए उसे उड़ा दिया गया।

बताया जाता है कि भारत जैसे देशों द्वारा परमाणु क्षमता हासिल करने, या परमाणु बम और हथियार बनाने से अमेरिका परेशान था। 1945 में, अमेरिका इस तकनीकी का एकमात्र मालिक था, लेकिन 1964 तक सोवियत संघ और चीन दोनों ने परमाणु बमों का परीक्षण किया। अब भारत भी होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में जल्दी ही परमाणु हथियार हासिल करने वाला था और भाभा ने यह तक घोषणा भी कर दी थी कि 18 महीनों में ही भारत यह तकनीक हासिल कर लेगा। अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम आगे बढ़े। इसलिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने होमी जहांगीर भाभा जिस प्लेन से जा रहे थे, उसे ही क्रैश करा दिया। हालांकि, इसे कभी साबित नहीं किया जा सका है लेकिन कई सबूत यही इशारा करते हैं।

दरअसल भारत-चीन युद्ध के बाद, भारत ने परमाणु हथियारों के लिए और अधिक आक्रामक तरीके से जोर देना शुरू कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने परमाणु हथियारों को बढ़ावा देने के लिए भाभा के विचारों पर सहमति प्रकट की थी। परंतु, इसी बीच 1966 में ही ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक दिन बाद प्रधानमंत्री शास्त्री, 11 जनवरी को नहीं रहे। उनकी मौत को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े हुए थे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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